Dev Uthani Ekadashi: देवउठनी एकादशी पर इस विधि से करें पूजा और करें श्री हरि का स्वागत

Edited By Updated: 30 Oct, 2025 02:25 PM

dev uthani ekadashi

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी (जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है) एक अत्यंत पवित्र और शुभ तिथि है जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु जी के चार महीने के योग...

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Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी (जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है) एक अत्यंत पवित्र और शुभ तिथि है जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु जी के चार महीने के योग निद्रा से जागने का प्रतीक है।

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Significance of Dev Uthani Ekadashi देवउठनी एकादशी का महत्व
चातुर्मास (चार मास) आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं।
इस अवधि में शुभ कार्य (जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन आदि) नहीं किए जाते। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जाग्रत होते हैं और इसके बाद सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इसीलिए इसे देव जागरण का दिन कहा जाता है।

Dev Uthani Ekadashi mythological story देवउठनी एकादशी पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने असुरों से देवताओं की रक्षा के लिए शेषनाग पर क्षीरसागर में योगनिद्रा ली थी। चार महीने बाद, जब पृथ्वी और लोकों की स्थिति सुधर गई, तब वे कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जागे। देवताओं और ऋषियों ने जागरण के समय भगवान विष्णु का स्वागत दीप, पुष्प और शंख-घंटों से किया तभी से इस दिन का नाम पड़ा देवोत्थान एकादशी।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में के अनुसार प्राचीन समय से एक बार योग निद्रा ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। तप से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा। तब योग निद्रा ने भगवान विष्णु से कहा कि भगवान आप मुझे अपने अंगों में स्थान दीजिए। जिसके परिणाम स्वरूप श्रीहरि के संपूर्ण शरीर पर योग निद्रा का अधिकार होता। ऐसे में वह योग निद्रा की इच्छा पूरी करने के लिए सोच में पड़ गए। बहुत सोच विचार के बाद जगत के पालनहार ने उन्हें अपनी आंखों में स्थान दिया और कहा कि साल के 4 महीने आप मेरी आंखों में विराजमान रहेंगी। ऐसा माना जाता तभी से चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में जाते हैं।

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Dev Uthani Ekadashi Puja Procedure देवउठनी एकादशी पूजा विधि
प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु जी की मूर्ति या शालिग्राम का गंगाजल से अभिषेक करें।
उन्हें तुलसी दल, पीले फूल, पंचामृत, और भोग (खीर, पूड़ी, सब्जी) चढ़ाएं।
दीपदान अवश्य करें, यह विशेष पुण्यकारी माना गया है।
शाम को तुलसी विवाह की परंपरा भी निभाई जाती है (विष्णु और तुलसी जी का दिव्य विवाह)।
रात्रि में भजन-कीर्तन और जागरण करें।

Significance of Tulsi Vivah on Dev Uthani Ekadashi देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का महत्व
देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु (शालिग्राम रूप) और तुलसी माता का विवाह किया जाता है। यह विवाह प्रतीक है, “भक्ति और भगवान के मिलन का।” तुलसी विवाह करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ता है।

Special benefits of Devuthani Ekadashi देवउठनी एकादशी के विशेष लाभ
देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से अपूर्व पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे पापों का क्षय होता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
जिन लोगों के विवाह में बाधा है, वे इस दिन तुलसी विवाह करें, इससे विवाह योग प्रबल होता है।

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