Hindu New Year: 1.96 अरब वर्ष पुराना है भारत का इतिहास, पढ़ें हिन्दू नववर्ष नव संवत्सर की कहानी !

Edited By Updated: 27 Mar, 2025 02:00 PM

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Hindu New Year 2025: हमारी समृद्ध एवं गौरवशाली स्वर्णिम सांस्कृतिक विरासत में पर्वों का विशेष महत्व है। भारतीय नव संवत्सर भी एक पुनीत पर्व के समान है, जो हमारी वैदिक धरोहर का प्रतीक है। इस बार भारतीय नव वर्ष 2082, 30 मार्च चैत्र मास की शुक्ल...

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Hindu New Year 2025: हमारी समृद्ध एवं गौरवशाली स्वर्णिम सांस्कृतिक विरासत में पर्वों का विशेष महत्व है। भारतीय नव संवत्सर भी एक पुनीत पर्व के समान है, जो हमारी वैदिक धरोहर का प्रतीक है। इस बार भारतीय नव वर्ष 2082, 30 मार्च चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ हो रहा है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार चैत्र मास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि की संरचना आरंभ की। ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रंथ हिमाद्र्रि में वर्णन आता है कि- ‘चैत्रमासे जगद ब्रह्म ससर्ज प्रथमे अहनि। शुक्लपक्षे समग्रन्तु तथा सूर्योदये सति॥’

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अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने जगत की रचना की। इसी दिन से ब्रह्मा दिवस, सृष्टि सम्वत्, वैवस्वत आदि मन्वंतर का आरंभ, सतयुग आदि युग आरंभ, विक्रम सम्वत् का आरंभ होता है। इस प्रकार नवसम्वत्सर सृष्टि अर्थात ब्रह्मांण का जन्मदिवस है। भारतीय नवसम्वत्सर सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया का आधारभूत स्तंभ है। विक्रमी सम्वत् का संबंध सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत और ब्रह्मांड के ग्रहों एवं नक्षत्रों से है इसलिए भारतीय कालगणना पंथनिरपेक्ष होने के साथ सृष्टि रचना को दर्शाती है। सर्व प्राचीन ग्रंथ वेदों में भी इन सभी तथ्यों का उल्लेख मिलता है।

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चैत्र प्रतिपदा के पावन अवसर पर प्रकृति की शोभा भी चरमोत्कर्ष पर होती है। यह समय शीतकाल एवं ग्रीष्म ऋतु का मध्य बिंदू होता है। संपूर्ण प्रकृति उल्लास एवं सौंदर्य की प्रतिमूर्ति दिखाई देती है। वसंत के आगमन के साथ नूतन पुष्पों से सजे वृक्ष प्रकृति का शृंगार करते हुए दिखाई देते हैं। पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, स्थावर जंगम, सभी प्राणी नई आशा से अपने कर्मों में लगे दिखाई देते हैं। प्रकृति का संपूर्ण वातावरण नई ऊर्जा तथा आनंद से परिपूर्ण होता है।

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चैत्र मास को वेदों में मधुमास भी कहा गया है। हमारा यह नववर्ष प्रकृति के साथ नैसर्गिक रूप से जुड़ा हुआ है। हमारे पूर्वज मनीषी भी चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नव वर्ष का स्वागत करते आए हैं।

हमारे सर्व प्राचीन ग्रंथ वेदों में बताया गया है कि सृष्टि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन आज से 1,96,08,53,121 वर्ष पूर्व आरंभ हुई थी। संसार के जितने भी देश हैं उनका इतिहास कुछ सौ या हजार वर्ष पुराना है जबकि भारत का इतिहास 1.96 अरब वर्ष पुराना है। सृष्टि के आरंभिक काल से ही भारत संपूर्ण विश्व का वैदिक आध्यात्मिक ग्रंथों के माध्यम से मार्गदर्शन करता आया है। यह दिन भारतवर्ष के स्वर्णिम इतिहास से भी जुड़ा हुआ है। इसी दिन भगवान राम का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक एवं महर्षि दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की।

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सिखों के द्वितीय गुरु अंगद देव का जन्म दिवस भी इसी दिन मनाया जाता है। यशस्वी सम्राट विक्रमादित्य ने इसी चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को विक्रमी सम्वत् की शुरुआत की थी। चैत्र मास की प्रतिपदा से ही शक्ति और भक्ति के 9 दिन अर्थात नवरात्र स्थापना का पहला दिन भी यही है।
 
हमारे समस्त अनुष्ठानों, संकल्पों में जब काल व स्थान को बोला जाता है, तब इसी विक्रमी सम्वत् का वर्ष, मास, पक्ष, तिथि ही बोली जाती है। इस प्रकार यह नववर्ष  धार्मिक, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी सर्वमान्य है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को मनाया जाने वाला यह नव वर्ष हमारे राष्ट्र की सांस्कृतिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक परम्परा का संवाहक है। यह नव वर्ष विश्व की प्राचीनतम हमारी वैदिक संस्कृति का ध्वजवाहक है।  

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