जब बारात को पिलाया जाता था गंगाजल...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 May, 2020 08:05 AM

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मां गंगा और गंगाजल का भारत में विशेष महत्व है। जन्म से मृत्युपर्यन्त प्रत्येक संस्कार के अवसर पर गंगाजल का प्रयोग, पूजा-पाठ में नित्यप्रति गंगाजल का प्रयोग, चरणामृत के रूप में प्रयोग करना दैनिक दिनचर्या में शामिल है।

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Gangajal : मां गंगा और गंगाजल का भारत में विशेष महत्व है। जन्म से मृत्युपर्यन्त प्रत्येक संस्कार के अवसर पर गंगाजल का प्रयोग, पूजा-पाठ में नित्यप्रति गंगाजल का प्रयोग, चरणामृत के रूप में प्रयोग करना दैनिक दिनचर्या में शामिल है।

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भारतवर्ष में एक समय ऐसा भी था जब विवाह के अवसर पर गंगाजल पिलाया जाना शान की बात थी। जैसे आजकल बारात को मिनरल वाटर (बोतलबंद पानी) पिलाना स्टेट्स सिम्बल माना जाता है वैसे ही 1450-70 के काल में बारात को गंगाजल  पिलाना शान की बात थी।

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फ्रांसीसी यात्री टैवर्नियर ने अपने यात्रा संस्मरण में लिखा है कि उन दिनों हिंदुओं में विवाह के अवसर पर भोजन के पश्चात अतिथियों को गंगाजल पिलाने के लिए बड़ी-बड़ी दूर से गंगाजल मंगवाया जाता था। जो जितना अमीर होता था, उतना ही अधिक गंगाजल पिलाता था। दूर से गंगाजल मांगने में खर्च भी बहुत पड़ता था।

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टैवर्नियर लिखता है कि गंगाजल की व्यवस्था करने में कभी-कभी शादियों में 2-3 हजार रुपए तक खर्च कर दिए जाते थे।

अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगभग 650 वर्ष पूर्व 2-3 हजार रुपए मात्र गंगाजल की व्यवस्था करने में खर्च करना सामान्य जन के वश की तो बात नहीं होगी। समाज के धनी, शासक वर्ग में ही यह चलन रहा होगा किंतु टैवर्नियर ने यह चलन था, शब्द का प्रयोग किया यानी यह सामान्य बात थी, तो तब का समाज कितना धनी और समृद्ध था। शायद गंगा व गंगाजल के प्रति श्रद्धा ही इसके मूल में थी।

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विद्वान पं. गंगाशंकर मिश्र ने अपने आलेख में श्रीगंगा और यमुना के जल का उल्लेख किया है कि पेशवाओं के लिए बहंगियों, कांवड़ों में रखकर गंगाजल पूना भेजा जाता था। मराठी पुस्तक ‘पेशावईच्या सवालीत’ (पूना 1937) से पता लगता है कि काशी से पूना ले जाने के लिए एक बहंगी गंगाजल का खर्च 20 रुपए पड़ता था। गढ़मुक्तेश्वर व हरिद्वार से भी पेशवाओं के लिए जल भेजा जाता था।

श्री मिश्रा ने लिखा है कि गंगाजल की महिमा बहुत है। श्री बाजीराव पेशवा को किसी विद्वान ने बताया था कि गंगाजल के सेवन से वह ऋण मुक्त हो जाएंगे। मृतप्राय: व्यक्ति को गंगाजल देने का प्रचलन तो दक्षिण भारत में भी है। विजयनगर के महाराज श्रीकृष्ण राय जी जब सन् 1525 में मृतप्राय थे तो उन्हें गंगाजल दिया गया और वह ठीक हो गए।

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हिंदुओं के प्रिय जलतीर्थ आलेख में श्री बैकुंठनाथ महरोत्रा लिखते हैं कदाचित भगवती भागीरथी ऐसी शिलाओं पर से बहती है कि उनके विकृत जल में भी कमी कृमि नहीं पड़ते। गंगा में स्नान करने वालों का वर्ण भस्मावलेपित भगवान शंकर के शरीर-सा गौर हो जाता है।

श्री गुलाम हुसैन ने अपने बंगाल के इतिहास रियाजु-स-सलमीन में लिखा है कि मधुरता, स्वाद और हल्केपन में गंगाजल के बराबर कोई दूसरा जल नहीं है। कितने ही दिनों तक रखने पर भी यह बिगड़ता नहीं।

यही तो है गंगाजल की विशेषता। अमृत तुल्य है गंगाजल। एक गीत के बोल हैं, गंगा तेरा पानी अमृत, झर-झर बहता जाए। इस अविरल बहते गंगाजल अमृत की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए इसे हमें गंदा होने, अपवित्र होने, प्रदूषित होने से बचाना होगा। गंगाजल की स्वच्छता बनाए रखने में योगदान करें।

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