TALAB-E-SHAHI: जल संरक्षण की अनूठी मिसाल तालाब-ए-शाही

Edited By Updated: 29 Jun, 2025 02:00 PM

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TALAB-E-SHAHI: तालाब-ए-शाही, आज फिर एक नई भूमिका में हमारे समक्ष है। अतीत में जहां यह शाही विश्रामगृह और शिकार स्थल था, वहीं आज यह जल संरक्षण की चेतना का प्रतीक बन रहा है। लगभग 400 वर्ष पुराना यह जल स्रोत न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व रखता है...

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TALAB-E-SHAHI: तालाब-ए-शाही, आज फिर एक नई भूमिका में हमारे समक्ष है। अतीत में जहां यह शाही विश्रामगृह और शिकार स्थल था, वहीं आज यह जल संरक्षण की चेतना का प्रतीक बन रहा है। लगभग 400 वर्ष पुराना यह जल स्रोत न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व रखता है बल्कि आज भी हजारों किसानों की आजीविका, पर्यावरण संतुलन और जैव विविधता का आधार बना हुआ है। 

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यह झील कभी शाही शिकारगाह रही है। लाल बलुआ पत्थरों से बना शाही महल, झील के किनारे बनी राजा-रानी की बैठक, यहां के कुछ विशेष आकर्षण हैं। आज वही तालाब-ए-शाही आधुनिक राजस्थान में 3681 किसानों की 410 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई का आधार बन चुका है। 

सर्दियों में इस झील की प्रवासी पक्षियों से भरी जीवंतता और नहरों से बहता सिंचित जीवन के कारण राजस्थान के धौलपुर जिले में वंदे गंगा अभियान का शुभारम्भ यहीं से हो रहा है। 

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वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान से जल स्रोतों पर प्रज्वलित हो रहा जन भागीदारी का दीप जिस राजस्थान का पूरा इतिहास जल को सहेजने का रहा, वह कुछ सालों से इस परम्परा से विमुख हो गया और इसकी भारी कीमत सबको चुकानी पड़ी। जल संकट का मूल कारण जल की कमी नहीं, कुप्रबंधन है क्योंकि जल तो सीमित है, उसकी मात्रा बढ़ाना हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन बेहतर प्रबंधन हम सब कर सकते हैं और सदियों से करते आए हैं। 

जल केवल एक तत्व नहीं, यह पृथ्वी की धमनियों में बहता जीवन है। जब यही जल संकट के कगार पर हो तो उसकी रक्षा केवल शासन-प्रशासन नहीं, पूरा समाज करता है। इसी दृष्टिकोण से राजस्थान राज्य सरकार ने प्रदेश भर में वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान का शंखनाद किया है। इसके माध्यम से राज्य सरकार के जल संरक्षण के प्रयास जनसंकल्प में बदल रहे हैं। 

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राजस्थान की धरा, जहां कभी रेत की परतों में जीवन की प्यास छुपी रहती थी, आज जल संरक्षण की एक नई चेतना से जागृत हो रही है। वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान के तहत 5 जून से शुरू होकर 20 जून तक विविध एवं विस्तृत गतिविधियां की जा रही हैं।

राज्य के सभी जिलों में किसी एक महत्वपूर्ण जल स्रोत से अभियान की शुरूआत हुई। यह अभियान मात्र एक संयोग नहीं, बल्कि इतिहास और भविष्य के संगम का प्रतीक है। एक नई जल संस्कृति का उदय, जहां परम्परा, पर्यावरण और प्रशासन मिलकर जल की हर बूंद को जीवन समझते हैं।

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वंदे गंगा, जल से जुड़ती जन-चेतना
यह अभियान एक आत्मिक स्पंदन है। यह उस समाज को जाग्रत करने का यत्न है, जो वर्षों से जल को सहेजता आया है और अब उसके महत्व को गंभीरता से समझने लगा है। गांवों की चौपालों में, विद्यालयों के प्रांगण में, खेतों के किनारे और झीलों के घाटों पर पौधे रोपे जाएंगे, कहीं अमृत सरोवरों की गाद निकाल कर उन्हें नया जीवन दिया जाएगा, कहीं स्कूली बच्चों की प्रभात फेरियों में जल संरक्षण के स्वर गूंजेंगे। यह आंदोलन जल स्रोतों की तलहटियों से उठी वह सच्चाई है, जो हमें स्मरण दिलाएगी कि जल केवल पीने की वस्तु नहीं, जीने का दर्शन है।

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एक सभ्यता तब तक जीवित रहती है, जब वह अपने अतीत से संवाद बनाकर, उससे प्रेरणा और सीख लेकर, गलतियां सुधार कर अपने वर्तमान से बेहतर कल का वायदा करे न करे, कम से कम उस बेहतर भविष्य की आस अपने आने वाली पीढ़ियों की धमनियों में सतत् बहने की गारंटी लिख दे। 

एक विश्वास कि यह धरा हम सब की मां है और जिस प्रकार यह हम सब का ख्याल रखती है, पालन-पोषण करती है, इसे कोई जरूरत पड़े तो समाज, सरकार, नारी शक्ति, युवा शक्ति एक-दूसरे का मुंह नहीं ताकते, मिलकर सेवा करते हैं, एक परिवार का आभास करवाते हैं।

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जल के साथ अन्य पहलुओं को समाहित करता यह व्यापक अभियान उन सैंकड़ों सूखते तालाबों, गाद से पट चुके अमृत सरोवरों और उपेक्षित जल स्रोतों को पुन: जीवंत करने का प्रयास है, जिन्हें कभी हमारी सभ्यता की आत्मा कहा जाता था। अभियान के अंतर्गत गाद निकासी, पौधारोपण, परिंडे बांधने, श्रमदान और जनसहभागिता जैसी गतिविधियां केवल क्रियात्मक उपाय नहीं हैं। वे उस चेतना का पुननिर्माण हैं, जो आधुनिकता की दौड़ में हमने खो दी थी। 

राज्य सरकार की यह पहल सराहनीय है कि जल संरक्षण को केवल योजनाओं तक सीमित न रखकर उसे जन आंदोलन के रूप में स्थापित किया जा रहा है। विद्यालयों, पंचायतों, सामाजिक संस्थाओं और आम जन को इससे जोड़कर जिस सामाजिक सहभागिता की नींव रखी जा रही है, वह दीर्घकालीन परिवर्तन की आशा जगाती है।

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