Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 May, 2023 07:53 AM
नर सेवा, नारायण सेवा’ अर्थात ‘मानव सेवा ही भगवान का सिमरन है’ का मिशन लेकर समाज के उत्थान और कल्याण
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Mahasha gokul chand ji punyatithi: ‘नर सेवा, नारायण सेवा’ अर्थात ‘मानव सेवा ही भगवान का सिमरन है’ का मिशन लेकर समाज के उत्थान और कल्याण में पूरा जीवन अर्पित करने वालों में से एक थे बटाला (पंजाब) के प्रसिद्ध समाजसेवी, त्यागी, तपस्वी व दैनिक प्रार्थना सभा के संस्थापक और संचालक महाशय गोकुल चन्द जी।
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उनका जन्म 10 जून, 1922 को बटाला के प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। आर्य समाजी पिता चुन्नी लाल और माता के धार्मिक कामों में हमेशा शामिल होने के कारण बाल्यकाल में उन्हें सामाजिक कामों में रुचि होने लगी। गंभीर रोग के बाद डॉक्टरों की लगन और मेहनत से इनका जीवन बचाया जा सका। जीवन दान मिलने पर बाल गोकुल चंद ने प्रण किया कि वह उम्रभर शादी नहीं करेंगे और जीवन समाज सेवा में लगाएंगे।
13 वर्ष की आयु में ही नगर में बालसभा के गठन पर उसके प्रधान बने और बच्चों में देशभक्ति तथा समाज के प्रति समर्पण का भाव जागृत करना शुरू किया। देश के बंटवारे के बाद उन्होंने कुछ साथियों के साथ ‘भूखे को अन्न’, ‘रोगी को औषधि’, ‘अनपढ़ को शिक्षा’ का महान विचार लेकर दैनिक प्रार्थना सभा का गठन किया। शहर के दानी सज्जनों के सहयोग से लंगर सेवा शुरू की, छोटे से पुस्तकालय की स्थापना की जो समय के साथ नगर का सबसे बड़ा पुस्तकालय बन गया। उन्होंने बटाला में कई कालेज, अस्पताल, लेबोरेटरी, एक्स-रे सेंटर आदि की स्थापना की। हरिद्वार, वृन्दावन व चिंतपुरनी में धर्मशालाओं, वृद्धाश्रम, गऊशालाएं आदि अनेक संस्थानों का निर्माण समाज के सहयोग से करवाया।
वह जरूरतमन्द परिवारों को हर माह नि:शुल्क राशन भी उपलब्ध करवाते थे। उनके द्वारा संचालित दैनिक प्रार्थना सभा के कार्य देखने और महाशय जी के सादगी भरे जीवन से प्रभावित होकर देश के कई महापुरुषों का बटाला की धरती पर आना हुआ जिन्होंने उन्हें ‘सफेद कपड़ों में संत’ की उपाधि दी।
उनका जीवन सादगी की मिसाल था। वह अपना सारा कामकाज स्वयं करते और सारी उम्र खादी के वस्त्र ही पहनें। 96 वर्ष की आयु में 15 मई, 2021 को वह मोक्ष धाम चले गए।