Niti Shastra: समत्व योग पर पहुंचने के लिए सोना-जागना नियमित हो

Edited By Jyoti,Updated: 13 Jul, 2021 05:37 PM

niti shastra in hindi

गुदड़ी को धीरे-धीरे सीना चाहिए। मार्ग में धीरे-धीरे चलना चाहिए। पर्वत पर धीरे-धीरे चढ़ना चाहिए। भोजन धीरे-धीरे करना चाहिए। मुक्ति का साधन धीरे-धीरे करना चाहिए।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
शैने: कन्था शैने: पन्था: शैने:पर्वतलङघनम।
शैनेर्भुक्ति: शनैर्मुक्ति: शैनेर्विद्या शनैर्तप:।।

गुदड़ी को धीरे-धीरे सीना चाहिए। मार्ग में धीरे-धीरे चलना चाहिए। पर्वत पर धीरे-धीरे चढ़ना चाहिए। भोजन धीरे-धीरे करना चाहिए। मुक्ति का साधन धीरे-धीरे करना चाहिए। विद्या धीरे-धीरे पढनी चाहिए। तप धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। बचपन में मैं अपने पितामह से ज्योतिष पढ़ता था। उनसे ज्योतिष पढ़ने के लिए विद्यार्थी दूर-दूर से आते थे। बत्तीस-तैंतीस विद्यार्थी थे। दूसरे छात्र जितना कण्ठस्थ करते थे, मैं उनसे अधिक करता था। मैं प्रतिदिन तीस-बत्तीस श्लोक कंठस्थ कर लेता था।

एक दिन मेरे बाबा ने मुझसे डांट कर कहा, ‘‘तुम जितनी शीघ्रता से श्लोक याद करोगे, उतनी ही शीघ्रता से तुम्हें ये बाद में भूल जाएंगे। अत: जब तुम्हें एक श£ोक याद हो जाए तब तुम एक सौ आठ बार उसका जप करो और फिर अगला श्लोक कंठस्थ करो।’’

प्रकृति ने प्रकाशमय सूर्य देवता जिसके अधिष्ठाता हैं, ऐसे दिन को जागने के लिए बनाया है और चंद्रदेवता जिसके अधिष्ठाता हैं ऐसी रात्रि विश्राम के लिए बनाई है।
रात्रि के चार भाग करो। प्रथम प्रहर भोजन एवं मनोरंजन के लिए है। उसमें हास्य विनोद आदि से दिन की थकान मिट जाती है। द्वितीय और तृतीय प्रहर सोने के लिए है। अंतिम प्रहर परमात्मा का चिंतन करने के लिए है। कोई कहता है रात्रि त्रियामा है। इसके तीन भाग करने चाहिए। प्रथम भाग भोजन-विश्राम विनोद के लिए है। मध्यम भाग निद्रा के लिए है। अंतिम भाग परमात्म-चिंतन के लिए है।

काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा॥

‘‘बुद्धिमानों का समय काव्य एवं शास्त्र विनोद में बीतता है। मूर्खों का समय व्यसन में लगकर नींद में या लड़ाई-झगड़े में बीतता है।’’

निद्रा सूर्योदय से पूर्व त्याग ही देनी चाहिए। मैले वस्त्र पहनने वाले, दांतों को मैला रखने वाले, बहुत खाने वाले, कटु वचन बोलने वाले, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सोने वाले स्वयं नारायण भी हों, तो उन्हें भी लक्ष्मी त्याग देंगी।

आगतं स्वागतं कुर्याद् गच्छन्तं पृष्तोऽन्वियात॥

सम्मानित जन के आगमन पर आगे बढ़कर उनका स्वागत करें और उनके प्रस्थान करते समय कुछ दूर तक उनके पीछे-पीछे जाएं। जैसे मन ही मन स्थान, शृंगार, वस्त्राधान, भोजन ग्रहण इत्यादि नहीं होते हैं वैसे ही द्रव्य या वस्तु के बिना भाव नहीं बनता। इसलिए जल से सूर्यदेव का अघ्र्य दो। यदि जल न मिले तो रेत से सूर्यदेव को अघ्र्य दो। एक पुष्प या पत्र देकर प्रणाम करो। तुम्हारी महत्व बुद्धि वस्तु में और क्रिया में है। अत: वस्तु और क्रिया के बिना कोई काम सफल नहीं होगा। जब वस्तु साथ होती है तब संकल्प बनता है। संकल्प के बिना कर्म फलप्रद नहीं होता।

नारायण! जीवन में नियत श्रम-विश्राम होना चाहिए। समत्व जीवन जीने के लिए निद्रा जागरण नियमित होने चाहिएं। बहुत सोने वाला तमोगुण में पड़ा रहता है। वह योग नहीं कर सकता। जो लोग ठीक-ठीक निद्रा नहीं लेते उनका मस्तिष्क विकृत हो जाता है।

मेरे एक मित्र एक ही दिन में विद्वान होने के लिए हनुमान जी का मंत्र साधन करने लगे। रात्रि भर जागकर साधन जप करते रहे। जब प्रात: हवन करने लगे तब पता नहीं उन्होंने क्या देखा कि पागल हो गए। अत: नींद ठीक-ठीक लेनी चाहिए और जागना भी ठीक चाहिए। समत्व योग पर पहुंचने के लिए सोना-जागना नियमित होना चाहिए।
—स्वामी श्री अखंडानंद सरस्वती  

 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!