Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Jun, 2018 05:18 PM
रम्भा तृतीया व्रत स्वर्ग की अप्सरा रम्भा को समर्पित है इसलिए उनके निमित्त पूजा करने का विधान है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार जिस समय समुद्र मंथन हुआ उन में से उत्पन्न 14 रत्नों में से एक अप्सरा रम्भा भी थीं।
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रम्भा तृतीया व्रत स्वर्ग की अप्सरा रम्भा को समर्पित है इसलिए उनके निमित्त पूजा करने का विधान है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार जिस समय समुद्र मंथन हुआ उन में से उत्पन्न 14 रत्नों में से एक अप्सरा रम्भा भी थीं। वह अत्यंत शोभायमान थी। उनको देखकर कोई भी उनकी सुंदरता का कायल हो जाता था। रंभा की साधना करने पर गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। जर्जरता और बुढ़ापा कोसों दूर रहता है। अप्सरा रम्भा के मंत्र सिद्ध होने पर आप भी आकर्षण, सुन्दरता और सौम्यता को प्राप्त कर सकते हैं। आपकी सभी इच्छाएं सोचने मात्र से पूरी होने लगेंगी। मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त करने की कामना से भी इस व्रत को किया जाता है। कई साधक अप्सरा रम्भा के नाम से साधना करते हैं और सम्मोहनी शिक्षाएं प्राप्त करते हैं।
सुबह शुद्ध होकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें। सूर्यदेव को जल देकर दीपक प्रज्वलित करें। इस रोज़ मां लक्ष्मी को खुश करने के लिए विवाहित महिलाएं गेहूं, अनाज और फूलों से विधानपूर्वक पूजन करती हैं। जिससे उन्हें अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति और कुशाग्र बुद्धि वाली संतान प्राप्त होती है। बहुत सारे स्थानों पर माता सती के भी पूजन का विधान है।
रंभा साधना मंत्र: रं... रं। …रम्भा रं... रं.... देवी
पूजा सामग्री: 24 काली चूड़ियां, आलता, इत्र, बालों में लगाने वाली नकली चोटी, नोस पीन, 6 कौड़ियां, पायल, जल भरने के लिए 2 गिलास या लोटे, सफेद रेशमी वस्त्र और लाल फूल
पूजा विधि: एक पाटे पर सारी सामग्री रख कर गिलास या लोटे में जल भर कर अपने दाएं और बाएं ओर रख लें, सारे सामान को देखते हुए सिर को ऊपर उठा कर छत की तरफ ध्यान से देखें। किसी खास बिंदु को देखते हुए धीमे से अपनी आंखे बंद करें। ऐसा महसूस करें की देवी रंभा आपके सामने हैं। पूजा की सामग्री मानसिक रूप से उन्हें चढ़ाएं। दोनों ओर रखें जल को दोनों हाथों से ढक कर मन्त्र जाप करें। 3 बार जाप करने के बाद अपनी दोनों हथेलियों को आपस में घिस कर फेस और बॉडी पर स्पर्श करें। हथेलियों में गर्मी आने लगे तो कुछ वक्त के लिए जप को रोक दें। देवी का शुक्रिया करते हुए जाप को फिर से शुरू करें। पूजा के बाद सारा सामान वहीं रहने दें, अगले दिन सुबह सामान को उठाएं। फूलों को चलते जल में बहा दें, कौड़ियों को सफ़ेद कपड़े में डालकर तिजोरी में रखें। बाकी के सामान को खुद इस्तेमाल कर लें।
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