सकट चौथ 2020: इस व्रत कथा को पढ़ने से ही मिलेगा पुण्य

Edited By Lata,Updated: 12 Jan, 2020 11:19 AM

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सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव माना गया है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत करने

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सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव माना गया है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत करने से पहले गणपति जी का पूजन करना जरूरी बताया गया है। कहते हैं कि उनका नाम व उनके पूजन करने से हर काम पूरा हो जाता है और उसमें किसी तरह का विघ्न पैदा नहीं होता है। वैसे तो बुधवार के दिन इनके विशेष पूजा की जाती है, लेकिन हिंदू पंचांग के मुताबिक प्रत्येक मास में दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि को भी इनका पूजन व व्रत किया जाता है। 
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माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी माघी चौथ, सकंट चौथ या तिलकुटा चौथ कहलाती है। गणेश जी की कृपा पाने के लिए वैसे तो इस व्रत को कोई भी कर सकता है, लेकिन अधिकांश सुहागन स्त्रियां ही इस व्रत को परिवार की सुख- शांति के लिए करती हैं। नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गजानन की आराधना से सुख-सौभाग्य में वृद्धि तथा घर -परिवार पर आ रही विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिलती है व रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं। बता दें कि इस चतुर्थी में चन्द्रमा के दर्शन करने से गणेश जी के दर्शन का पुण्य फल मिलता है। आज हम आपके इस दिन से जुड़ी कथा से रूबरू करवाने जा रहे हैं।
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कथा
सत्ययुग में महाराज हरिश्चंद्र एक प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में कोई अपाहिज, दरिद्र या दुखी नहीं था। सभी लोग आधी-व्याधि से रहित व दीर्घ आयु थे। उन्हीं के राज्य में एक ऋषिशर्मा नामक तपस्वी ब्राह्मण रहते थे। एक पुत्र प्राप्ति के बाद वे स्वर्गवासी हो गए। पुत्र का भरण-पोषण उनकी पत्नी करने लगी। वह विधवा ब्राह्मणी भिक्षा के द्वारा पुत्र का पालन-पोषण करती थी। उसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आवां पका ही नहीं। बार-बार बर्तन कच्चे रह गए। अपना नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा, तो उसने कहा कि किसी बलि देने से ही तुम्हारा काम बनेगा। 
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उसी दिन विधवा ब्राह्मणी ने माघ माह में पड़ने वाली संकट चतुर्थी का व्रत रखा था। वह पतिव्रता ब्राह्मणी गोबर से गणेश जी की प्रतिमा बनाकर सदैव पूजन किया करती थी। इसी बीच उसका पुत्र गणेश जी की मूर्ति अपने गले में बांधकर बाहर खेलने के लिए चला गया। तब वही कुम्हार उस ब्राह्मणी के पांच वर्षीय बालक को पकड़कर अपने आवां में छोड़कर मिटटी के बर्तनों को पकाने के लिए उसमें आग लगा दी। इधर उसकी माता अपने बच्चों को ढूंढने लगी। उसे न पाकर वह बड़ी व्याकुल हुई और विलाप करती हुई गणेश जी से प्रार्थना करने लगी। रात बीत जाने के बाद प्रातःकाल होने पर कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों को देखने के लिए आया जब उसने आवां खोल के देखा तो उसमें जांघ भर पानी जमा हुआ पाया और इससे भी अधिक आश्चर्य उसे जब हुआ कि उसमें बैठे एक खेलते हुए बालक को देखा। इस घटना की जानकारी उसने राज दरबार में दी और राजा के सामने अपनी गलती भी स्वीकार की। 
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तब राजा ने अपने मंत्री को बाहर भेजा जानने के लिए कि वो पुत्र किसका है और कहां से आया था। जब विधवा ब्राह्मणी को इस बात का पता चला तो वे वहां तुरंत पहुंच गई। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने सकट चौथ व्रत के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा को मानते हुए पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। उस दिन से प्रत्येक मास की गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणी ने अपने पुत्र के जीवन को पुनः पाया था।
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