मां गंगा का एक ऐसा मंदिर..जिसकी सीढ़ियों से आती हैं पानी की आवाज़

Edited By Jyoti,Updated: 07 May, 2022 05:38 PM

garhmukteshwar ganga temple

08 मई, दिन रविवार को गंगा सप्तमी का पर्व है, इसी उपलक्ष्य में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो स्वयं से जुड़े एक रहस्य की वजह से काफी प्रसिद्ध है। दरअसल हम बात करे रहे हैं गढ़मुक्तेश्वर में स्थित बेहद प्राचीन मंदिर की।

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08 मई, दिन रविवार को गंगा सप्तमी का पर्व है, इसी उपलक्ष्य में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो स्वयं से जुड़े एक रहस्य की वजह से काफी प्रसिद्ध है। दरअसल हम बात करे रहे हैं गढ़मुक्तेश्वर में स्थित बेहद प्राचीन मंदिर की। बताया जाता है इस मंदिर की ऊंचाई 80 फीट है, मंदिर एक टीले पर स्थित है। यहां के प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में लोग दूर से दूर से मन्नते मांगने आते हैं जिनके पूरा होने के बाद यहां आकर चढ़ावे के रूप में कई चीज़ें अर्पित करते हैं। परंतु इस मंदिर की जिस खास बात ने इसे प्रसिद्ध किया है वो है इस मंदिर की विशेष प्रकार की सीढ़िया। जी हां, बताया जाता है इस मंदिर की सीढ़ी पर पत्थर मारने पर इससे जो आवाज आती है, वो सबको हैरान कर देने वाली मानी जाती है। दरअसल इसमें से आने वाली आवाज़ पानी की होती है। बल्कि लोगों का तो कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे मंदिर की सीढ़ी ले छू कर मां गंगा बहती हो। तो आइए मंदिर के बारे में विस्तारपूर्वक जानते हैं- 
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बता दें गढ़ गंगा नगरी में प्राचीन एवं ऐतिहासिक गंगा मंदिर शहरी की आबादी के एक छोर पर लगभग 80 फीट ऊंचे टीले पर स्थित है। जहां पहुंचने के लिए प्राचीन समय में यहां लगभग  101 सीढ़ी हुआ करती थीं, किंतु अनेक बार सड़क ऊंची होने के कारण इन सीढ़ियों में से यहां केवल 84 सीढ़ी ही शेष बची हैं। बता दें मंदिर में मां गंगा की एक आदमकद प्रतिमा, चार मुख की दूध के समान सफेद बह्मा जी की मूर्ति एवं शिवलिंग स्थापित है। 

बात करें मंदिर की सीढ़ियों को तो बताया जाता है मंदिर में बनी इन सीढ़ियों में विशेष प्रकार कापत्थर लगा हुआ है। जिन पर पत्थर मारने से पत्थर से पत्थर टकराने की आवाज़ नहीं आती बल्कि पानी की आवाज़ आती है। तो वहीं इस मंदिर से जुड़ी एक और बात है जो यहां आने वाले को आचंभित करती है,मंदिर में विराजमान शिवलिंग पर हर साल एक शिव आकृति अंकुरित होती है। मंदिर के पुरोहित द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार हर साल एक शिवलिंग पर एक अंकुर उभरता है, जिसके फूटने पर देवी-देवताओं व शिव आकृति अलग-अलग रूप में प्रकट होती है। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी इस राज का खुलासा नही कर पाए। 
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इसके अलावा आपको बता दें कि इस मंदिर विराजमान में ब्रह्मा जी के चार मुख की एक सफेद प्रतिमा स्थापित है। मंदिर कौ कब कैसे और किसके द्वारा स्थापित किया गया है इस बारे में आज तक कोई पुष्टि नहीं हुई है। 

101 सीढ़ियों का निर्माण-
मंदिर में आ रहे पुराने भक्तों व यहां के पुजारियों आदि के अनुसार ये प्राचीन गंगा मंदिर हज़ारों वर्ष पुराना है, जहां प्राचीन समय में जाने के लिए कोई सीढ़ी मार्ग नहीं था यहां से रोज़ाना गंगा मां गुजरा करती थी, हालांकि अब कहा जाता है कि मां गंगा ने अपना स्थल यहां से 5 कि.मी दूर अमरोहा जिले की सीमा में बना लिया है। 
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प्राचीन समय में इस गंगा मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने संभाल रखी थी। गंगा स्नान मेले से प्राप्त आय का आठवां हिस्सा मंदिरों के रखरखाव में खर्च किया जाता था। बताया जाता है कि मेले में जमा होने वाली सारी पूंजी को मंदिर के निर्माण कार्य में लगाया जाता था। इसी क तहत प्रशासन के सहयोग से वर्ष 1885 से 1890 के बीच इस मंदिर तक पहुंचने के लिये 101 सीढ़ियों का निर्माण करवाया था। बता दें सीढ़ियों के पास एक-एक पत्थर लगा हुआ है। जिस पर उस समय जिलाधिकारी मेरठ एस.एम. राहट बहादुर व तहसीलदार हापुड़ जोजफ हैनरी का नाम खुदा हुआ है। बता दें प्राप्ता जानकारी के अनुसार वर्ष 1960 में जिला परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष विष्णु शरण दबलिश ने मेले से प्राप्त आय में से मंदिर के नाम आर्थिक सहायता न देने का नोटिस जारी कर दिया। जिससे इस मंदिर के रखरखाव का कार्य ठप हो गया था। जिस कारण आगे इसके निर्माण नहीं हो सका। 

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