Touch Wood करने का सही तरीका नहीं जानते होंगे आप?

Edited By Jyoti,Updated: 13 Apr, 2022 05:19 PM

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आपने कई लोगों को देखा होगा कि कुछ कहने के बाद टचवुड बोलते हैं। हो सकता है कि ये आपकी भी आदत हो लेकिन क्या

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आपने कई लोगों को देखा होगा कि कुछ कहने के बाद टचवुड बोलते हैं। हो सकता है कि ये आपकी भी आदत हो लेकिन क्या आप जानते हैं टचवुड क्यों करते हैं और ये कितना असरदार है और इसके फायदे और इसका सही तरीका। अगर नहीं तो इस आर्टिकल को गौर से पढ़ें। टचवुड का हिन्दी मतलब होता है लकड़ी छूना। माना जाता है कि वृक्षों पर आत्माओं का निवास होता है। आत्माओं की नजर आपकी खुशियों और दुआओं को नहीं लगे इसलिए टचवुड बोलकर लकड़ी छूते हैं। माना जाता है कि इससे आत्माएं आपकी खुशियों में बाधक नहीं बनते हैं। बता दें, टचवुड बोलने के साथ ही लकड़ी का स्पर्श करना शुभ माना जाता है। अगर टचवुड बोल दिया और लकड़ी का स्पर्श नहीं किया तो इसे अशुभ माना जाता है।
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आपकी जानकारी के लिए बता दें, टचवुड बोलने के बाद चंदन, रुद्राक्ष, तुलसी का स्पर्श करें तो ये अधिक शुभ फलदायी माना जाता है। इसका कारण ये है कि इन्हें पवित्र और पूजनीय माना गया है। साथ ही यह नजर दोष और बुरी शक्तियों से भी रक्षा करने में सक्षम हैं।

दरअसल अच्छी बात बोलते समय जिसे हम कहते हैं नजर न लगे की जगह टचवुड बोलते हैं अर्थात बुरी आत्माओं की वाणी से निकले शब्दों पर नजर न लगे।

टचवुड सिर्फ बोलने से काम नहीं चलता बल्कि वुड यानि लकड़ी का स्पर्श भी जरूरी होता है। इसके बगैर टचवुड बोलना अधूरा है। इससे ये साबित होती है कि पेड़ पौधे जिसमें भी लकड़ी है वह हमारी खुशियों की साथी है और ये हमें बुरी नजर से बचाती है।

बताते चलें, टचवुड बोलते समय किस लकड़ी को छूना चाहिए ये भी मायने रखता है। वैसे तो लोग मेज कुर्सी या लकड़ी की किसी भी वस्तु को छू लेते हैं लेकिन टचवुड बोलने के बाद यदि चंदन, तुलसी और रुद्राक्ष का स्पर्श किया जाए तो ये अधिक शुभ फलदायी हो जाता है। इसका कारण यह है कि इन्हें हिन्दू धर्म में पवित्र और पूजनीय माना गया है।
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जैसे हम अक्सर बात करते-करते कहते हैं ‘टचवुड’. ये कहते ही हम किसी लकड़ी से बनी हुई चीज़ को छू लेते हैं। इसका मकसद होता है बुरी नज़र से बचना. मतलब जब हम चाहते हैं कि हमारी किसी कही हुई बात को बुरी नज़र न लगे, तो हम लकड़ी को चूमते हैं. क्या आपने कभी सोचा है हम ऐसा क्यों करते हैं? इस अंधविश्वास की शुरुआत हिंदुस्तान में नहीं हुई थी. इसके पीछे चार अलग-अलग थ्योरी हैं-

पहली थ्योरी, कुछ लोगों का मानना है कि इसकी शुरुआत तब हुई थी जब लोग पेड़ों की पूजा करते थे। उनका मानना था कि कुछ पेड़ों में भगवान और अच्छी आत्माएं बसती हैं। सो वो अक्सर बुरी शक्तियों को भगाने के लिए पेड़ों को छूते थे। उनको लगता था कि ऐसा करने से वो बुरी नज़र से बच जाएंगे। इन्हीं में से कुछ लोग ये भी मानते थे कि लकड़ी छूने से आप भगवान को ‘थैंक यू’ बोल सकते हैं। हर उस अच्छी चीज़ के लिए जो आपके साथ हुई है।
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‘द गुड लक बुक’ के पुराने ज़माने में लोग बुरी आत्माओं को भगाने के लिए लकड़ी छूते थे। कुछ समय बाद इसने अंधविश्वास का रूप ले लिया। वो इसे अच्छी चीज़ों के लिए भी इस्तेमाल करने लगे। जब भी कुछ अच्छा होता था, वो लकड़ी छूने लगे। ये सोचकर कि उनमें अच्छी ताकतें रहती हैं।

तीसरी थ्योरी के अनुसार लकड़ी को छूकर बुरी नज़र से बचना शुरू कर दिया और वहीं कुछ लोगों का मानना है कि लकड़ी छूने का सारा सिलसिला जरमन्स की वजह से शुरू हुआ था। एक जर्मन लोककथा के मुताबिक जर्मनी में लोग अपने दोस्तों के साथ शराब पीते टाइम लकड़ी को छूते हैं। वो मानते हैं कि इससे ‘गुड लक’ आता है। यहां टेबल ओक नाम की लकड़ी से बनती थी। इस लकड़ी को पवित्र मानते थे। माना जाता था कि शैतान उस लकड़ी को छू नहीं सकता। लोगों को लकड़ी को छूकर साबित करना पड़ता था कि वो शैतान नहीं हैं।
 

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