Gandhi Peace Prize: हाईटैक होगी "गांधी शांति पुरस्कार" के लिए चयनित गीता प्रेस, मोबाइल ऐप पर उपलब्ध होंगी किताबें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jun, 2023 10:16 AM

gandhi peace prize

जालंधर (इंट): केंद्र सरकार द्वारा "गीता प्रेस" को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा पर काफी बवाल मचा हुआ है।

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जालंधर (इंट): केंद्र सरकार द्वारा "गीता प्रेस" को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा पर काफी बवाल मचा हुआ है। कांग्रेस पार्टी ने हिंदू राष्ट्रवाद के साथ संस्था के लंबे जुड़ाव का हवाला देते हुए इस पुरस्कार की तुलना विनायक दामोदर सावरकर या महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को दिए जाने से की है। हालांकि विवादों के बीच ही संस्था के अधिकारियों ने प्रेस को हाईटेक करने की बात कही है। संस्था का कहना है कि प्रेस द्वारा प्रकाशित किताबें और अन्य सामग्री डाउनलोड करने के लिए गीता प्रेस का एक मोबाइल एप्लिकेशन अगले तीन-चार महीनों में जल्द ही तैयार हो जाएगा।

Free download of manuscripts also planned पांडुलिपियों के मुफ्त डाउनलोड की भी योजना
संस्था का कहना है कि नवीनतम तकनीक को अपनाना केवल मोबाइल एप्लिकेशन तक ही सीमित नहीं है। संस्था का प्रबंधन करने वाले सोसायटी के 11 ट्रस्टियों में से एक देवी दयाल अग्रवाल कहते हैं कि  इसका लक्ष्य अपनी वेबसाइट के माध्यम से पाठकों को 500 विभिन्न शैलियों की धार्मिक पुस्तकों और पांडुलिपियों को मुफ्त डाउनलोड प्रदान करना भी है। अग्रवाल ने बताया कि वेबसाइट पर दो सौ किताबें अपलोड की गई हैं। प्रबंधक लाल मणि तिवारी कहते हैं कि प्रकाशन गृह कम से कम 20 एकड़ भूमि प्राप्त करने पर भी विचार कर रहा है, ताकि अगले 100 वर्षों तक प्रेस संचालन सुचारू रूप से चलता रहे। गौरतलब है कि हिंदू धर्म की करोड़ों किताबों को प्रकाशित करने वाली गीताप्रेस को स्थापित हुए 100 वर्ष हो चुके हैं। इस कारण गीता प्रेस अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है।  पीएम नरेंद्र मोदी ने गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस को बधाई देते उनके योगदानों की सराहना की है।

Is the history of Geeta Press क्या गीता प्रेस का इतिहास
गीता प्रेस की स्थापना उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में साल 1923 में की गई थी। लेकिन इससे पहले की कहानी भी बेहद रोचक है। दरअसल गीता प्रेस की नींव तो साल 1921 में ही पश्चिम बंगाल के कोलकाता में स्थित गोविंद भवन ट्रस्ट ने रख दी थी। इसके बाद गीताप्रेस को गोरखपुर में स्थापित करने का फैसला किया गया और जयदयाल गोयनका, घनश्याम दास जलान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने मिलकर 29 अप्रैल 1923 को गीताप्रेस की स्थापना गोरखपुर में की। इसी के बाद से इसी गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से जाना जाने लगा। गीताप्रेस की शुरुआत जिस किराए के मकान से शुरू हुई थी। उसी मकान को गीताप्रेस ने साल 1926 में 10 हजार रुपये में खरीद लिया।

Crores of books have been published करोड़ों पुस्तकें हो चुकी हैं प्रकाशित
गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। गीता प्रेस 14-15 भाषाओं में अपनी पुस्तकों को प्रकाशित करता है। अबतक गीताप्रेस ने 41.7 करोड़ पुस्तकों का प्रकाशन किया है। इसमें 16.21 करोड़ प्रतियां श्रीमद्भगवद्गीता की हैं। वहीं गीताप्रेस ने रामचरितमानस, रामायण, तुलसीदास और सूरदास के कई साहित्यों को प्रकाशित किया है। शिवपुराण, गरुण पुराण, पुराण की करोड़ों किताबें गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित किए जा चुके हैं। बता दें कि गीता प्रेस का कार्यभार गवर्निंग काउंसिल यानी ट्रस्ट बोर्ड संभालती है। गीताप्रेस न तो चंदा मांगती है और न ही विज्ञापन करके कमाई करती है। समाज के लोग ही गीताप्रेस के खर्चों का वहन करते हैं।

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