Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Feb, 2024 11:17 AM
एक बार नदी को अपने प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया। नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहा कर अपने साथ ले जा
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Inspirational Context: एक बार नदी को अपने प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया। नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहा कर अपने साथ ले जा सकती हूं।
नदी ने बड़े ही गर्वीले अभिमानपूर्वक शब्दों में समुद्र से कहा, बताओ तुम्हारे लिए क्या लाऊं ? तुम जो चाहो मैं उसे जड़ सहित उखाड़ कर ला सकती हूं।
समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है। उसने नदी से कहा, “यदि मेरे लिए तुम कुछ लाना चाहती हो तो थोड़ी-सी घास उखाड़ ले आओ।”
समुद्र की बात सुनकर नदी बोली, “बस इतनी-सी बात, अभी आपकी सेवा में हाजिर करती हूं।”
नदी ने अपने पानी का पूरा वेग घास को उखाड़ने के लिए लगाया पर घास नहीं उखड़ी। नदी ने हार नहीं मानी और बार-बार प्रयास किया पर घास बार-बार पानी के वेग के सामने झुक जाती और उखड़ने से बच जाती। अंतत: नदी को असफलता ही हाथ लगी।
हार-थक कर निराश नदी समुद्र के पास पहुंची और अपना सिर झुकाकर बोली, “मैं वृक्ष, मानव, पहाड़ आदि को बहाकर अपने साथ ला सकती हूं, पर घास को उखाड़ कर नहीं ला सकती। घास को उखाड़ने के लिए मैंने पूरा वेग लगाया। पर वह झुक कर बच जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर निकल जाती हूं।”
समुद्र ने नदी की बात को ध्यानपूर्वक सुना और मुस्कुराते हुए बोला, “जो पहाड़, वृक्ष या उनके जैसे कठोर होते हैं वे आसानी से उखड़ जाते हैं, क्योंकि उनमें विनम्रता नहीं होती और जिसने घास जैसी विनम्रता सीख ली हो उसे प्रचंड वेग भी नहीं उखाड़ पाता।” समुद्र की बात सुनकर नदी का घमंड चूर-चूर हो गया।