Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Aug, 2023 08:04 AM
दुनिया में कई ऐसे किले हैं, जिन्हें दुश्मन कभी नहीं जीत सका। भारत में मौजूद ऐसे किलों के बारे में तो आपको मालूम ही होगा, आज आपको जापान के ऐसे
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Kumamoto Castle: दुनिया में कई ऐसे किले हैं, जिन्हें दुश्मन कभी नहीं जीत सका। भारत में मौजूद ऐसे किलों के बारे में तो आपको मालूम ही होगा, आज आपको जापान के ऐसे ही एक किले की कहानी सुनाते हैं। यह किला, जापान के चार बड़े द्वीपों में से एक क्यूशू के कुमामोतो शहर में सैकड़ों साल से अजेय खड़ा है। इसे जापान के लोग कुमामोतो कैसल के नाम से जानते हैं। इसकी सबसे बड़ी खूबी है इसका रंग। यह बिल्कुल काला है जो आमतौर पर किसी इमारत का रंग नहीं होता।
जापान में यूं तो ऐसे कई किले हैं, जो मशहूर हैं। इनमें से एक है हिमेजी का हाकुरो-जो किला, यानी सफेद बाग किला। इसे यूनेस्को की विरासत की लिस्ट में रखा गया है। इसकी सबसे बड़ी खूबी है इसके 80 निगरानी टॉवर। फिर मात्सुमोतो का तेल जैसे रंग वाला कारासु-जो यानी कौवा किला है। यह जापान का सबसे पुराना आबाद किला है। इसे 1504 में बनाया गया था।
टोक्यो, ओसाका, नगोया जैसे बड़े शहरों के अलावा जापान के कमोबेश हर छोटे शहर में ऐसी किलेबंदी वाली इमारतें मिल जाएंगी। सबके आस-पास खंदकें खुदी हुई हैं, जिनसे जापान के लड़ाकू इतिहास की झलक मिलती है। जापान के इतिहास में एक दौर ऐसा था जब ये छोटे-छोटे सूबों में बंटा था। इनमें आपस में अक्सर युद्ध होते रहते थे इसलिए हर शहर ने अपने बचाव के लिए किले बनवाए थे।
इन्हीं किलों में से सबसे चर्चित किला है कुमामोतो का। कुछ ही साल पहले कुमामोतो की मुरम्मत का काम पूरा हुआ है। 16 अप्रैल, 2016 को आए भयंकर भूकंप ने कुमामोतो किले को बहुत नुकसान पहुंचाया था जिसके बाद इसकी मुरम्मत करके इसे पुराने रंग-रूप में लाने की कोशिश शुरू कर दी गई थी। यह कुछ-कुछ एक पहेली हल करने जैसा काम था। हर टुकड़े को सही जगह लगाना बहुत बड़ी चुनौती थी। पहले ही कुमामोतो के किले की हालत ठीक नहीं थी, भूकंप ने इसे बहुत नुकसान पहुंचाया था।
इसकी बुनियाद हिल गई थी। निगरानी टावर ध्वस्त हो चुके थे। छतों की टाइलें टूटकर बिखर चुकी थीं यानी कभी न जीता जा सकने वाला यह किला खंडहर में तब्दील हो चुका था। इसके बाद जापान की सरकार ने इसकी मुरम्मत करवाई जिसमें करीब 63.4 अरब येन की रकम खर्च की गई।
400 year old fort 400 साल पुराना किला
कुमामोतो का यह काले रंग का किला करीब 400 साल पुराना है। इसे जापान के इतिहास के समुराई दौर में बनाया गया था। यह वह दौर था जब जापान में सूबेदारों और सामंतों के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई थी। कुमामोतो का किला 1607 में बना था। इससे पहले क्यूशू द्वीप में औद्योगिक क्रांति की आमद बस होने ही वाली थी। तरक्की के इस इंकलाब से पहले समुराई सामंतों में खूनी भिड़ंत चल रही थी।
कुमामोतो के दक्षिण में स्थित सामंत टोयोटोमी हिदेयोशी की मौत के बाद इलाके में घमासान छिड़ा था। टोयोटोमी इलाके के रसूखदार समुराई और राजनेता थे। अब हर कोई उनकी सियासी विरासत पर हक जमाने की जुगत में था। मौका देखकर विरोधी शिमाजु कुनबे के लोगों ने सोचा कि टोयोटोमी के सूबे पर कब्जा कर लें। इस हमले से बचने के लिए टोयोटोमी के सेनापति रहे काटो कियोमासा ने यह किला बनवाया था। उन्हें मालूम था कि समुराई या तो मरते हैं या मारते हैं। ऐसे में काटो को ऐसा किला बनाना था, जिसे कोई जीत ही न सके।
इस कैसल में 29 फाटक और 49 निगरानी टॉवर थे। उस हमले में तो इस किले का बाल भी बांका नहीं हुआ, कुमामोतो के किले का असल इम्तिहान तो 200 साल बाद आया। तमाम घरेलू युद्धों के बाद मेजी राजवंश 1877 में जापान को एकजुट करने में जुटा हुआ था लेकिन सत्सुमा वंश के समुराई इसके लिए राजी नहीं थे। समुराई सेनापति सैगो टकामोरी ने राजधानी टोक्यो की तरफ कूच कर दिया। इसके लिए सैगो को कुमामोतो के किले को जीतना जरूरी था क्योंकि वह टोक्यो के रास्ते में पड़ता था।
कुमामोतो का किला उस वक्त जापान की शाही सेना का सबसे बड़ा ठिकाना था। सैगो ने तय किया कि उसे हर हाल में इस किले को जीतना होगा। जापान के राजा मेजी को भी पता था कि किले पर 20 हजार समुराई धावा बोलने वाले हैं। इसके लिए कुमामोतो के किले की जबरदस्त मोर्चाबंदी की गई थी। मेजी को अपनी हुकूमत बचाए रखने के लिए हर हाल में कुमामोतो को बचाना था।
19 फरवरी से 12 अप्रैल, 1877 तक समुराई ने लगातार किले को जीतने की कोशिश की। आस-पास के इलाके जला दिए। लोगों को मार डाला मगर वे किला जीतने में कामयाब नहीं हो सके। इस दौरान किले में एक बार गलती से आग भी लग गई। समुराई अपने मकसद में नाकाम रहे और जापान में मेजी राजशाही बच गई। राजशाही को समुराई से बचाने में कुमामोतो के किले ने बहुत अहम रोल निभाया था मगर कुदरत के हंटर ने इसे तहस-नहस कर दिया था लेकिन जीर्णोद्धार करके जापान के लोग अपने गौरवशाली इतिहास के इस सुनहरे पन्ने को दोबारा उसी रूप में वापस ले आए हैं।