Raksha Bandhan Muhurat: रक्षाबंधन पर बनेगा दुर्लभ संयोग, जानें शुभ मुहूर्त

Edited By Updated: 09 Aug, 2025 06:39 AM

raksha bandhan muhurat

Raksha Bandhan Muhurat 2025: रक्षाबंधन हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। भाई-बहन के स्नेह, विश्वास और सुरक्षा के रिश्ते का प्रतीक रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई...

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Raksha Bandhan Muhurat 2025: रक्षाबंधन हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। भाई-बहन के स्नेह, विश्वास और सुरक्षा के रिश्ते का प्रतीक रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उनकी लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि की कामना करती है। इसके साथ ही भाई बहन को जीवन भर रक्षा करने का वचन देता है। इस साल श्रावण पूर्णिमा की तिथि दो दिन होने के कारण इस साल काफी कंफ्यूजन बना हुआ है कि किस दिन राखी का पर्व मनाना लाभकारी हो सकता है। आइए जानते हैं रक्षाबंधन की सही तारीख, राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, भद्रा का समय और रक्षाबंधन का आध्यात्मिक महत्व।

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रक्षाबंधन भद्रा का समय
भद्रा काल आरंभ- 8 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट से भद्रा काल समाप्त- 9 अगस्त को तड़के 1 बजकर 52 मिनट पर ।

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रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त-
सुबह 4 बजकर 22 मिनट से 5 बजकर 04 मिनट तक।
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12 बजकर 17 मिनट से 12 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।
सौभाग्य योग- सुबह 4 बजकर 8 मिनट से 10 अगस्त को तड़के 2 बजकर 15 मिनट तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- 9 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 23 मिनट तक।

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राखी बांधने का मुहूर्त
9 अगस्त को सुबह 5 बजकर 35 मिनट से दोपहर 1 बजकर 24 मिनट तक राखी बांधने का सबसे अच्छा मुहूर्त है। इस मुहूर्त में भाई की कलाई में राखी बांधना सबसे ज्यादा शुभ है।

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रक्षाबंधन चौघड़िया मुहूर्त
लाभ काल-
प्रातः 10:15 से दोपहर 12:00 बजे
अमृत काल- दोपहर 1:30 से 3:00 बजे
चर काल- सायं 4:30 से 6:00 बजे

रक्षाबंधन भद्रा का समय
भद्रा काल आरंभ-
8 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट से
भद्रा काल समाप्त- 9 अगस्त को तड़के 1 बजकर 52 मिनट पर

राखी में 3 गांठें बांधने का महत्व
राखी में 3 गांठें बांधने के पीछे बहुत ही गहरी मान्यता छिपी हुई है। ऐसा माना जाता है कि ये तीन गांठें त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) का प्रतीक होती हैं। पहली गांठ ब्रह्मा जी को समर्पित होती है, जो सृष्टि के रचयिता हैं। इससे जीवन की अच्छी शुरुआत और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है।

दूसरी गांठ भगवान विष्णु को समर्पित होती है, जो जगत के पालनहार कहलाते हैं। ये भाई की रक्षा, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देने के लिए होती है। तीसरी गांठ महादेव को समर्पित मानी जाती है, जो संहारक और मोक्षदाता हैं। यह गांठ बुरी शक्तियों से सुरक्षा और बुरे कर्मों से बचाव का संकेत देती है।

इसके अलावा तीनों गांठें भाई और बहन के बीच प्रेम, विश्वास और सुरक्षा का भी प्रतीक मानी जाती है। जब बहन ये गांठें बांधती है तो वह न केवल अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है, बल्कि उनके रिश्ते में अटूट विश्वास और प्यार की डोर भी मजबूत करती है इसलिए जब भी राखी बांधी जाए, तो इन तीन गांठों का महत्व याद रखना चाहिए क्योंकि ये सिर्फ धागे नहीं होते, बल्कि यह बहन की भावना और आस्था का प्रतीक है।

रक्षाबंधन पर दुर्लभ संयोग
साल 2025 में रक्षाबंधन के दिन नक्षत्र, वार, राखी बांधने का समय, पूर्णिमा तिथि का आरंभ और अंत लगभग 1930 के रक्षाबंधन के दिन की तरह ही है। इसलिए ज्योतिषाचार्यों के द्वारा इसे दुर्लभ संयोग माना जा रहा है। 1930 में रक्षाबंधन 9 अगस्त को ही मनाया गया था और उस दिन भी शनिवार ही था। ठीक इसी तरह 2025 में ही 9 अगस्त को ही रक्षाबंधन है और इस साल भी रक्षाबंधन पर शनिवार ही है। 1930 में सावन पूर्णिमा और 2025 की सावन पूर्णिमा की शुरुआत का समय भी लगभग एक जैसा है। 1930 में भी सौभाग्य योग और श्रवण नक्षत्र था जो इस साल भी है। इसीलिए ज्योतिषाचार्य इसे बेहद दुर्लभ संयोग मान रहे हैं। आइए अब जान लेते हैं कि रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने के लिए सबसे शुभ समय और शुभ योगों के बारे में।  

रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व
देशभर में राखी का पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भाई-बहन के प्रेम, विश्वास का प्रतीक राखी के दिन बहनें भाई की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती है। मान्यताओं के अनुसार, मां लक्ष्मी ने सबसे पहले राजा बलि को राखी बांधी थी। इसके अलावा श्री कृष्ण को दौपद्री ने बांधी थी। जिसके बाद से ही राखी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर पाताल लोग से भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ लाने का उपाय खोजा था।

बहनें भाई को राखी बांधते समय बोले ये मंत्र
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
अर्थ: जिस रक्षासूत्र से महान बलशाली दानवों के राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधती हूं। यह रक्षा-सूत्र तुम्हारी रक्षा करे और तुम्हारा कभी विनाश न हो।

इंद्र और इंद्राणी की कथा
भविष्य पुराण में एक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। असुरों की शक्ति बढ़ती जा रही थी, जिससे देवता हारने लगे। देवराज इंद्र भी भयभीत होकर गुरु बृहस्पति के पास गए। तब इंद्राणी (इंद्र की पत्नी) ने इंद्र की रक्षा के लिए एक रेशम का धागा मंत्रों से पवित्र करके उनके हाथ पर बांधा। इस धागे के प्रभाव से इंद्र ने युद्ध में असुरों को पराजित किया और विजय प्राप्त की। माना जाता है कि यहीं से रक्षाबंधन की शुरुआत हुई, जहां पत्नी ने पति की रक्षा के लिए धागा बांधा।

आचार्य पंडित सुधांशु तिवारी
(प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य)

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