Chhath Puja: इस दिन से होगा छठ पूजा का आरंभ, पढ़ें पूरी Details

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Nov, 2023 08:21 AM

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गंगा घाट पर टिमटिमाते दीये, छठ के पारम्परिक गीतों और वैदिक मंत्रों की उठती स्वर लहरियां एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करती हैं। ऐसा अद्भुत और विहंगम दृश्य हर

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Chhath Puja 2023: गंगा घाट पर टिमटिमाते दीये, छठ के पारम्परिक गीतों और वैदिक मंत्रों की उठती स्वर लहरियां एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करती हैं। ऐसा अद्भुत और विहंगम दृश्य हर साल पटना सहित उत्तर भारत के सभी प्रमुख गंगा घाटों, नदियों और तालाबों के किनारे देखने को मिलता है। यह पावन मौका होता है कार्तिक मास के शुल्क पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ पर्व का। ‘छठ माई’, ‘छठ, सूर्य षष्ठी’ या ‘डाला छठ’ नाम से प्रसिद्ध यह पर्व मुख्य रूप से भगवान भास्कर यानी सूर्य को समर्पित है।

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मान्यता है कि छठ पूजा का चलन बिहार से ही शुरू हुआ, जो आज देश व कई देशों में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम और ओडिशा से निकल कर यदि हम बात करें पंजाब की, तो यहां भी छठ पर्व वैसे ही मनाया जाता है जैसा कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में। पंजाब के तीन प्रमुख बड़े शहरों लुधियाना, जालंधर और अमृतसर में तो छठ पर्व पर वृहद आयोजन किए जाते हैं।

Chhath Puja 2023 Date: लुधियाना में सतुलज किनारे छठ व्रती सूर्य की उपासना करते हैं। इसी तरह जालन्धर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करते हैं। अमृतसर के प्रसिद्ध दुर्ग्याणा तीर्थ परिसर और तारांवाला नहर के किनारे छठ पूजा संपन्न कराने के लिए मंदिर कमेटी और जिला प्रशासन की ओर से व्यापक प्रबंध किए जाते हैं। नहाय-खाय और खरना से शुरू होने वाले छठ महापर्व की प्रमुख तिथियां कुछ इस प्रकार से रहेंगी। 17 नवंबर को नहाय खाए किया जाएगा। 18 नवंबर को खरना मनाया जाएगा। 19 नवंबर को छठ पूजा की जाएगी। इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

How and when did Chhath festival start कैसे और कब शुरू हुआ छठ पर्व: छठ की पूजा कब और कैसे शुरू हुई यह तो ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता लेकिन, इतना जरूर है कि सूर्य षष्ठी व्रत अनादि काल से चला आ रहा है क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति की पूजा किसी न किसी रूप में की जाती है। मान्यता है कि रामायण काल में माता सीता ने जब सूर्य देव की उपासना की वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि थी।

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एक उल्लेख मगध नरेश जरासंध का भी आता है। कहा जाता है कि उसको कुष्ठ रोग हो गया था। उसने बहुत उपचार करवाया पर ठीक नहीं हुआ। किसी ब्राह्मण ने उसे सूर्य उपासना करने की सलाह दी। जरासंध ने ऐसा किया तो उसका कुष्ठ ठीक हो गया। इसके बाद जरासंध ने नियमित सूर्य उपासना शुरू कर दी, तभी से छठ का प्रचलन माना जाता है।

छठ को लेकर एक अन्य मान्यता कर्ण और द्रौपदी की भी है। मान्यता है कि कर्ण सूर्य पुत्र और महादानी था। कर्ण के बारे में कहा जाता है कि वह गंगा में  प्रतिदिन सुबह कमर तक जल में खड़े हो कर सूर्य की उपासना करता था। आज भी छठ व्रती कमर तक जल में घंटों खड़े रह कर सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

महाभारत में ही द्रौपदी की कथा आती है जिसके अनुसार जुए में हारे हुए पांडवों के राज्य की प्राप्ति के लिए भगवना श्री कृष्ण की सलाह पर द्रौपदी ने भी सूर्य की उपसना की थी।  

Both the wifes of Surya are worshiped on Chhath festival छठ पर्व पर सूर्य की दोनों पत्नियों की होती है पूजा : आमतौर पर लोग अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य नहीं देते और न ही ऐसी कोई तस्वीर अपने घर में लगाते हैं लेकिन छठ के दिन अस्त और उदय होते हुए सूर्य की उपासना की जाती है और उन्हें अर्घ्य दे कर व्रत संपन्न किया जाता है।

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मान्यता है कि अस्त और उदय होते आदित्य के साथ-साथ उनकी दोनों पत्नियों संध्या और ऊषा की भी पूजा की जाती है। शायद यही कारण है कि डूबते और उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है।

Chhath festival connects every section of the society समाज के हर वर्ग को जोड़ता है छठ पर्व : छठ पर्व में कच्चे बांस से बनी टोकरियों और सूप का इस्तेमाल तो किया ही जाता है, इसमें मौसमी फलों के साथ-साथ सब्जियों और अन्न का भी प्रसाद के तौर पर इस्तेमाल होता है। यह पर्व बांस की टोकरियां बनाने वालों से लेकर मिट्टी के दीए, बर्तन बनाने वाले, फल और सब्जियां उगाने वालों और दुकानदारों को भी साथ जोड़ता है।

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