Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Oct, 2019 07:28 AM
करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक का व्रत है। जो विशेष तौर पर सुहागन महिलाओं द्वारा सदा सुहागन रहने की कामना से किया जाता है। इसे करक-चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
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करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक का व्रत है। जो विशेष तौर पर सुहागन महिलाओं द्वारा सदा सुहागन रहने की कामना से किया जाता है। इसे करक-चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में महिलाएं सूर्योदय से पहले सुबह चार बजे के करीब शिव-परिवार की पूजा करके व्रत का संकल्प लेती हैं। वे नहा-धोकर सबसे पहले सासू मां के लिए बया निकालती हैं। ‘बया’ यानी एक थाली में फल, मिठाई, नारियल, कपड़े और सुहाग का सामान जैसे रिबन, चूडिय़ां, मेहंदी, सिंदूर, बिंदी आदि रख कर सासू मां को दिया जाता है और उनके पांव छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। इसके बाद ‘सरगी’ खाने का विधान है। सरगी में फल, मिठाई वगैरह सासू मां की तरफ से और लड़की के मायके की तरफ से भी भेजे जाते हैं। सरगी खाने के बाद पूरा दिन जब तक रात को चांद नहीं निकलता तब तक निर्जला रह कर औरतें व्रत रखती हैं। जब रात को चांद निकलता है तो वे अर्घ्य देकर पति के हाथों जल ग्रहण करती हैं और तब उनका व्रत पूरा होता है।
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करवा खेलना
करवा चौथ के दिन शाम को सभी सुहागिनें खूब सज-धज कर एक नियत स्थान पर इकट्ठी होती हैं और गोल घेरे में बैठ कर अपनी पूजा की थाली एक-दूसरे के साथ बांटती हुई करवा के गीत गाती हैं। इसी दौरान पंडित जी महिलाओं को करवाचौथ की कथा सुनाते हैं। फिर थाली बंटाते हुए ये गीत गाती हैं-
करवा चौथ: ये हैं व्रत से जुड़ी पारंपरिक कथाएं
वीरा कुड़िए करवड़ा, सर्व सुहागन करवड़ा,
ए कटी न अटेरीं न, खुंब चरखड़ा फेरीं ना,
ग्वांड पैर पाईं ना, सुई च धागा फेरीं ना,
रुठड़ा मनाईं ना, सुतड़ा जगाईं ना,
बहन प्यारी वीरां, चंद चढ़े ते पानी पीना,
लै वीरां कुडि़ए करवड़ा, लै सर्व सुहागिन करवड़ा।