Vivah muhurat: घर बैठे इस तरीके से स्वयं जानें विवाह मुहूर्त

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jul, 2020 08:51 AM

vivah muhurat

व्यक्ति सभी ग्रहों से पूर्ण है। संसार में पिता के रूप में सूर्य, माता के रूप में चंद्र, भाई के रूप में मंगल, बहन के रूप मे बुध, गुरु के रूप में बृहस्पति, पत्नी के रूप में शुक्र, जमीन, जायदाद कार्य तथा काम करने वाले लोगों के रूप में शनि,

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Vivah muhurat: व्यक्ति सभी ग्रहों से पूर्ण है। संसार में पिता के रूप में सूर्य, माता के रूप में चंद्र, भाई के रूप में मंगल, बहन के रूप मे बुध, गुरु के रूप में बृहस्पति, पत्नी के रूप में शुक्र, जमीन, जायदाद कार्य तथा काम करने वाले लोगों के रूप में शनि, ससुराल और दूर संबंधियों के रूप में राहू, पुत्र, भांजा और साले आदि के रूप में केतु जीवित रूप में माने जाते हैं।

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विवाह मुहूर्त के सामान्य नियम
विवाह मुहूर्त का निर्धारण करते समय निम्न नियमों का पालन किया जाना चाहिए :
मास शुद्धि माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ व मार्गशीर्ष विवाह के लिए शुभ मास हैं। विवाह के समय  देव शयन (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी) उत्तम नहीं होता। यदि मकर संक्रांति पौष में हो तो पौष में तथा मेष संक्रांति के बाद चैत्र में विवाह हो सकता है। अर्थात धनु व मीन की संक्रांति (सौर मास पौष व चैत्र) विवाह के लिए शुभ नहीं है। पुत्र के विवाह के बाद 6 मासों तक कन्या का विवाह वर्जित है। पुत्री विवाह के बाद 6 मासों में पुत्र का विवाह हो सकता है। परिवार में विवाह के बाद 6 मास
तक छोटे मंगल कार्य  (मुंडन आदि) नहीं किए जाते।

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जन्म मासादि निषेध
पहले गर्भ से उत्पन्न संतान के विवाह में उसका जन्म और मास, जन्मतिथि तथा जन्म नक्षत्र का त्याग करे। शेष के लिए जन्म नक्षत्र छोड़ कर मास व तिथि में विवाह किया जा सकता है।

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ज्येष्ठादि विचार
ज्येष्ठ पुत्र व ज्येष्ठ पुत्री का विवाह सौर ज्येष्ठ मास में न करें, यदि दोनों में से कोई एक ही ज्येष्ठ हो तो ज्येष्ठ मास में विवाह हो सकता है।

ग्राह्य तिथि : अमावस्या तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, त्रयोदशी और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को छोड़ कर सभी तिथियां।

ग्राह्य नक्षत्र : अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, मघा, उ.फा., हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, मूल, ऊ.षा.,श्रवण धनिष्ठा, उ.भा. रेवती।

योग विचार : भुजंगपात व विषकुंभादि योग विचार लिया जाना चाहिए।

करण शुद्धि : विष्टि करण (भद्रा) को छोड़ कर सभी पर करण शुभ तथा स्थिर करण मध्यम है।

वार शुद्धि : मंगलवार व शनिवार मध्यम है अन्य शेष शुभ वार है।

वर्जित काल : होलाष्टक, पितृपक्ष, मलमास, धनुस्थ और मीनस्थ सूर्य।

गुरु-शुक्र अस्त : गुरु शुक्र के अस्त होने के 2 दिन पूर्व और उदय होने के 2 दिन पश्चात तक का समय।

ग्रहण काल : पूर्ण ग्रहण दोष के समय एक दिन पहले व 3 दिन पश्चात का समय अर्थात कुल 5 दिन।

विशेष त्याज्य : संक्रांति, मासांत, अयन प्रवेश, गोल प्रवेश, युति दोष, पंचशलाका वैद्य दोष, मृत्यु बाण दोष, सूक्ष्म क्रांतिसाम्य, सिंहस्थ गुरु, सिंह नवांश में तथा नक्षत्र गंडांत।

योग : प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, सुकर्मा, धृति, वृद्धि, ध्रुव, सिद्धि, वरीयान, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, हर्षण, इंद्र एवं ब्रह्म योग विवाह के लिए प्रशस्त है। अर्थात सभी शुभ योग विवाह के लिए प्रशस्त हैं।

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विवाह के शुभ लग्र
विवाह में लग्र शोधन को प्राथमिकता दी गई है। अतएव दूसरे विचारों के साथ ही साथ लग्र शुद्धि का विशेष रूप से विचार करना चाहिए।

मिथुन, कन्या और तुला लग्र सर्वोत्तम लग्र है, वृषभ, धनु लग्र उत्तम है।, कर्क और मीन मध्यम लग्र है।

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लतादि दोष: विवाह मुहूर्त में निम्रलिखित 10 लतादि दोषों का विचार विशेष रूप से किया जाता है। प्रत्येक दोष मुक्त होने पर एक रेखा शुद्ध मानी जाती है और सभी लतादि दोष मुक्त हो तो अधिकतम 10 शुद्ध रेखाएं संभव होती हैं। किसी भी शुभ विवाह मुहूर्त के लिए 10 में से कम से कम 6 दोष मुक्त अर्थात 6 शुद्ध रेखाएं प्राप्त होनी चाहिएं। अन्यथा 6 से कम शुद्ध रेखा होने पर विवाह मुहूर्त त्याग दिया जाता है।  

10 लतादि दोष निम्रांकित हैं: 1. लता, 2. पात, 3. युति, 4. वैध, 5.यामित्र, 6.  बाण, 7 एकर्गल, 8. उपग्रह, 9. क्रांतिसाम्य, 10. दग्धा तिथि।

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