Kalank Chaturthi story: श्रीकृष्ण पर भी लगा था चोरी का इल्जाम, वजह थी गणेश चतुर्थी पर चन्द्र दर्शन

Edited By Updated: 26 Aug, 2025 01:35 PM

kalank chaturthi story

Ganesh Chaturthi 2025 moon story: यह कथा श्रीमद् भागवत पुराण से है। सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्मा जी के समक्ष बाधाएं उत्पन्न होने लगीं तो उन्होंने गणेश जी की स्तुति की और उनसे सृष्टि निर्माण निर्विघ्न रूप से सम्पन्न होने का वर मांगा। उस दिन भाद्रपद...

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Ganesh Chaturthi 2025 moon story: यह कथा श्रीमद् भागवत पुराण से है। सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्मा जी के समक्ष बाधाएं उत्पन्न होने लगीं तो उन्होंने गणेश जी की स्तुति की और उनसे सृष्टि निर्माण निर्विघ्न रूप से सम्पन्न होने का वर मांगा। उस दिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। तब गणेश जी ने ब्रह्मा जी को अभीष्ट वर प्रदान किया। तब से इस दिन ‘गणेश उत्सव’ मनाया जाता है। इसी दिन जब गणेश जी पृथ्वी लोक पर आ रहे थे, तब चंद्रमा ने भगवान गणेश जी का उपहास उड़ाया। गणेश जी ने उसे श्राप दिया कि आज के दिन जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा, वह मिथ्या कलंक का भागी होगा। 

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चंद्रमा लज्जित हुए। ब्रह्मा जी तथा देवताओं की प्रार्थना पर चंद्रमा को क्षमा करते हुए गणेश जी ने कहा कि जो शुक्ल पक्ष की द्वितीया के चंद्र दर्शन करके चतुर्थी को विधिवत मेरा पूजन करेगा, उसे चंद्र दर्शन का दोष नहीं लगेगा।

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द्वापर युग में द्वारिकापुरी में सत्राजित नामक यदुवंशी को भगवान सूर्य की कृपा से स्यमंतक मणि प्राप्त हुई। वह उस मणि को धारण कर राजा उग्रसेन की सभा में आया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने राष्ट्र कल्याण में उसे दिव्य मणि उग्रसेन को भेंट करने की सलाह दी। 

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सत्राजित के मन में यह भाव आया कि शायद श्रीकृष्ण उनकी मणि लेना चाहते हैं। उसने यह मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक समय प्रसेन मणि को गले में डाल कर आखेट के लिए वन में गया जहां वह सिंह द्वारा मारा गया लेकिन सत्राजित ने भगवान श्रीकृष्ण पर मणि छीनने का आरोप लगाया। प्रजा में मिथ्या आरोप का प्रचार जान कर श्रीकृष्ण वन में मणि तथा प्रसेन को ढूंढने गए। उस वन में जाम्बवंत जी अपनी पुत्री जाम्बवती के साथ रहते थे। जब श्री कृष्ण मणि ढूंढते-ढूंढते उस गुफा में जा पहुंचे जहां जाम्बवंत जी रहते थे, तब श्रीकृष्ण का जाम्बवंत से युद्ध हुआ। जाम्बवंत जी ने श्रीकृष्ण को पहचान लिया कि वह तो उनके स्वामी प्रभु श्रीराम हैं। 

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तब जाम्बवंत ने अपनी पुत्री का विवाह भगवान श्रीकृष्ण से किया तथा स्यमंतक मणि भी दे दी। इस प्रकार श्रीकृष्ण मिथ्या कलंक से मुक्त हुए। 

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