...तो क्या लंका रावण की नहीं थी!

Edited By Updated: 05 May, 2021 03:09 PM

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अजमतगढ़ के पास पुरानी सरयू के किनारे एक अत्यंत विशाल तालाब है जिसमें अब भी बड़ी मात्रा में जल रहता है। यह सरयू का पेटा कहा जाता है।

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अजमतगढ़ के पास पुरानी सरयू के किनारे एक अत्यंत विशाल तालाब है जिसमें अब भी बड़ी मात्रा में जल रहता है। यह सरयू का पेटा कहा जाता है। लोक विश्वास के अनुसार मुनि विश्वामित्र इसी मार्ग से राम, लक्ष्मण जी को लेकर गए थे। तालाब के पास ही यहां राम वाटिका है तथा श्री राम व शिव जी के कई प्राचीन मंदिर हैं। यह स्थान आजमगढ़ से लगभग 25 कि.मी. उत्तर पूर्व में है। इस शोध यात्रा की सीमा अयोध्या जी से रामेश्वरम तक रखी गई है। कुछ लोग श्रीलंका को ही वास्तविक लंका मानते हैं। कुछ के विचार से श्रीलंका रावण की लंका नहीं है। अभी तक हम लंका की खोज नहीं कर पाए हैं। वर्तमान श्रीलंका के रावण की लंका होने में शंकाएं इस प्रकार हैं :

1. रामेश्वरम से लंका की दूरी :  सभी कवियों ने रामेश्वरम से लंका की दूरी 100 योजन बताई है। वाल्मीकि जी ने तो सेतु निर्माण के समय एक-एक दिन तथा योजन की गणना की है। अत: दूरी को कवि की कल्पना नहीं कहा जा सकता। वर्तमान गणना के अनुसार 1 योजन=4 कोस, 1कोस = 2 मील, 1 मील= 1.5 कि.मी. अर्थात रामेश्वरम से लंका की दूरी लगभग 1200 कि.मी. होनी चाहिए। वर्तमान श्रीलंका तो लगभग 35 कि.मी. दूर है। 

2. शास्त्रों का मत : वाल्मीकि जी, गोस्वामी तुलसीदास जी, महाभारत (वन पर्व), ब्रह्मपुराण आदि में लंका तथा सिंहल द्वीप का भिन्न-भिन्न वर्णन आया है। हमारे विचार से श्री लंका सिंहल-द्वीप है न कि रावण की लंका।

3. हनुमान जी का वायु मार्ग : लक्ष्मण जी के लिए हनुमान जी हिमालय से संजीवनी बूटी लेने गए थे। जाते समय उन्होंने सुल्तानपुर के पश्चिम दिशा में कालनेमि का वध किया। वह स्थान आज भी महावीरन के नाम से प्रसिद्ध है। वापस आते समय अयोध्या जी के निकट भरत जी ने उन्हें बाण मारा। इसी प्रकार लोक मान्यता के अनुसार संजीवनी के अंश महाराष्ट्र के रामटेक, वासिम जिले में रिठद तथा कर्नाटक के कपतगुड में गिरे थे। यदि इन स्थानों के वायु मार्ग की रेखा खींची जाए तो यह मार्ग श्री लंका नहीं जाता।

4. स्वर्ण की लंका : रावण की लंका में स्वर्ण की बहुलता थी। लूटकर बाहर से इतना स्वर्ण नहीं आ सकता। यहां सोने की खान नहीं है। हां दक्षिण  अफ्रीका की ओर सोने की बहुत खानें हैं।

5. राक्षसों के शारीरिक लक्षण : रामायण में राक्षसों के रंग, रूप, आकार  और नाक, कान, होंठ आदि का भी वर्णन किया है। यह रंग- रूप श्री लंका वासियों से मेल नहीं खाता। दक्षिण अफ्रीकी लोगों से मिलता जुलता है।

6. राक्षस संस्कृति : राक्षसों की सभ्यता और संस्कृति में नर भक्षण उचित माना जाता था। इसी प्रकार स्त्रियों को वे भोग्या ही मानते थे। श्रीलंका में ये दोनों ही नहीं हैं। हां, दक्षिण अफ्रीका के  जंगलों में आज भी ये दोनों बातें मिलती हैं।

7. श्रीलंका के नागरिकों का विरोध: सभी व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं। यदि श्रीलंका के नागरिकों को रावण के अथवा राक्षसों के वंशज कहा जाए तो वे बुरा मानते हैं।

8. रामायण कालीन अवशेष : वाल्मीकि रामायण में चार दांत के हाथियों का तीन बार वर्णन आया है। उन हाथियों के अवशेष मैडागास्कर के पास मिले हैं।

9. बाणासुर का आक्रमण : पुराणों में बताया गया है कि बाणासुर ने नर्मदा के मुहाने से लंका पर आक्रमण किया था। बाणासुर की राजधानी रायपुर के पास थी यदि श्रीलंका ही लंका होती तो बाणासुर पश्चिमी तट न जाकर पूर्वी तट की ओर से जाता।

हमारे विचार से रावण की लंका रामेश्वर से 1200 कि.मी. दूर भारत के दक्षिण-पश्चिम में शून्य डिग्री पर होनी चाहिए।
समय आने पर द्वारिका की तरह लंका भी मिल जाएगी। मेरे विचार से लंका की खोज मालदीव के पास करनी चाहिए क्योंकि वाल्मीकि जी के अनुसार दूरी तथा शून्य डिग्री वही है।


 

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