महामृत्युंजय मंत्र जपते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Dec, 2018 12:57 PM

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महामृत्युंजय मंत्र: शिव पुराण में भगवान शिव को खुश करने के लिए बहुत सारे मंत्र बताए गए हैं। आज हम आपको एक ऐसा महामंत्र बताने वाले हैं, जिसके जाप से संसार का हर रोग और कष्ट दूर हो जाता है। महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का बहुत प्रिय मंत्र है....

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शिव पुराण में भगवान शिव को खुश करने के लिए बहुत सारे मंत्र बताए गए हैं। आज हम आपको एक ऐसा महामंत्र बताने वाले हैं, जिसके जाप से संसार का हर रोग और कष्ट दूर हो जाता है। महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का बहुत प्रिय मंत्र है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति मौत पर भी जीत हासिल कर सकता है। इस मंत्र के जाप से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और असाध्य रोगों का भी नाश होता है। शास्त्रों में इस मंत्र को अलग-अलग संख्या में करने का विधान है।

महामृत्युंजय मंत्र -

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥

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महामृत्युंजय पाठ 1100 बार करने पर भय से छुटकारा मिलता है। महामृत्युंजय मंत्र 108 बार पढ़ने से भी फायदा मिलता है। 

ओम त्र्यंबकम यजामहे मंत्र का 11000 बार जाप करने पर रोगों से मुक्ति मिलती है।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप सवा लाख बार करने से पुत्र और सफलता की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही अकाल मृत्यु से भी बचाव होता है।


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महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय रखें इन बातों का ध्यान-

मंत्रों का जाप सुबह-शाम किया जाता है।

जैसी भी समस्या क्यों न हो, यह मंत्र अपना चमत्कारी प्रभाव देता है।

भगवान शिव के मंत्रों का जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए।

भगवान शिव की प्रतिमा, फोटो या शिवलिंग के सामने आसन बिछाकर इस मंत्र का जाप करें।
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मंत्र जाप शुरू करने से पहले भगवान शिव को बेलपत्र और जल चढ़ाएं।

पूरी श्रद्धा और विश्वास से साधना करने पर इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

महामृत्युंजय चालीसा का उच्चारण सही तरीके और शुद्धता से करना चाहिए।

मंत्र उच्चारण के समय एक शब्द की गलती भी भारी पड़ सकती है।

मंत्र के जप के लिए एक निश्चित संख्या निर्धारित कर लें। जप की संख्या धीरे-धीरे बढ़ाएं लेकिन कम न करें।

महामृत्युंजय का मंत्र जाप धीमे स्वर में करें। मंत्र जप के समय इसका उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए।
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महामृत्यु मंत्र के दौरान धूप-दीप जला कर रखें।

मंत्र का जप सदैव पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। जब तक मंत्र का जप करें, उतने दिनों तक तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
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