Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Aug, 2025 02:00 PM

Lord Shiva blessings: ‘शिव’ शब्द अनेक अर्थों से युक्त है, जिनमें ‘शि’ ध्वनि और ‘व’ प्रवीणता का प्रतीक है। सकल संसार की शक्ति और उसकी निरंतर प्रवीणता या चलायमान ही शिव हैं। भगवान शिव का लिंग रूप पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है जो शून्य और शिव...
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Lord Shiva blessings: ‘शिव’ शब्द अनेक अर्थों से युक्त है, जिनमें ‘शि’ ध्वनि और ‘व’ प्रवीणता का प्रतीक है। सकल संसार की शक्ति और उसकी निरंतर प्रवीणता या चलायमान ही शिव हैं। भगवान शिव का लिंग रूप पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है जो शून्य और शिव के निराकार वास्तविक रूप को दर्शाता है। अनादि काल से शिवलिंग की पूजा-अर्चना का विधान हमारे भारतवर्ष के पौराणिक इतिहास और कालचक्र में स्पष्ट और विस्तृत रूप से मिलता है।

सर्वप्रथम ॐ की उत्पत्ति और उद्भव हमारे लगभग सभी हिन्दू धर्म ग्रंथों में मिलता है, जोकि वास्तविक रूप में शिव के नटराज रूप का प्रतीक है तथा नम: शिवाय के साथ पंचाक्षर मंत्र बन जाता है। इस मंत्र का जाप, स्मरण ही शिव की पूजा, अर्चना और उपासना का प्रमुख आधार है।

श्री रामचरित मानस के प्रारंभ में गोस्वामी जी ‘वंदे बोधमयं नित्यं गुरु शंकर रूपिगम’ कहते हुए उन्हें कल्याणकारी तथा मार्गदर्शक गुरु के रूप में वंदित करते हैं और ‘भवानी शकरौ वंदे, श्रद्धा विश्वास रूपिगौ’ कह कर भी उनको समस्त शिव परिवार सहित नमस्कार करते हैं।

भारतवर्ष में विभिन्न स्थानों पर शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग शिव के प्रकट रूप और भक्तों के हितकारी स्वरूप का महत्व ही प्रतिपादित करते हैं।

श्रद्धा से परिपूर्ण शिव की पूजा-अर्चना कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है तथा बिल्व पत्र और जल मात्र से निष्काम भावना से किया गया शिव का जलाभिषेक ही उनकी कृपा को प्राप्त करने का सुगम साधन बन जाता है।

अनेक नामों, रूपों में प्रकट हुए शिव अपने अनगिनत अवतारों से मानव मात्र के कल्याण और भक्ति की अनादि काल से बहती धारा को निरंतर प्रवाहित करने के लिए हर युग में भक्ति और शक्ति का संगम करते हैं।
