Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Dec, 2025 10:09 AM

Saphala Ekadashi 2025 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी को अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सभी कार्य सफल होते हैं और जीवन में...
Saphala Ekadashi 2025 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी को अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सभी कार्य सफल होते हैं और जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है। इस दिन भगवान अच्युत (विष्णु) की पूजा की जाती है।

Saphala Ekadashi 2025 Date and Time सफला एकादशी 2025 कब है?
सफला एकादशी तिथि – 15 दिसंबर 2025, सोमवार
एकादशी शुरू – 14 दिसंबर 2025, शाम 06:49 बजे
एकादशी समाप्त – 15 दिसंबर 2025, रात 09:19 बजे
व्रत पारण समय – 07:07 ए एम से 09:11 ए एम (16 दिसंबर 2025)
पारण दिन द्वादशी समाप्त – 15 दिसंबर 2025, रात 11:57 बजे

Saphala Ekadashi Puja Vidhi सफला एकादशी पूजा विधि
प्रातः स्नान कर भगवान अच्युत का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें। पूजन में धूप, दीप, फूल, फल, पंचामृत, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार और लौंग अर्पित करें। पूरे दिन ईश्वर का स्मरण करते रहें और रात्रि में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें। द्वादशी के दिन व्रत पारण से पहले गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन और दान देना शुभ माना जाता है।

Saphala Ekadashi Significance सफला एकादशी का महत्व
सफला एकादशी का नाम ही इस बात का प्रतीक है कि यह हर कार्य को सफल बनाने वाली एकादशी है। धार्मिक मान्यता है कि हजारों वर्षों की तपस्या से मिलने वाला फल सफला एकादशी व्रत करने मात्र से प्राप्त होता है। इस व्रत से सभी पापों का नाश होता है और कठिनाइयां दूर होती हैं। यह एकादशी भाग्य को प्रबल बनाती है और जीवन में सफलता के द्वार खोलती है। इस दिन मंदिर, तुलसी और भगवान विष्णु के समक्ष दीपदान करना अत्यंत शुभ माना गया है।

Saphala Ekadashi Katha सफला एकादशी की पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार चंपावती नगरी में राजा महिष्मत राज्य करते थे। उनके चार पुत्रों में से बड़े पुत्र ल्युक का स्वभाव अत्यंत दुष्ट था। वह गलत कार्यों में धन नष्ट करता था। उसके बुरे आचरण से तंग आकर राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया।
देश निकाले के बाद भी ल्युक चोरी-डकैती करता रहा। एक समय ऐसा आया जब वह तीन दिनों तक भूखा रहा। भटकते हुए वह एक साधु की कुटिया में पहुंचा। उस दिन सफला एकादशी थी। साधु ने उसे भोजन कराया, जिससे उसके मन में परिवर्तन आया। उसने अपने कर्मों पर पछतावा व्यक्त किया और साधु का शिष्य बन गया।
धीरे-धीरे उसका जीवन बदल गया। एक दिन साधु ने अपने वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराया। वह उसके पिता राजा महिष्मत ही थे। अपने पुत्र के परिवर्तन से प्रसन्न होकर राजा ने उसे पुनः राजकाज सौंप दिया। ल्युक जीवन भर सफला एकादशी का व्रत करता रहा और धर्ममार्ग पर चला।
