Edited By Jyoti,Updated: 27 Jul, 2021 04:51 PM
अनुवाद एवं तात्पर्य : भक्ति में संलग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता है। अत: योग के लिए प्रयत्न करो क्योंकि सारा कार्य-कौशल यही है। जीवात्मा अनादि काल से अपने
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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम्।।
अनुवाद एवं तात्पर्य : भक्ति में संलग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता है। अत: योग के लिए प्रयत्न करो क्योंकि सारा कार्य-कौशल यही है। जीवात्मा अनादि काल से अपने अच्छे तथा बुरे कर्म के फलों को संचित करता रहता है। फलत: वह निरंतर अपने स्वरूप से अनभिज्ञ बना रहा है।
इस अज्ञान को भगवद्गीता के उपदेश से दूर किया जा सकता है। यह हमें पूर्ण रूप में भगवान श्री कृष्ण की शरण में जाने तथा जन्म-जन्मांतर कर्म फल की शृंखला का शिकार बनने से मुक्त होने का उपदेश देती है। अत: अर्जुन को कृष्णभावनामृत में कार्य करने के लिए कहा गया है क्योंकि कर्मफल के शुद्ध होने की यही प्रक्रिया है। (क्रमश:)