Sita Navami Vrat Katha: सीता नवमी पर पूजा के समय पढ़ें ये व्रत कथा, हर पाप से मिलेगी मुक्ति

Edited By Updated: 03 May, 2025 01:47 PM

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Sita Navami 2025 Vrat Katha: हिंदू धर्म में सीता नवमी का दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन माता सीता का जन्म हुआ था। सीता नवमी हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। मां सीता के जन्मोत्सव को सीता नवमी या जानकी...

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Sita Navami 2025 Vrat Katha: हिंदू धर्म में सीता नवमी का दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन माता सीता का जन्म हुआ था। सीता नवमी हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। मां सीता के जन्मोत्सव को सीता नवमी या जानकी नवमी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता सीता की सच्चे मन से पूजा करने से जीवन से सभी दुख दूर हो जाते हैं। इस दिन मां सीता की व्रत कथा पढ़ने का भी अपना ही अलग महत्व है। सीता नवमी के दिन माता जानकी की पूजा करने के साथ ही इस दिन से जुड़ी व्रत कथा पढ़ने पर घोर से घोर पापों से मुक्ति मिल जाती है। तो आइए जानते हैं सीता नवमी व्रत कथा के बारे में-

PunjabKesari Sita Navami Vrat Katha
Sita Navami Vrat Katha सीता नवमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मारवाड़ क्षेत्र में देवदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था और उनकी पत्नी थी शोभना, जो बहुत सुंदर थी। जहां देवदत्त पूजा-पाठ और अपने अच्छे कर्मों को करने में लगा रहता था, वहीं उसकी पत्नी शोभना अपनी सुंदरता में खोई रहती थी। उसकी सुंदरता की चर्चा पूरे क्षेत्र में की जाती थी। इसी घमंडी व्यवहार के कारण वह बाकी लोगों को अपने सामने कुछ नहीं समझती थी और उनके साथ बुरा व्यवहार करती थी।

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एक दिन जिस गांव में ब्राह्मणी रहती थी। उस गांव में कुछ कन्याएं आई। जो दिखने में उसे भी अधिक सुंदर थी। ब्राह्मणी उनसे ईर्ष्या करने लगी। अपने क्रोध में आकर उसने उन्हें जलवा दिया। थोड़े समय बाद ही ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई। अगले जन्म में वह चांडाली बनी और अपने जीवन में कई कष्ट भुगतने लगी। वह मां सीता की सच्ची भक्त थी।

एक दिन लोगों के तिरस्कार के कारण वह बहुत दुखी हुई और माता सीता की प्रतिमा के आगे बैठकर रोने लग गई। तब चांडाली को माता सीता की कृपा से अपना पूर्व जन्म याद आया। चांडाली को बहुत दुख हुआ। उसने अपने पापों का पश्चाताप करने के लिए वैशाख माह की नवमी के दिन व्रत रखना शुरू कर दिया। माता सीता उसकी भक्ति से प्रसन्न हुई और धीरे-धीरे उसके पापों से उसे छुटकारा मिल गया। तभी से इस दिन माता सीता की पूजा करने की प्रथा शुरू हुई।

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