पढ़ें, दो देशों का राष्ट्रगान लिखने वाले बहुप्रतिभाशाली रबींद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी रोचक बातें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Aug, 2023 09:08 AM

ravindranath tagore

देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता एवं एकमात्र कवि,  जिनकी दो रचनाओं को दो देशों का

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Ravindranath Tagore story: देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता एवं एकमात्र कवि,  जिनकी दो रचनाओं को दो देशों का राष्ट्रगान- भारत का ‘जन गण मन’ और बंगलादेश का ‘आमार सोनार बांगला’ बनने का सौभाग्य मिला, वह थे रबीन्द्रनाथ टैगोर। ‘गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध इस महानुभाव ने अपनी साहित्य कला के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता को पश्चिमी देशों में फैलाया। 

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7 मई, 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में पिता देवेंद्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी की 13वीं संतान रूप में जन्मे रबींद्रनाथ टैगोर ने 1 हजार कविताएं, 8 उपन्यास, 8 कहानी संग्रह और विभिन्न विषयों पर अनेक लेख लिखे। इतना ही नहीं, वह संगीत प्रेमी भी थे और इन्होंने अपने जीवन में 2000 से अधिक गीतों की रचना की। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई निबंध, लघु कथाएं, यात्रावृतांत, नाटक भी लिखे। 

टैगोर ने इतिहास, भाषाविज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी पुस्तकें भी लिखीं। अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनकी संक्षिप्त बातचीत को ‘वास्तविकता की प्रकृति’ के नाम से जाना जाता है। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कहानियां हैं ‘काबुलीवाला’, ‘खुदिता पासन’, ‘हेमंती’ आदि।

रबींद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद बंगाल की जनता को एकजुट करने के लिए ‘बांग्लार माटी बांग्लार जोल’ गीत लिखा था। इसके अतिरिक्त उन्होंने जातिवाद के खिलाफ ‘राखी उत्सव’ प्रारंभ किया। उनसे प्रेरित होकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे की कलाई पर रंग-बिरंगे धागे बांधे। 

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1910 में बंगाली भाषा में सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रसिद्ध गीत संग्रह ‘गीतांजलि’ प्रकाशित हुआ। इसमें प्रकृति, आध्यात्मिकता और जटिल मानवीय भावनाओं पर आधारित 157 गीत शामिल थे। जीवन के 51 वर्षों तक उनकी सारी उपलब्धियां और सफलताएं केवल कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रहीं। 

फिर सितम्बर 1912 में ‘गीतांजलि’ के अंग्रेजी अनुवाद की सीमित प्रतियां इंडिया सोसायटी के सहयोग से प्रकाशित की गईं। लंदन के साहित्यिक गलियारों में इसकी खूब सराहना हुई। जल्द ही ‘गीतांजलि’ के माधुर्य ने संपूर्ण विश्व को सम्मोहित कर लिया जिसके लिए 1913 में इन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। इससे वह विश्वभर में मशहूर हो गए। इन्हें जॉर्ज पंचम ने ‘नाइटहुड’ की पदवी से सम्मानित किया जिसे 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में इन्होंने लौटा दिया था। 

इन्होंने ही शांतिनिकेतन आश्रम की स्थापना की थी। जीवन के अंतिम 4 वर्ष बीमारी से पीड़ित रहने के बाद 7 अगस्त, 1941 को कोलकात्ता में जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में इनका निधन हो गया।

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