महर्षि दधीचि ने अपने तपोवन से यहां किया था देह त्याग

Edited By Updated: 29 Aug, 2017 07:36 AM

maharishi dadhichi jayanti special

वेद व्याख्या के अनुसार निरंकार शिव ने सृष्टि संरचना में विष्णु को प्रकट किया व क्रम में विष्णु ने नाभिकमल से ब्रह्मा को प्रकट किया था। अथर्ववेद के निर्माता महर्षि अथर्व ब्रह्माजी के ज्येष्ठ पुत्र हुए व इसी क्रम में महर्षि अथर्व

वेद व्याख्या के अनुसार निरंकार शिव ने सृष्टि संरचना में विष्णु को प्रकट किया व क्रम में विष्णु ने नाभिकमल से ब्रह्मा को प्रकट किया था। अथर्ववेद के निर्माता महर्षि अथर्व ब्रह्माजी के ज्येष्ठ पुत्र हुए व इसी क्रम में महर्षि अथर्व के पुत्र व ब्रह्मा पौत्र व विष्णु के पड़पौत्र दधीचि हुए। पौराणिक मान्यतानुसार कालांतर में क्षत्रियों व ब्राह्मणों के बीच युद्ध में राजा क्षुव ने दधीचि का शरीर विच्छिन्न कर दिया। दधीचि के गुरु शुक्राचार्य ने मृत संजीवनी मंत्र के प्रयोग से इन्हें जीवित किया। दधीचि ने शुक्राचार्य से मृत संजीवनी विद्या लेकर अश्विनी कुमारों को ब्राह्म विद्या का ज्ञान दिया। इंद्र के मना करने पर भी दधीचि ने अश्वमुख से इन्हें ज्ञान दिया जिससे वे अश्वशिरा कहलाए। क्रोधित इंद्र द्वारा इनके शिरोच्छेदन उपरांत भी यह जीवित हो उठे। महर्षि दधीचि ने नारायण कवच प्राप्त किया था।


सनातन संस्कृति में परम शिव भक्त महर्षि दधीचि को सम्पूर्ण वेद ज्ञाता, परम तपस्वी, महादानी के रूप में जाना जाता है। निरुक्त नामक वेदांग के रचयिता महर्षि यास्क के अनुसार महर्षि दधीचि के पिता ऋषि अथवा माता देवी चित्ति थी। इनका पैतृक नाम दध्यंच था तथा उनकी पत्नी का नाम गभस्तिनी था। शिव भक्त महर्षि दधीचि के तपोबल पर ही स्वयं शिव शंकर ने पुत्र रूप में अपने अवतार ऋषि पिप्पलाद बनकर जन्म लिया था। अहंकार रहित महर्षि दधीचि के परोपकार से तपोवन के सभी जीवों का उत्थान हुआ था।


शास्त्रानुसार महर्षि दधीचि का तपोवन गंगा तट पर नैमिषारण्य मिश्रिख तीर्थ सीतापुर, उत्तर प्रदेश के घने जंगलों के मध्य था। महर्षि दधीचि ने अपने तपोवन में जहां देह त्याग किया, वहीं स्वर्ग गऊ कामधेनु ने अपनी दुग्ध धारा छोड़ी। अत: उस तीर्थ क्षेत्र को दुग्धेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है तथा इसी स्थान पर ऋषि पिप्पलाद ने तपस्या करके शिव तत्व प्राप्त किया था। अत: इसी तीर्थक्षेत्र को पिप्पलाद तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। 

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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