Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Sep, 2020 09:05 AM
हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने में अनेकों शूरवीरों तथा क्रांतिकारियों का योगदान है जिन्होंने अपना तन-मन-धन और सर्वस्व इस देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया। ऐसे ही
Chandra Shekhar Azad Biography: हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने में अनेकों शूरवीरों तथा क्रांतिकारियों का योगदान है जिन्होंने अपना तन-मन-धन और सर्वस्व इस देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया। ऐसे ही क्रांतिकारियों में अमर शहीद चंद्रशेखर का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। चंद्रशेखर आजाद के नाम से अंग्रेज अधिकारी डर जाते थे। इनका जन्म वर्तमान मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भावरा ग्राम में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी तथा माता का नाम श्रीमती जगरानी देवी था। चंद्रशेखर आजाद का प्रारंभिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भाबरा गांव में बीता। इसलिए आजाद ने बचपन में भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाए। इस प्रकार निशानेबाजी उन्होंने बचपन में ही सीख ली थी। चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही वीर और साहसी थे। वह हमेशा सच बोलते थे। एक बार वे साधु के वेश में घूम रहे थे तो पुलिस वालों ने उनसे पूछा कि क्या तुम आजाद हो? इस पर चंद्रशेखर आजाद ने बड़ी चतुराई से सच बोला कि, ‘‘अरे हम आजाद नहीं हैं तो क्या हैं? सभी साधु आजाद होते हैं। हम भी आजाद हैं।’’
इतना सच बोलने के बाद भी पुलिस के चंगुल से निकल गए। जब उन्होंने क्रांतिकारी जीवन में कदम रखा तो इनका साहस भरा कार्य काकोरी षड्यंत्र था। 9 अगस्त 1925 को सहानरपुर से लखनऊ जाने वाली गाड़ी को काकोरी के पास रोक कर अंग्रेजी खजाना लूटने के पश्चात नौ दो ग्यारह हो गए थे। चाहे कइयों को बाद में पुलिस ने पकड़ कर फांसी की सजा दी थी पर आजाद आखिरी समय तक आजाद ही रहे थे।
वह देशभक्ति के गीत बड़े चाव से सुना करते थे। चंद्रशेखर आजाद आजीवन अविवाहित रहे थे। वह कहा करते थे कि अपने सिर पर मौत का कफन बांध कर चलने वाला व्यक्ति कभी शादी के बंधन में बंधने की कल्पना भी नहीं कर सकता। एक बार उनके दल के किसी सदस्य ने आजाद से पूछ लिया कि कैसी पत्नी की इच्छा करते हैं तो आजाद ने बड़े ही सहज भाव से उत्तर दिया कि मेरे अनुसार मेरे लायक लड़की हिंदुस्तान में तो क्या, सारी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी क्योंकि मैं ऐसी पत्नी चाहता हूं जो एक कंधे पर राइफल और दूसरे कंधे पर कारतूसों से भरा हुआ बोरा उठाकर पहाड़ से पहाड़ घूमती रहे और इस तरह आजादी के लिए अपनी जान दे दे।
27 फरवरी 1931 को वह महान दिन था जिस दिन आजाद ने अपने जीवन से आजादी पाई थी। वह अक्सर कहा करते थे कि किसी मां ने अभी ऐसा लाल पैदा ही नहीं किया जो आजाद को जीवित पकड़ सके। उन्होंने कसम खाई थी कि वह कभी पुलिस के हाथों जिंदा गिरफ्तार नहीं होंगे। इसी कसम को निभाते हुए वह शहीद हुए थे। प्रयाग के अलफ्रैड पार्क में वह अपने साथी के साथ बैठकर कोई महत्वपूर्ण चर्चा कर रहे थे कि उनके एक साथी ने विश्वासघात करते हुए पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया। आजाद ने बड़ी वीरता से सामना किया। दोनों ओर से गोलियों की बौछार होने लगी लेकिन आजाद कब हार मानने वाले थे। उन्होंने अपनी पिस्तौल से निशाना साधकर सी.आई.डी. के सुपरिटैंडैंट की भुजा पर गोली मारकर उसे नकारा कर दिया। इसी प्रकार एक इंस्पैक्टर का जबड़ा भी उड़ा दिया। अचानक उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पिस्तौल में एक ही गोली बची है।
अजीब संकट में फंस गए। उन्हें अपनी कसम बार-बार याद आने लगी कि जिंदा रहते हुए पुलिस के आदमी मुझे कभी हाथ नहीं लगाएंगे। उन्होंने अपनी कनपटी पर पिस्तौल की नाल लगाकर घोड़ा दबा दिया और आत्म बलिदान का गौरव प्राप्त किया। उनके शव को देखकर भी पुलिस वालों को यकीन नहीं हो रहा था कि वे मर गए हैं। आजाद से भयभीत पुलिस वाले उनके शव को गोलियां मारते रहे। ऐसे निर्भीक और तेजस्वी थे अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद जिन्होंने मरते दम तक अपनी कसमों को निभाया और जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।