Edited By Jyoti,Updated: 15 Jul, 2020 05:32 PM
वैराग्यवान भक्त तुलाधार अत्यंत सात्विक और संतोषी थे। वे प्रतिदिन नदी में स्नान करने के बाद भगवान की पूजा-उपासना करते।
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वैराग्यवान भक्त तुलाधार अत्यंत सात्विक और संतोषी थे। वे प्रतिदिन नदी में स्नान करने के बाद भगवान की पूजा-उपासना करते। मेहनत-मजदूरी करके जो कुछ धन मिल जाता, उसी से अपने परिवार की गुजर-बसर करते थे। उनके पास केवल एक धोती तथा गमछा था तथा दोनों पुराने हो जाने के कारण फट गए थे।
एक दिन किसी ने नदी के किनारे दो नए वस्त्र रख दिए, जिससे तुलाधार की दृष्टि उन पर पड़े तथा वे उन्हें अपने उपयोग के लिए ले जाएं। तुलाधार स्नान करके नदी से बाहर निकले, कपड़ों पर निगाह डाली, परन्तु उन्हें छुआ तक नहीं और आगे बढ़ गए।
दूसरे दिन स्नान से लौटते समय उन्होंने नदी के किनारे सोने की डली रखी देखी। उन्होंने सोचा कि यदि मैं इसे ग्रहण कर लूंगा तो बिना परिश्रम के मिले इस धन से मेरी बुद्धि विकृत हो जाएगी, अनेक दोषों का शिकार होना पड़ेगा। लोभ मेरे हृदय की पवित्रता व भक्ति भावना को नष्ट कर देगा। सोने की डली को वहीं पड़ा छोड़कर वे आगे बढ़ गए।
इस त्यागवृत्ति तथा निश्छलता के कारण भक्त तुलाधार की गणना देश के अग्रणी भक्तजनों में हुई। —शिव कुमार गोयल