क्रोध की आंधी से बचना है तो आज से Follow करें ये Rules

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Dec, 2023 09:03 AM

tips to control anger

क्रोध हमारे भीतर उठने वाला एक ऐसा संवेग है, जो क्षण भर में जागता है और क्षण भर में शांत हो जाता है। मनुष्य अपने होश-हवास खोकर कुछ समय के लिए एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है, जहां वह क्रोध के

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Tips To Control Anger: क्रोध हमारे भीतर उठने वाला एक ऐसा संवेग है, जो क्षण भर में जागता है और क्षण भर में शांत हो जाता है। मनुष्य अपने होश-हवास खोकर कुछ समय के लिए एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है, जहां वह क्रोध के वशीभूत होकर अपनों और परायों दोनों को नुकसान पहुंचाता है। मैंने इसे क्षणिक संवेग इसलिए कहा क्योंकि कई बार एक पल के लिए व्यक्ति आवेश और आक्रोश में आकर कोई भी निर्णय या कार्य कर बैठता है, पर कुछ पल के बाद ही आत्मविवेक जगने पर उसके हाथ में पश्चाताप के अलावा कुछ भी नहीं बचता।

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एक बहन मुझे बता रही थी, ‘जब भी मुझे गुस्सा आता है, मैं सीधा अपने बच्चों पर हाथ उठाती हूं और ताबड़तोड़ उनकी पिटाई कर देती हूं।’

‘मैंने पूछा फिर क्या करती हो?’

वह कहने लगी, ‘उसके बाद मुझे अफसोस होता है और मैं रोती हूं। रोज ही ऐसा होता है कि बच्चों की पिटाई और मेरा रोना दोनों एक साथ चलते हैं। वास्तव में यह क्षणिक संवेग है। बच्चों को पीटना क्रोध का प्रकटीकरण है, जबकि उसके बाद रोना अपनी गलती का एहसास है। व्यक्ति ऐसी गलतियां बार-बार इसलिए करता है क्योंकि उसका स्वयं पर अंकुश नहीं है। सच तो यह है कि क्रोध तूफान की तरह आता है और हमें चारों ओर से घेर लेता है। हम विवेकशून्य होकर गाली-गलौच या हाथापाई भी कर लेते हैं।

क्रोधी आदमी कीड़े-मकौड़े और बिच्छू तक को मार देता है पर अपने ही भीतर पलने वाले क्रोध को क्यों नहीं मार पाता ? मनुष्य अपने जीवन में मूलत: चार वृत्तियों में जीता है और वे हैं काम, क्रोध, माया और लोभ। इनमें से काम, माया और लोभ की वृत्तियां तो मनुष्य को आंशिक लाभ और सुख भी देती हैं लेकिन क्रोध एक ऐसी वृत्ति है जिसमें व्यक्ति खुद भी जलता है और दूसरों को भी जलाता है। हकीकत तो यह है कि क्रोधी व्यक्ति अपने भीतर और बाहर एक ऐसी आग लगाता है जिसमें वह औरों को जलाने की कोशिश करता है पर उसे बाद में पता चलता है कि इससे वह औरों को जला पाया या नहीं, पर खुद पहले ही झुलस गया।

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क्रोध एक, नुकसान अनेक
क्या धरती पर कोई ऐसा मनुष्य है जिसने अपनी जिंदगी में कभी क्रोध न किया हो ? ऐसे ब्रह्मचारी साधक तो मिल जाएंगे जिन्होंने कभी काम का सेवन नहीं किया हो, पर ‘क्रोध’ तो ‘काम’ विजेताओं पर भी विजय प्राप्त कर लेता है। सच्चाई तो यह है कि जब आप क्रोध के नियंत्रण में होते हैं तो स्वयं का नियंत्रण खो देते हैं।

सावधान ! एक पल का क्रोध आपके पूरे भविष्य को बिगाड़ सकता है। जिन संबंधों को मधुर बनाने में हमें दस वर्ष तक एक-दूसरे को सैटीस्फाइड करना पड़ता है, वहीं हमारा दस मिनट का गुस्सा उन संबंधों पर पानी फेर सकता है। सफलता की ओर बढ़ते कदमों में केले के छिलके का काम करता है हमारा गुस्सा। हमारा क्रोध हमें सफलता से हाथ होने के लिए मजबूर कर देता है। 24 घंटे भोजन करके हम जो शक्ति अपने शरीर में पाते हैं कुछ मिनट का गुस्सा उस शक्ति को क्षीण कर देता है। जो बच्चे बचपन में ज्यादा गुस्सा करते हैं बड़े होने पर उनका दिमाग कमजोर हो जाता है।

क्रोध में व्यक्ति औरों को नुकसान पहुंचाता ही है लेकिन कई बार व्यक्ति इसका उल्टा भी कर लेता है। क्रोध में आकर वह दीवार से टकरा देता है। भोजन कर रहा है तो थाली को उठाकर फैंक देता है। बचपन में मैंने देखा है कि हमारे मोहल्ले में एक ऐसा लड़का रहता था जिसे गुस्सा बहुत आता था। एक दिन उसके घर में किसी ने उसे टोक दिया। उस लड़के को गुस्सा आ गया, संयोग से उस दिन उसे परीक्षा देने जाना था किन्तु गुस्से में भर कर उसने निर्णय ले लिया कि मैं परीक्षा देने नहीं जाऊंगा। घर के सारे लोग उसे समझा कर हार गए लेकिन वह परीक्षा देने नहीं गया और इस तरह आवेश में आकर लिए गए निर्णय ने उसका पूरा वर्ष बेकार कर दिया।

तीन रूप हैं क्रोध के
व्यक्ति तीन तरह का क्रोध करता है। अल्पकालीन क्रोध, अस्थायी क्रोध और स्थायी क्रोध। अल्पकालीन गुस्सा कुछ मिनट या घंटे तक का होता है और उससे माहौल बिगड़ता है। किसी कारण से हड़बड़ी में व्यक्ति कुछ भी कह देता है और कुछ मिनट बाद अफसोस करता है।

मैं मध्य प्रदेश के एक शहर में था। मैंने देखा कि एक व्यक्ति जो वहां के समाज का अध्यक्ष था, उसका पता ही नहीं लगता कि बात-बात में उसे कब क्रोध आ जाता है ? गुस्से में आकर वह माइक पर, मंच पर कुछ भी बोल देता था पर वह था इतना निश्छल दिल का आदमी कि या तो दो मिनट बाद ही सामने वाले से माफी मांग लेता अथवा यह कहते हुए मधुर मुस्कान से बात खत्म कर देता कि मैंने कब गुस्सा किया। अल्पकालीन क्रोध करने वाले लोग किसी बात को ज्यादा लम्बी नहीं खींचते। बस दो मिनट के लिए जैसे हवा में गुबार आया हो या पानी में बुलबुला उठा हो।

जिसे मैं अस्थायी क्रोध कहना चाहता हूं उन लोगों की प्रकृति ऐसी होती है कि वे किसी भी बात को दो दिन तक ढोते रहते हैं। बात छोटी सी होगी पर उसे खुद ही बढ़ाएंगे और दो दिन तक रूठे रहेंगे। फिर यह प्रतीक्षा करेंगे कि कोई उन्हें मनाए या ‘सॉरी’ कहे तो वे वापस पहले जैसे हो जाएं। ऐसे लोग पांच-सात दिन तक तो औरों से सारी कहलवाने का इंतजार करते हैं पर उसके बाद खुद ही सीधे और शांत हो जाते हैं।

तीसरी प्रकृति होती है स्थायी क्रोध की। ऐसे लोग मरते दम तक किसी भी बात को ढोते रहते हैं। जैसे किसी ने चार लोगों के बीच कोई अपमानजनक बात कह दी अथवा किसी की शादी में जाने पर सामने वाला व्यक्ति सबसे तो घुलमिल कर बात करे पर उनसे बात करना भूल जाए, यदि परिवार के किसी सदस्य द्वारा सहजता में ही कोई व्यंग्यात्मक बात कह दी जाए तो उस श्रेणी के क्रोध में जीने वाले लोग उनकी गांठ बांध लेते हैं और धीरे-धीरे अपने व्यवहार के द्वारा उस गांठ को और भी अधिक मजबूत करते रहते हैं। धीरे-धीरे यह गांठ, जो पहले तो एक तरफी होती है, फिर दो तरफी होकर परिवार और समाज में विभाजन करा देती है। जैसे गन्ने की गांठ में एक बूंद भी रस नहीं होता, वैसे ही जो लोग मन में गांठें बांध कर रखते हैं, उनका भी जीवन नीरस हो जाता है।

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