Edited By Jyoti,Updated: 18 Jan, 2022 01:39 PM
गीता इस बारे में है कि हम क्या हैं ? यह सत्य को जानने के अलावा सत्यता को अपनाने जैसा है।
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Srimad Bhagavad Gita: गीता इस बारे में है कि हम क्या हैं ? यह सत्य को जानने के अलावा सत्यता को अपनाने जैसा है। ऐसा तब होता है जब हम वर्तमान क्षण (समय) में केंद्रित (अंतरिक्ष) होते हैं। अर्जुन की दुविधा है कि अगर वह अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, बड़ों और शिक्षकों को राज के लिए मार देता है तो दुनिया की नजर में उसकी छवि का क्या होगा ? यह बात बहुत ही तार्किक प्रतीत होती है और अगर किसी को गीता जीवन जीना है तो यही वह पहली बाधा है जिसे पार किया जाना है।
अर्जुन की असली दुविधा उसके भविष्य को लेकर है जबकि श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमें कर्म करने का अधिकार है लेकिन कर्मफल पर कोई अधिकार नहीं है। क्यों ? क्योंकि कर्म वर्तमान में होता है और कर्मफल भविष्य में आता है।
अर्जुन की तरह, हमारी प्रवृत्ति परिणाम-उन्मुख कार्यों के लिए प्रयास करने की है। कभी-कभी आधुनिक जीवन हमें यह आभास देता है कि भविष्य के परिणामों को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन वास्तव में भविष्य इतनी सारी सम्भावनाओं का मेल है, जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है।
एक बार फिर यह हमारा अहंकार है- अपने अतीत को याद करना और भविष्य को वर्तमान में देखना ही दुविधा पैदा करता है।
अंतरिक्ष की बात करें तो आकाशगंगाओं, तारों और ग्रहों से युक्त पूरे ब्रह्मांड की विशेषता चक्कर लगाना है, जो मुख्य रूप से एक स्थिर धुरी अथवा चाक पर घूमने के समान है। चाक कभी हिलता नहीं है और इसके बिना पहिए का घूमना सम्भव नहीं है। हर तूफान का एक शांत केन्द्र होता है- इसके बिना कोई भी तूफान गति को कायम नहीं रख सकता। केंद्र से जितनी दूरी होगी, अशांति उतनी ही अधिक होगी।
हमारे पास भी एक शांत केंद्र है जो और कुछ नहीं बल्कि हमारी आंतरिक आत्मा है और अशांत जीवन, इसके कई गुणों के साथ, इसके चारों ओर घूमता है। अर्जुन की दुविधा ऐसी ही एक विशेषता को लेकर है- उसकी छवि। उसकी तरह, हम अपने भीतर की ओर देखने कि बजाय दूसरों की आंखों में देखकर अपने बारे में चित्र बनाते हैं। गीता कहती है कि होने का समय वर्तमान है और होने का स्थान अंतरात्मा है।