संतोषी माता की पूजा में जरूर करें इन मंत्रों का जप, नहीं तो रह जाएगी पूजा अधूरी

Edited By Updated: 11 Mar, 2022 04:08 PM

devi santoshi pujan and mantra in hindi

धार्मिक व ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार शुक्रवार के दिन माता संतोषी की पूजा का विधान है। हिंदू धर्म ग्रंथों में देवी संतोषी माता विघ्नहर्ता की पुत्री कहा जाता है। जिस कारण इनकी पूजा का विशेष महत्व माना गया है। बल्कि कहा जाता है जो  मां संतोषी का व्रत

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धार्मिक व ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार शुक्रवार के दिन माता संतोषी की पूजा का विधान है। हिंदू धर्म ग्रंथों में देवी संतोषी माता विघ्नहर्ता की पुत्री कहा जाता है। जिस कारण इनकी पूजा का विशेष महत्व माना गया है। बल्कि कहा जाता है जो  मां संतोषी का व्रत करने वाले जातक के जीवन में से सभी संकट दूर होते हैं। इतना ही नहीं इससे व्यक्ति को मनचाहा वरदान भी प्राप्त होता है। परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि किसी भी देवी-देवता की पूजा उनके मंत्रों आदि के बिना अधूरी मानी जाती है। जिस कारण उन्हें पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। तो चलिए आपको बताते हैं कि देवी संतोषी के कुछ पूजा मंत्र। साथ ही जानेंगे देवी संतोषी की चालीसा जिसके जप से व्यक्ति को धन-धान्य की प्राप्ति होती है। 

संतोषी मां महामंत्र:

जय माँ संतोषिये देवी नमो नमः

श्री संतोषी देव्व्ये नमः

ॐ श्री गजोदेवोपुत्रिया नमः

ॐ सर्वनिवार्नाये देविभुता नमः

ॐ संतोषी महादेव्व्ये नमः

ॐ सर्वकाम फलप्रदाय नमः

ॐ ललिताये नमः

मंत्र से करें ध्यान 

ॐ श्री संतोषी महामाया गजानंदम दायिनी
शुक्रवार प्रिये देवी नारायणी नमोस्तुते! 

ज्योतिष बताते हैं कि नियमित रूप से व खासतौर पर शुक्रवार के दिन इस मंत्र का जाप करने से निश्चित ही जीवन की सभी परेशानी दूर हो जाती हैं। 

मंत्र जाप के फायदे
संतोषी मां की कृपा बनाए रखने के लिए सकारात्मकता से भरे इस मंत्र का जाप बहुत लाभदायी है. इससे जीवन की हर परेशानी दूर हो सकती है. इतना ही नहीं, भक्तों में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और जीवन में सफलता के रास्ते पर चलता जाता है. 

इसके अलावा जानें संतोषी माता चालीसा- 

दोहा

बन्दौं संतोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥
भक्तन को सन्तोष दे संतोषी तव नाम।
कृपा करहु जगदंब अब आया तेरे धाम॥

जय संतोषी मात अनूपम। 
शान्ति दायिनी रूप मनोरम॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। 
वेश मनोहर ललित अनुपा॥॥

श्वेताम्बर रूप मनहारी। 
मां तुम्हारी छवि जग से न्यारी॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन।
दर्शन से हो संकट मोचन॥॥

जय गणेश की सुता भवानी। 
रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया। 
सब पर करो कृपा की छाया॥॥

नाम अनेक तुम्हारे माता। 
अखिल विश्व है तुमको ध्याता॥
तुमने रूप अनेकों धारे। 
को कहि सके चरित्र तुम्हारे॥॥

धाम अनेक कहां तक कहिये। 
सुमिरन तब करके सुख लहिये॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी। 
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी॥
कलकत्ते में तू ही काली। 
दुष्ट नाशिनी महाकराली॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती। 
भक्तजनों का दुःख मिटाती॥॥

ज्वाला जी में ज्वाला देवी। 
पूजत नित्य भक्त जन सेवी॥
नगर बम्बई की महारानी। 
महा लक्ष्मी तुम कल्याणी॥॥

मदुरा में मीनाक्षी तुम हो। 
सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो॥
राजनगर में तुम जगदम्बे। 
बनी भद्रकाली तुम अम्बे॥॥

पावागढ़ में दुर्गा माता। 
अखिल विश्व तेरा यश गाता॥
काशी पुराधीश्वरी माता। 
अन्नपूर्णा नाम सुहाता॥॥

सर्वानंद करो कल्याणी। 
तुम्हीं शारदा अमृत वाणी॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में। 
दुख दारिद्र सब मेटो पल में॥॥

जेते ऋषि और मुनीशा। 
नारद देव और देवेशा।
इस जगती के नर और नारी। 
ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी॥॥

जापर कृपा तुम्हारी होती। 
वह पाता भक्ति का मोती॥
दुख दारिद्र संकट मिट जाता। 
ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता॥॥

जो जन तुम्हरी महिमा गावै। 
ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै॥
जो मन राखे शुद्ध भावना। 
ताकी पूरण करो कामना॥॥

कुमति निवारि सुमति की दात्री। 
जयति जयति माता जगधात्री॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन। 
जो व्रत करे तुम्हारा पावन॥॥

गुड़ छोले का भोग लगावै। 
कथा तुम्हारी सुने सुनावै॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी। 
फिर प्रसाद पावे शुभकारी॥॥

शक्ति- सामरथ हो जो धनको। 
दान- दक्षिणा दे विप्रन को॥
वे जगती के नर औ नारी। 
मनवांछित फल पावें भारी॥॥

जो जन शरण तुम्हारी जावे। 
सो निश्चय भव से तर जावे॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे। 
निश्चय मनवांछित वर पावै॥॥

सधवा पूजा करे तुम्हारी। 
अमर सुहागिन हो वह नारी॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा।
 भवसागर से उतरे पारा॥॥

जयति जयति जय संकट हरणी। 
विघ्न विनाशन मंगल करनी॥
हम पर संकट है अति भारी। 
वेगि खबर लो मात हमारी॥॥

निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता। 
देह भक्ति वर हम को माता॥
यह चालीसा जो नित गावे। 
सो भवसागर से तर जावे॥॥

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