श्रीमद्भगवद्गीता: कर्तव्य पालन में ‘दुख’ नहीं

Edited By Jyoti,Updated: 28 Feb, 2021 12:27 PM

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अनुवाद एवं तात्पर्य : जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म भी निश्चित है। अत: अपने अपरिहार्य कर्तव्य पालन में तु हें शोक नहीं करना चाहिए।

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

कर्तव्य पालन में ‘दुख’ नहीं

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
जातस्य हि धु्रवो मृत्युर्धु्रवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म भी निश्चित है। अत: अपने अपरिहार्य कर्तव्य पालन में तु हें शोक नहीं करना चाहिए।

मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार जन्म ग्रहण करना होता है और एक कर्म-अवधि समाप्त होने पर उसे मरना होता है ताकि वह दूसरा जन्म ले सके। इस प्रकार मुक्ति प्राप्ति किए बिना ही जन्म-मृत्यु का यह चक्र चलता रहता है। जन्म-मरण के इस चक्र से वृथा हत्या, वध तथा युद्ध का समर्थन नहीं होता है किन्तु मानव समाज में शांति तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए ङ्क्षहसा एवं युद्ध अपरिहार्य हैं।

कुरुक्षेत्र का युद्ध भगवान की इच्छा होने के कारण अपरिहार्य था और सत्य के लिए युद्ध करना क्षत्रिय का धर्म है। अत: अपने कर्तव्य का पालन करते हुए वह स्वजनों की मृत्यु से भयभीत या शोकाकुल क्यों था? वह विधि (कानून) को भंग नहीं करना चाहता था क्योंकि ऐसा करने पर उसे उन पापकर्मों के फल भोगने पड़ेंगे जिनसे वह अत्यंत भयभीत था। अपने कर्तव्य का पालन करते हुए वह स्वजनों की मृत्यु को रोक नहीं सकता था और यदि वह असत्य कर्तव्य -पथ का चुनाव करें, तो उसे नीचे गिरना होगा। (क्रमश:)

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