Edited By Jyoti,Updated: 08 Aug, 2018 05:28 PM
वैसे तो महाभारत के कितने एेसे पात्र हैं, जिनका महाभारत के इतिहास में अपना एक अलग महत्व रहा है। इनमें से एक हैं गुरू द्रोणाचार्य। इन्हें महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक माना गया है।
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वैसे तो महाभारत के कितने एेसे पात्र हैं, जिनका महाभारत के इतिहास में अपना एक अलग महत्व रहा है। इनमें से एक हैं गुरू द्रोणाचार्य। इन्हें महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक माना गया है। संपूर्ण कौरव और पांडव वंश को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान देने वाने कोई और नहीं गुरु द्रोणाचार्य ही थी। इन सभी बातों के बारे में तो काफी लोगों को पता ही होगा लेकिन इनके जन्म से जुड़ी बेहद खास बात, जिसके बारे में शायद ही किसी को पता होगी।
आईए जानते हैं इनके जन्म की अजीबो-गरीब गाथा-
महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य देवताओं के गुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। महापराक्रमी अश्वत्थामा इन्हीं का पुत्र था। गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की कथा का वर्णन महाभारत में किया गया है, जो इस प्रकार है-
एेसे पैदा हुए थे गुरु द्रोणाचार्य
एक बार महर्षि भरद्वाज जब सुबह गंगा स्नान करने गए, वहां उन्होंने घृताची नामक अप्सरा को जल से निकलते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। यह देखकर उन्होंने अपने वीर्य को द्रोण नामक एक बर्तन में एकत्रित कर लिया। उसी में से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था। महर्षि भरद्वाज ने पहले ही आग्नेयास्त्र की शिक्षा अपने शिष्य अग्निवेश्य को दे दी थी। अपने गुरु के कहने पर अग्निवेश्य ने द्रोण को आग्नेय अस्त्र की शिक्षा दी।
परशुराम ने दिए थे अस्त्र-शस्त्र
जब द्रोणाचार्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब उन्हें पता चला कि भगवान परशुराम ब्राह्मणों को अपना सर्वस्व दान कर रहे हैं। द्रोणाचार्य भी उनके पास गए और अपना परिचय दिया। द्रोणाचार्य ने भगवान परशुराम से उनके सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र मांग लिए और उनके प्रयोग की विधि भी सीख ली।
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