Udham Singh Death Anniversary: जानें, भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह की अनोखी दास्तान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 Jul, 2023 08:19 AM

udham singh death anniversary

महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह का जन्म आज से 124 वर्ष पूर्व 26 दिसम्बर, 1899 को पंजाब के सुनाम कस्बे के एक गरीब परिवार में माता

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Udham Singh Death Anniversary: महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह का जन्म आज से 124 वर्ष पूर्व 26 दिसम्बर, 1899 को पंजाब के सुनाम कस्बे के एक गरीब परिवार में माता नारायण देवी की कोख से पिता टहल सिंह के घर हुआ। उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। उनका एक भाई भी था, उसका नाम मुख्ता सिंह था। 7 वर्ष की आयु में मां-बाप का साया उठने के बाद जवानी तक का सफर अमृतसर के यतीमखाने में बीता। यहीं पर शिक्षा के साथ-साथ मैकेनिक का काम सीख कर दक्षता हासिल की। अनाथालय में लोगों ने दोनों भाइयों को नया नाम दिया। शेर सिंह बन गए उधम सिंह और मुख्ता सिंह बन गए साधु सिंह। 1917 में ऊधम के भाई साधु की भी मौत हो गई और वह पूरी तरह अकेले हो गए। 1918 में ऊधम ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। 

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उन्हीं दिनों देश को आजाद करवाने के लिए नौजवानों ने पूरे देश में आंदोलन चला रखा था, जिसे दबाने के लिए अंग्रेज इन पर जमकर अत्याचार कर रहे थे।अंग्रेजों के इस अत्याचार के विरोध में, देश को अवगत करवाने और युवाओं को जगाने के लिए क्रांतिकारी नेताओं ने 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी वाले दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक विशाल जनजागरण जनसभा रखी थी। गवर्नर माईकल ओडवायर के आदेश पर सेना और पुलिस ने असहाय और निहत्थे भारतीयों को चारों ओर से घेर कर गोलियों की बौछार कर दी, जिससे आजादी के दीवाने हजारों भारतीय शहीद हो गए और उनके खून से जलियांवाला बाग की धरती लाल हो गई।

19 साल के युवा ऊधम सिंह घायलों की मदद के लिए जलियांवाला बाग गए तो वहां का दृश्य देख कर उनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत भर गई और उन्होंने शहीदों की लाशों के बीच खड़े होकर शपथ ली कि इस हत्याकांड के जिम्मेदार जनरल डायर और गवर्नर माईकल ओडवायर को मौत की सजा देने तक चैन से नहीं बैठेंगे।

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ऊधम सिंह ने यतीमखाने को छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के संपर्क में आए, जिनकी मदद से 1921 में नैरोबी चले गए। बाद में रूस पहुंच गए। रूस से वापस आकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। इंकलाबी पार्टी द्वारा अंग्रेज पुलिस इंस्पेक्टर सांडर्स की हत्या के बाद हुई धरपकड़ में इन्हें 4 रिवाल्वरों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और 4 साल की सजा हुई। रिहाई के बाद वह सुनाम चले गए लेकिन वहां भी बदला लेने की ज्वाला और पीड़ा ने पीछा नहीं छोड़ा। 

फिर अमृतसर आकर ‘राम मोहम्मद सिंह आजाद’ के नाम से पेंटर की दुकान खोल ली। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए उन्होंने प्रयास शुरू कर दिए। 1934 में वह लंदन पहुंचे और अंतत: 13 मार्च, 1940 को कैक्सटन हाल में माईकल ओडवायर को गोलियों की बौछार से ढेर कर जलियांवाला बाग के नरसंहार का बदला ले लिया। 31 जुलाई, 1940 को भारत के इस शेर ने फांसी के फंदे को चूम कर आजादी के महायज्ञ में अपने प्राणों की सर्वोच्च आहुति डाल दी।

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