Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Feb, 2019 09:32 AM
चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता संग्राम के वह स्तंभ थे जिनका लोहा पूरी अंग्रेज हुकूमत मानती थी। उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना तन, मन, धन सब कुछ बलिदान कर दिया था। उनका पूरा जीवन देश आजादी के प्रति समर्पित था।
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चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता संग्राम के वह स्तंभ थे जिनका लोहा पूरी अंग्रेज हुकूमत मानती थी। उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना तन, मन, धन सब कुछ बलिदान कर दिया था। उनका पूरा जीवन देश आजादी के प्रति समर्पित था। चंद्रशेखर आजाद एक अविस्मरणीय, अद्वितीय और अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे। एक साधारण परिवार में जन्मे आजाद ने देश की आजादी के लिए अपना जो महत्वपूर्ण योगदान डाला उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। चंद्रशेखर के पिता पंडित सीता राम साधारण नौकरी करते थे और उनकी शिक्षा का बोझ उठाने में असमर्थ थे। इसके बावजूद आजाद ने अपनी योग्यता का ऐसा प्रदर्शन किया जिससे वह उन्नति के शिखर तक पहुंच गए।
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चंद्रशेखर आजाद की वीरता एवं साहस उनके व्यक्तित्व की महान विशेषता थी। उनके बचपन से वीरगति को प्राप्त होने तक उनके जीवन में सभी गुणों के दर्शन होते हैं। भय नाम की चीज़ उनके जीवन में कभी सामने नहीं आई। 14 वर्ष की आयु में वह एक संकल्प लिए पक्के इरादों के साथ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े। न्यायधीशों के प्रश्रों के उत्तर में उन्होंने अपना नाम आजाद पिता का नाम स्वतंत्रता और घर का पता कारावास बताया था।
शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव भी उनके घनिष्ठ मित्र थे। इन क्रांतिकारियों ने हिन्दोस्तान समाजवादी गणतांत्रिक संगठन बनाया था और आजाद स्वयं इस संगठन के सेनापति भी रहे। पंडित मोती लाल नेहरू ने उन्हें अहिंसा का परामर्श दिया था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। भगत सिंह की पहचान को बदलने के लिए आजाद ने ही उन्हें बाल कटवाने की सलाह दी थी जिसका सरदार भगत सिंह ने सम्मानपूर्वक पालन किया।
चंद्रशेखर आजाद ने अपने प्राणों की आहुति भी बड़ी वीरतापूर्वक दी थी। 27 फरवरी 1931 को आजाद अपने साथी सुखदेव के साथ इलाहाबाद के अलफे्रड पार्क में बैठे भविष्य की रणनीति बना रहे थे कि तभी अंग्रेज पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया और आत्म समर्पण करने को कहा। मगर चंद्रशेखर ने अपनी जिंदगी में झुकना कभी सीखा नहीं था। देखते ही देखते आजाद ने अंग्रेज पुलिस अधिकारियों पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। कहते हैं कि आजाद के रिवाल्वर में अंतिम गोली रह गई थी उन्होंने रिवाल्वर अपनी कनपटी पर रखा और गोली दाग दी। इसी बीच अपने साथी सुखदेव को भाग जाने के लिए कहा। वह नहीं चाहते थे कि दुश्मन की गोली से उनकी मृत्यु हो। उन्होंने कहा था, ‘‘मैं आजाद हूं और आजाद ही रहूंगा।’’
कहते हैं कि अंग्रेज पुलिस में उनका इतना आतंक था कि जब उनका शव भूमि पर पड़ा था तो अंग्रेज पुलिस अधिकारी उनको उठाने से डरते रहे। पुलिस ने पहले उनके हाथ पर गोली मारी जिस पार्क में पेड़ के नीचे आजाद ने अपना बलिदान दिया था, आज उनकी समाधि बनाकर पूजा जाता है। आजाद ने हर दम भारत माता को फिरंगी के हाथों मुक्ति दिलाने का काम किया।
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