Edited By Sarita Thapa,Updated: 11 Dec, 2025 11:51 AM
पूज्य श्री प्रेमानंद महाराज जी आधुनिक युग के उन संतों में से हैं, जो भक्ति और आत्मज्ञान के माध्यम से जीवन के सबसे बड़े सत्य- माया को स्पष्ट करते हैं।
Premanand Maharaj Teachings: पूज्य श्री प्रेमानंद महाराज जी आधुनिक युग के उन संतों में से हैं, जो भक्ति और आत्मज्ञान के माध्यम से जीवन के सबसे बड़े सत्य- माया को स्पष्ट करते हैं। हम सभी इस संसार में रहते हुए नश्वर सुखों और मोह के गहरे जाल में फंसे रहते हैं, जिसके कारण हमें वास्तविक आनंद की अनुभूति नहीं हो पाती। महाराज जी अपने सरल प्रवचनों में बताते हैं कि इस मायावी प्रभाव को पहचानना और उससे मुक्ति पाना ही आत्म-कल्याण का सच्चा मार्ग है। तो आइए, प्रेमानंद महाराज जी के उपदेशों से जानें कि आप अपने मन पर माया के प्रभाव को कैसे पहचान सकते हैं और किस प्रकार भक्ति के मार्ग पर चलकर इस बंधन को हमेशा के लिए तोड़ सकते हैं।
माया के प्रभाव को कैसे पहचानें?
माया, जिसे अक्सर भ्रम या मोह कहा जाता है, वह शक्ति है जो हमें नश्वर चीज़ों में फंसाए रखती है। महाराज जी के अनुसार, जब आपमें ये लक्षण दिखें तो समझ लें कि आप माया के प्रभाव में है।
असंतोष की भावना
बाहरी सुख-सुविधाएं पाने के बाद भी लगातार असंतुष्ट रहना। आपको लगता है कि एक चीज़ पा ली, तो अगली चीज़ से खुशी मिलेगी, लेकिन वह खुशी क्षणिक होती है।
अत्यधिक आसक्ति
अपने शरीर, परिवार, धन-संपत्ति या मान-सम्मान से हद से ज़्यादा लगाव रखना। जब इनमें से कुछ भी दूर होता है या दुख देता है, तो आप टूट जाते हैं।
मैं और मेरा का भाव
हर चीज़ को मेरा मानकर उस पर अपना अधिकार जताना। यह अहंकार ही माया का सबसे बड़ा औज़ार है।
क्षणिक सुख को सत्य मानना
दुनियावी भोग-विलास और क्षणभंगुर सुखों को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य मान लेना।
परमात्मा से दूरी
भौतिक चीज़ों में इतना खो जाना कि ईश्वर या आत्म-कल्याण के लिए समय न निकाल पाना।

माया के जाल से दूर होने का तरीका
हरि नाम का जाप
यह सबसे सरल और सबसे शक्तिशाली उपाय है। महाराज जी कहते हैं कि लगातार भगवान के नाम का जाप करने से मन पवित्र होता है। नाम जाप एक ऐसी रस्सी है जो आपको माया के दलदल से बाहर खींच लेती है और आपको अपनी वास्तविक पहचान की ओर ले जाती है।
नश्वरता का बोध
हर दिन यह स्मरण करें कि यह संसार और इसके सभी रिश्ते क्षणिक हैं। यह ज्ञान आपको बाहरी चीज़ों के खोने के डर से मुक्त करता है। वस्तुएं या परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, इसलिए उनमें मन को स्थिर न करें।
सात्विक जीवन शैली
सात्विक भोजन, नियमित दिनचर्या और इंद्रियों को नियंत्रित रखने का अभ्यास करें। इंद्रियां ही माया के द्वार हैं। जब आप अपनी इंद्रियों को विषयों से हटाकर भगवान की भक्ति में लगाते हैं, तो माया का प्रभाव स्वतः कम हो जाता है।
सेवा और वैराग्य
निष्काम भाव से सेवा करना और संसार की नश्वरता को देखते हुए वैराग्य का भाव बढ़ाना। वैराग्य का अर्थ यह नहीं है कि घर छोड़ दें, बल्कि यह है कि आप संसार में रहते हुए भी उसमें आसक्त न हों। माया एक भ्रम है, और इस भ्रम को केवल भगवान के नाम और निरंतर अभ्यास से ही तोड़ा जा सकता है। बाहरी सुख नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और ईश्वर से प्रेम ही वास्तविक सुख है।

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