MP के इस मंदिर में इंसानों के उठने से पहले कोई अनजानी शक्ति करती है जलाभिषेक !

Edited By Updated: 22 Jul, 2019 12:30 PM

भगवान शिव के प्रिय मास सावन में आज हम आपको कुछ अनोखा बताने जा रहे हैं, जिसका आजतक कोई भी सबूतों को देखकर भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाया है।

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भगवान शिव के प्रिय मास सावन में आज हम आपको कुछ अनोखा बताने जा रहे हैं, जिसका आजतक कोई भी सबूतों को देखकर भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाया है। हम आपको अपनी एक ऐसे अदृश्य शिव भक्त के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे न तो कभी किसी न देखा है और न महसूस किया है लेकिन फिर भी हर रोज़ उस शिव भक्त के होने का प्रमाण मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में मिल जाता है। तो कौन है ये अदृश्य शिव भक्त, कैसे देता है अपनी मौजूदगी का प्रमाण और कौन सी वो महादेव की ऐसी पवित्र जगह है, जहां वो हर रोज़ शिव पूजा के लिए आता है। चलिए देर न करते हुए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
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घने जंगलों के बीच बना शिव जी का ये रहस्यमयी मंदिर मुरैना जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर पहाडगढ़ में स्थित है। जिसका रहस्य आजतक कोई नही जान पाया कि कौन अदृश्य भक्त ब्रह्म मुहूर्त में शिव की आराधना करता है लेकिन ऐसा सिर्फ सावन में नहीं होता और इस चमत्कार को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।

घने जंगलों में ईसुरा पहाड़ की गुफा में बने इस शिवमंदिर में पट खुलते ही पुजारी को शिवलिंग का 21 मुखी, 11 मुखी 7 मुखी बेलपत्रों और चावल, फूलों से अभिषेक हुआ प्रतिदिन मिलता है।प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच बसे ईश्वरा महादेव का रहस्य वर्षों बाद भी नहीं सुलझ सका है। ऐसा बताया जा रहा है कि ईश्वरा महादेव मंदिर पर सुबह चार बजे कोई अदृश्य शक्ति पूजा करती है। इसे जानने के लिए कई प्रयास किए गए लेकिन बार-बार रहस्य जानने की ये कोशिश विफल होती जा रही है।
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मुरैना के इस गुफा नुमा पहाड़ के नीचे शिवलिंग पर प्राकृतिक झरने से शिवलिंग के शीर्ष पर जलाभिषेक हो रहा है और ब्रह्म मुहूर्त में कोई सिद्ध शक्ति उपासना करती है। पहाडगढ़ के जंगलों में पहाड़ों के बीच बना ईश्वरा महादेव का ये सिद्ध मंदिर तो शिव भक्तों के लिए आस्था का केंद्र तो बना ही हुआ है। इसके अलावा भी इस जगह कुछ ऐसा है जो लोगों को यहां आने के लिए प्रेरित करता है। बारिश के मौसम में यहां प्राकृतिक छटा देखने लायक होती है, इसलिए यह धार्मिक स्थल के साथ अच्छा पिकनिक स्पॉट भी माना जाता है।

ग्रामीणों का कहना है कि एक सिद्ध बाबा ने इन पहाड़ों के बीच शिवलिंग स्थापित कर तपस्या की थी। तभी से शिवलिंग के शीर्ष पर प्राकृतिक झरना अविरल जलाभिषेक कर रहा है। जब भी ब्रह्म मुहूर्त में पुजारी मंदिर के पट खोलते हैं तो भौचक्के रह जाते हैं क्योंकि पट खोलते ही एक ऐसा नज़ारा देखने को मिलता है जो वहां मौजूद हर किसी के होश उड़ा देता है। हर रोज़ पुजारी के पट खोलने से पहले शिव शीर्ष पर 21 मुखी व 11 मुखी बेल पत्र, चावल और फूल चढ़े हुए मिलते हैं। लोगों का कहना है कि इस मंदिर के गर्भ गृह में रहस्यमयी पूजा को जानने के लिए किसी ने शिवलिंग के ऊपर हाथ रख लिया था लेकिन तभी अचानक तेज आंधी चली और उसका हाथ कुछ देर के लिए हटा और अदृश्य भक्त शिव का पूजन कर गया और जिसने हाथ रखा था वो कोढ़ी हो गया।
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शिवलिंग पर ब्रह्म मुहूर्त में बेलपत्र कौन चढ़ाता है इसका रहस्य जानने के लिए कई कोशिशें की गईं, जिसमें लगातार असफलता ही हाथ लग रही है। इसलिए वहां के संत-महात्माओं ने एक ठोक निर्णय लेते हुए किसी भी हाल में रहस्य को जानने की ठानी। संत महात्माओं ने मंदिर के अंदर ही अपना ढेरा जमा लिया। वहां मौजूद होने के बाद भी अबतक वो रहस्य नहीं जान पाए हैं क्योंकि हर रोज़ ब्रह्म मुहुर्त होने से कुछ समय पहले ही उनकी झपकी लग जाती है और इसी मौके की नज़ाकत को देखते हुए पल भर में ही अनजानी शक्ति शिवलिंग का विधिवत पूजा करके, कहीं गायब हो जाती है और एक बार फिर रहस्य, रहस्य ही रह जाता है। 

ऐसे में लोगों का कहना है कि लंका के राजा विभीषण को सप्त चिरंजीवियों में से एक माना गया है और इस शिविलिंग की स्थापना भी उन्होंने ही कराई थी। इसलिए माना जाता है कि वही आज भी यहां पूजा करने आते हैं। 

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