जानिए, कैसे हुई नारियल की उत्पत्ति ?

Edited By Lata,Updated: 15 May, 2019 04:02 PM

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कहते हैं कि कोई भी पूजा-पाठ बिना नारियल के अधूरा होता है। हमारे हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है।

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कहते हैं कि कोई भी पूजा-पाठ बिना नारियल के अधूरा होता है। हमारे हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में भी इसे बेहद खास माना गया है। इसलिए इसका एक नाम श्री फल भी है। लेकिन क्या आपको पता है कि ये कहां से आया और धार्मिक कामों में इसको क्यों इतने महत्व दिया गया है। तो चलिए आज हम जानते हैं कि ये कहां से आया है, कैसे हुई इसकी उत्पत्ति।
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मान्यताओं के अनुसार नारियल की उत्पत्ति महर्षि विश्वामित्र के द्वारा की गई थी। इसकी कहानी प्राचीन काल के राजा सत्यव्रत से जुड़ी हुई है। सत्यव्रत एक प्रतापी राजा थे। जिनका ईश्वर में भरपूर विश्वास था। सब कुछ होने का बाद भी उनकी ये इच्छा थी कि वे किसी भी प्रकार से पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक जा सके। परंतु वहां कैसे जान है यह सत्यव्रत नहीं जानते थे। एक बार महर्षि विश्वामित्र तपस्या करने के लिए अपने घर से काफी दूर निकल गए थे और लंबे समय से वापस नहीं आए थे। उनकी अनुपस्थिति में क्षेत्र में सूखा पड़ गया और उनका परिवार भूखा-प्यासा भटक रहा था। तब सत्यव्रत ने उनके परिवार की सहायता की और उनकी देखरेख की ज़िम्मेदारी ली। जब ऋषि विश्वामित्र वापस लौटे तो उन्हें परिवार वालों ने राजा की अच्छाई बताया। वे राजा से मिलने उनके दरबार पहुंचे और उनका धन्यवाद किया। शुक्रिया के रूप में राजा ने ऋषि विश्वामित्र द्वारा उन्हें एक वर देने के लिए निवेदन किया। ऋषि ने भी उन्हें आज्ञा दी। तब राजा बोले कि वह स्वर्गलोक जाना चाहते हैं। अपने परिवार की सहायता का उपकार मानते हुए विश्वामित्र ने जल्द ही एक ऐसा मार्ग तैयार किया जो सीधा स्वर्गलोक को जाता था। राजा सत्यव्रत खुश हो गए और उस मार्ग पर चलते हुए जैसे ही स्वर्गलोक के पास पहुंचे ही थे कि स्वर्गलोक के देवता इंद्र ने उन्हें नीचे की ओर धकेल दिया।
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धरती पर गिरते ही राजा ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचे और सारी घटना बताई। देवताओं के इस प्रकार के व्यवहार से ऋषि विश्वामित्र भी क्रोधित हो गए। परंतु स्वर्गलोक के देवताओं से बातचीत कर हल निकाला गया। इसके मुताबिक राजा सत्यव्रत के लिए अलग से एक स्वर्गलोग का निर्माण करने का आदेश दिया गया। नए स्वर्गलोक के नीचे एक खंभे का निर्माण किया गया। माना जाता है कि यही खंभा समय आने पर एक पेड़ के मोटे ताने के रूप में बदल गया और राजा सत्यव्रत का सिर एक फल बन गया। जिसे श्रीफल या नारियल रूप में जाना जाता है और आज के समय में हर शुभ कामों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। 

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