जैन महाकुंभ: जैन धर्म के पहले मोक्षगामी थे भगवान बाहुबली

Edited By Updated: 20 Feb, 2018 12:34 PM

lord bahubali was the first liberator jainism

बाहुबली जैन धर्म के लोगों के भगवान कहलाते हैं। कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में इनकी 57 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित है, जो जैन धर्म के लोगों के लिए एक बड़ा तीर्थ स्थान माना जाता है। भगवान बाहुबली की इस विशाल प्रतिमा का हर 12 वर्ष पर महामस्तकाभिषेक होता है।

बाहुबली जैन धर्म के लोगों के भगवान कहलाते हैं। कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में इनकी 57 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित है, जो जैन धर्म के लोगों के लिए एक बड़ा तीर्थ स्थान माना जाता है। भगवान बाहुबली की इस विशाल प्रतिमा का हर 12 वर्ष पर महामस्तकाभिषेक होता है। इस बार यह आयोजन 17 फरवरी 2018 से शुरू हो गया है और यह आयोजन 20 दिन तक चलेगा।आपको बता दें कि जैन धर्म के अनुसार भगवान बाहुबली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे। अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती से युद्ध के पश्चात वह मुनि बने। उन्होंने एक वर्ष तक कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान किया। जिसके बाद उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह केवली भी कहा जाने लगा। जैन धर्म के अनुसार भगवान बाहुबली को गोम्मटेश के नाम से भी जाना जाता है, जो गोम्मतेश्वर प्रतिमा के स्थापित होने का बाद पड़ा। यह मूर्ति 57 फीट ऊंची है, प्रतिमा श्रवणबेलगोला, कर्नाटक, व भारत में स्थित है।


पौराणिक कथा
कौन थे भगवान बाहुुबली ऋषभदेव जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे। जैन सिद्धान्त के अनुसार 'तीर्थंकर' नाम की एक पुण्य कर्म प्रकृति है। तीर्थंकर वह व्यक्ति को कहा जाता है कि जिन्होनें पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर विजय प्राप्त की हो। ऋषभदेव के दो पुत्र हुए जिनका नाम भरत और बाहुबली था। भगवान बाहुबली को विष्णु का अवतार माना जाता था। वे अयोध्या के राजा थे और उनकी दो रानियां थीं।एक रानी से उनके 99 पुत्र और एक पुत्री तथा दूसरी से गोम्मटेश्वर भगवान बाहुबली तथा एक पुत्री सुंदरी थी। बाहुबली का अपने ही भाई भरत से उनके शासन, सत्ता के लोभ तथा चक्रवर्ती बनने की इच्छा के कारण दृष्टि युद्ध, जल युद्ध और मल्ल युद्ध हुआ। इसमें बाहुबली विजयी रहे, लेकिन उनका मन ग्लानि से भर गया और उन्होंने सब कुछ त्यागकर तप करने का निर्णय लिया। अत्यंत कठिन तपस्या के बाद वे मोक्षगामी बने इसलिए जैन धर्म में भगवान बाहुबली को पहला मोक्षगामी माना जाता है।

 

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