Nag Panchami 2025: अगर रखा है नाग पंचमी व्रत, तो ये पावन कथा है आपके लिए वरदान समान

Edited By Updated: 29 Jul, 2025 06:59 AM

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Nag Panchami 2025: एक बार की बात है पूरा यमुना जी में कालिया नाग के विष से जहर घुल गया था। ब्रजवासियों के लिए नदी का पानी जहर बन गया था, तब भगवान श्री कृष्ण ने एक चाल चली। वे गेंद ढूंढने के बहाने से नदी में कूद गए और कालिया नाग को युद्ध में हरा दिया।

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Nag Panchami 2025: एक बार की बात है पूरा यमुना जी में कालिया नाग के विष से जहर घुल गया था। ब्रजवासियों के लिए नदी का पानी जहर बन गया था, तब भगवान श्री कृष्ण ने एक चाल चली। वे गेंद ढूंढने के बहाने से नदी में कूद गए और कालिया नाग को युद्ध में हरा दिया। तब कालिया नाग ने प्रभु के आगे हार मानकर यमुनाजी के जल से अपना जहर वापस ले लिया। उस दिन भी श्रावण मास की पंचमी तिथि थी। कालिया नाग के इस नेक कार्य के बदले भगवान श्री कृष्ण ने उसे वरदान दिया कि सावन की पंचमी के दिन देश के हर कोने-कोने में सांपों को देवता मानकर उनकी पूजा होगी। तभी से नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा।

 एक और अन्य पौराणिक कथा के अनुसार अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने सर्पों से बदला लेने और नागवंश के विनाश के लिए एक नाग यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था। उन्होंने सावन की पंचमी वाले दिन ही नागों को यज्ञ में जलने से रक्षा की थी। इनके जलते हुए शरीर पर दूध की धार डालकर इनको शीतलता प्रदान की थी। उसी समय नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी मेरी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा। तभी से पंचमी तिथि के दिन नागों की पूजा की जाने लगी। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी एवं तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया। मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई। धार्मिक मान्यताओं है कि भगवान विष्णु की शैय्या बने शेषनाग जी अपने फन पर पूरी पृथ्वी का भार थामे हुए हैं। इसलिए गृह निर्माण के समय भूमि पूजन के दौरान चांदी का नाग-नागिन भूमि में दबाया जाता है।

एक कथा है कि एक बार अपने भाईयों के दुर्व्यवहार से दुखी होकर शेषनाग हिमालय पर जाकर ब्रह्माजी की तपस्या करने लगे उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और शेषनाग को वरदान दिया कि उनकी बुद्धि कभी धर्म के मार्ग से नहीं भटकेगी। साथ ही ब्रह्माजी ने शेषनाग को एक और जिम्मेदारी सौंपी। उनक मानना था कि ये पृथ्वी पहाड़ और नदियों की वजह से सदैव हिलती डुलती रहती है तो इसे आप अपने फन पर धारण करो। तब से शेषनाग ने  पृथ्वी को अपने फन पर धारण किया हुआ है और उनके शरीर से बनी शैय्या पर भगवान विष्णु आसीन हैं इसलिए शेषनाग को धरणीधर और अनंत भी कहते हैं। शेषनाग का ही एक अन्य नाम अनंत नाग है।

 एक और पौराणिक कथा के अनुसार नागराज कोरथ्य पांडव काल में हरिद्वार क्षेत्र में राज करते थे। इनकी पुत्री का नाम उलूपी था। अर्जुन जब एक बार गंगा तट पर विश्राम कर रहे थे, तब उलूपी अर्जुन को बेहोश करके नागलोक ले गई। यहीं राजा कोरथ्य ने उलूपी और अर्जुन के प्रेम का सम्मान करते हुए इनका विवाह करवा दिया। इससे नागजाति और मनुष्यों के बीच मित्रता का संबंध बना। इसके बाद नाग कन्या उलूपी के पुत्र इरावन की तो किन्नर देवता मानकर पूजा करते हैं।

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