देव दिवाली पर करेंगे ये काम, तो जीवन के कठिन रास्ते होंगे आसान

Edited By Jyoti,Updated: 25 Nov, 2020 01:07 PM

dev diwali 2020

अगर किसी से पूछा जाए कि एक वर्ष में दिवाली कितनी बार आती है तो लगभग लोगों का उत्तर होगा कि एक बार। बहुत ही कम लोग होंगे जिन्हें पता होगा कि 1 साल में कुल तीन बार दीपावली का त्यौहार आता है। उसससे भी अधिक खास बात तो यह है कि तीनों ही बार दिवाली का...

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अगर किसी से पूछा जाए कि एक वर्ष में दिवाली कितनी बार आती है तो लगभग लोगों का उत्तर होगा कि एक बार। बहुत ही कम लोग होंगे जिन्हें पता होगा कि 1 साल में कुल तीन बार दीपावली का त्यौहार आता है। उसससे भी अधिक खास बात तो यह है कि तीनों ही बार दिवाली का पर्व कार्तिक मास में आता है। जी हां, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी को छोटी दिवाली पडती, जिसे नरक चतुर्दशी भी कहा जता है, इसके बाद अमावस्या को बड़ी दिवाली तथा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में जिस तरह कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को पड़ने वाली दिवाली का खासा महत्व होता है। ठीक उसी तरह देव दिवाली को भी बेहद खास माना जाता है। यही कारण है देव दिवाली के शुभ अवसर पर कई तरह के धार्मिक और महत्वपूर्ण कार्य करने का भी अधिक महत्व होता है। तो चलिए आपको बताते हैं क्या वो कार्य साथ ही साथ ही बताएंगे कार्तिक पूर्णिमा का महत्व।
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कार्तिक पूर्णिमा महत्व-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देव उठनी एकादशी भगवान विष्णु 4 माह की नींद लेने के बाद जागते हैं। तो वहीं कुछ प्रचलित मान्यताएं ये भी हैं कि इसी ही दिन संध्याकाल को भगवान विष्णु अपने मतस्यावतार में प्रकट हुए थे। कहा जाता है कार्तिक मास की इस पूर्मिमा को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि ने महापुनीत पर्व प्रमाणित किया है।

इससे जुड़ा एक श्लोक भी शास्त्रोंमें वर्णित है जो इस प्रकार है-  

रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्।
मुक्तेर्निदांन नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।।-(स्कंदपुराण. वै. का. मा. 5/34)...

अर्थात- कार्तिक मास आरोग्य प्रदान करने वाला, रोगविनाशक, सद्बुद्धि प्रदान करने वाला तथा मां लक्ष्मी की साधना के लिए सर्वोत्तम है।

बता दें अगर इस दिन कृतिका नक्षत्र हो तो यह महाकार्तिकी कहलाती है। भरणी हो तो भी यह विशेष फल देती है और रोहिणी हो तो भी इसका महत्व बढ़ जाता है।

इसके अलावा कहा गया है कि अगर इस दिन कृतिका पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हों तो पद्मक योग बनता  है। यह पुष्कर में भी दुर्लभ है। कार्तिकी को संध्या के समय त्रिपुरोत्सव करके-
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'कीटाः पतंगा मशकाश्च वृक्षे जले स्थले ये विचरन्ति जीवाः,
दृष्ट्वा प्रदीपं नहि जन्मभागिनस्ते मुक्तरूपा हि भवति तत्र'

से दीपदान करने वाले को पुनर्जन्म का कष्ट नहीं प्राप्त होता है।

नदी स्नान- यूं तो कार्तिक के पूरे मास में पवित्र नदी में स्नान करने का प्रचलन और अधिक महत्व होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस मास में श्री हरि जल में ही निवास करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि कार्तिक मास में इंद्रियों पर संयम रखकर चांद-तारों की मौजूदगी में सूर्योदय से पूर्व ही पुण्य प्राप्ति के लिए नित्य स्नान  करना चाहिए। परंतु विशेषकर पूर्णिमा के दिन स्नान करना अति उत्तम माना गया है। इसलिए अगर संभव हो तो इस दिन किसी पावन नदी में स्नान जरूर करें।

दीपदान- इस दिन गंगा घाटों पर स्नान करने के साथ-साथ वहां दीप जलाने की भी मान्यता है। धार्मिक किंवदंति है कि इस दिन सभी देवता गंगा घाटों पर दीप जलाकर अपनी प्रसन्नता को दर्शाते हैं। इसलिए इस दिन दीपदान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इससे जातकको अपने समस्त प्रकार के संकटों से मुक्ति तो मिलती है, साथ ही साथ कर्ज से भी छुटकारा मिलता है।

पूर्णिमा का व्रत- ज्योतिषियों का मानना है कि इस दिन उपवास करके श्री हरि का स्मरण व चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। इतना ही नहीं जातक को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। तो वही पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरध सिद्ध होते हैं।
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दान का फल- जो भी जातक इस पावन दिन दान आदि करता है, उसे दस यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है। बता दें इस दिन किए जाने वाले दान को अपनी क्षमता अनुसार कर सकते हैं। इस दौरान अन्न दान, वस्त्र दान और अन्य वस्तुएं भी दान कर सकते हैं।

तुलसी पूजा- चूंकि कार्तिक मास में तुलसी पूजा का अधिक महत्व होता है, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन शालिग्राम के साथ ही तुलसी की पूजा, सेवन और सेवा करने का बहुत ही ज्यादा महत्व है।

 

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