Exclusive Interview: डर और रहस्य तभी असर करते हैं जब वे असली लगें- करण टैकर

Edited By Updated: 19 Dec, 2025 09:46 AM

karan tacker exclusive interview with punjab kesari

इस नई वेब सीरीज भय: द गौरव तिवारी मिस्ट्री के बारे में करण टैकर ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। ओटीटी की दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुके अभिनेता करण टैकर अपनी नई वेब सीरीज भय: द गौरव तिवारी मिस्ट्री को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। इस वेब सीरीज में उन्होंने भारत के पहले पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर गौरव तिवारी का किरदार निभाया है। यह सीरीज भय: द गौरव तिवारी मिस्ट्री अमेज़न एमएक्स प्लेयर पर 12 दिसंबर को रिलीज हो चुकी है। अलग-अलग जॉनर में खुद को साबित कर चुके करण का कहना है कि उनके लिए हर नया प्रोजेक्ट एक नई शुरुआत जैसा होता है। इस सीरीज के बारे में करण टैकर ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...

करण टैकर

सवाल: आपने कई प्लेटफार्म्स पर शानदार काम किया है, फिर भी आप खुद को अभी भी शुरुआत में क्यों मानते हैं?

जवाब: बहुत-बहुत धन्यवाद। सच कहूं तो ये भावना कभी जाती ही नहीं। हमारी इंडस्ट्री आपको कभी पूरी तरह से सेटल महसूस नहीं करने देती। हर बार जब कोई नया काम खत्म होता है और अगली चीज की तलाश शुरू होती है तो वही शुरुआती डर और मेहनत वाली फीलिंग लौट आती है। जितना ज़्यादा काम करते हैं उतना ही एहसास होता है कि मेहनत और संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं।

सवाल: पिछली बार आपने कहा था कि आप अपनी “सेकंड इनिंग” खेल रहे हैं। ‘भय’ जैसे डरावने जॉनर को चुनने का फैसला कैसे लिया?

जवाब: मैंने सोचा अगर लोगों को डराया नहीं, तो शायद वो मुझे सीरियसली नहीं लेंगे। लेकिन मजाक से हटकर, एक्टर के तौर पर मैं हमेशा कुछ नया ढूंढता हूं। गौरव तिवारी का किरदार मेरे लिए बिल्कुल अनजाना था। जब पहली बार उनके बारे में पढ़ा, तो लगा कि ये इंसान खुद में एक कहानी है।

सवाल: गौरव तिवारी की कहानी ने आपको सबसे ज़्यादा क्या आकर्षित किया?

जवाब: गौरव पहले एक्टर बनना चाहते थे फिर पायलट बने अमेरिका में पढ़ाई की और अचानक सब छोड़कर भारत लौट आए। उन्होंने इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी बनाई और देश के पहले पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर बने। इतनी कम उम्र में उनका इस तरह जाना बहुत दुखद और रहस्यमय है। मुझे सबसे ज़्यादा उनकी हिम्मत और जुनून ने प्रभावित किया एक सुरक्षित ज़िंदगी छोड़कर एक ऐसे रास्ते पर चलना जिसे समाज आसानी से स्वीकार नहीं करता।

सवाल: क्या आपने इस किरदार को निभाते समय कोई खास तैयारी की?

जवाब: मैं चाहता था कि गौरव बहुत ज्यादा बोलने वाला न लगे। वो एक ठोस अंदर से मजबूत इंसान था जो तभी बोलता है जब ज़रूरी हो। मैंने स्क्रिप्ट रीड के दौरान कई डायलॉग्स हटाने की बात की। आमतौर पर एक्टर ज़्यादा डायलॉग चाहते हैं, लेकिन यहां मुझे खामोशी ज़्यादा असरदार लगी। मेरे लिए ये किरदार बहुत इंटर्नल था रहस्यमय, शांत और ऑब्ज़र्वेंट। हम चाहते थे कि सब कुछ नैचुरल लगे। इसलिए लॉन्ग सिंगल शॉट्स पर फोकस किया गया, ताकि दर्शक स्क्रीन से न हटे। मैं नहीं चाहता था कि ये शो कोरियोग्राफ्ड लगे। डर और रहस्य तभी असर करता है, जब वो असली लगे।

सवाल: इस शो को लेकर आपकी सबसे बड़ी चिंता क्या थी?

जवाब: मेरा सबसे बड़ा डर था कि लोग मुझे इस रोल में स्वीकार करेंगे या नहीं। लोग मुझे ज़्यादातर हीरो या यूनिफॉर्म वाले किरदारों में देखते आए हैं। मैं उस इमेज को तोड़ना चाहता था। ‘भय’ मेरे लिए एक बड़ा रिस्क था लेकिन खुशी है कि वो रिस्क काम कर गया।

सवाल: शो को दर्शकों से कैसा रिस्पॉन्स मिला?

जवाब: ईमानदारी से कहूं तो रिस्पॉन्स शानदार रहा है। मैं रिव्यूज़ नहीं पढ़ता लेकिन यूट्यूब और सोशल मीडिया पर ऑडियंस के कमेंट्स ज़रूर देखता हूं। मुझे खुशी है कि मेरे साथ एक नई ऑडियंस जुड़ी है और लोग मुझे एक नए रूप में देख रहे हैं।

सवाल: आपका एक्टिंग प्रोसेस क्या है? क्या आप खुद को बहुत “मेथड” एक्टर मानते हैं?

जवाब: आजकल “क्राफ्ट” और “प्रोसेस” जैसे शब्द बहुत इस्तेमाल होते हैं। ईमानदारी से कहूं तो मैं अपने प्रोसेस को किसी एक परिभाषा में नहीं बांध सकता। किरदार के साथ वक्त बिताते-बिताते वो अपने आप समझ आने लगता है। कई बार शूट खत्म होने के महीनों बाद जाकर आप उस किरदार को और बेहतर समझ पाते हैं बिल्कुल ज़िंदगी की तरह।

सवाल: क्या शूट के दौरान आपको कभी कोई पैरानॉर्मल अनुभव हुआ?

जवाब: मैं इस पर बहुत ज्यादा कहानियां बनाना पसंद नहीं करता क्योंकि प्रमोशन के नाम पर सच्चाई खो जाती है। लेकिन हां सेट पर कुछ अजीब अनुभव हुए हैं। हाल ही में मैं एक असली पैरानॉर्मल  इन्वेस्टिगेशन के लिए दिल्ली के मालचा महल गया था। वो मेरी ज़िंदगी का पहला ऐसा अनुभव था। अंधेरा, सन्नाटा और अकेलापन उस वक्त मैं खुद से पूछ रहा था कि मैंने हां क्यों कहा। वो मेरा पहला अनुभव था और उसके बाद मैं सो नहीं पाया क्योंकि वो मेरे दिमाग में ही घूम रहा था।

सवाल: भारत में पैरानॉर्मल को अक्सर भूत-प्रेत और टोटकों से जोड़ दिया जाता है। क्या ये सीरीज़ सोच बदल सकती है?

जवाब: मेरी मंशा शुरू से यही थी कि हम डर से आगे बढ़कर इंसानी नजरिए से सोचें। गौरव की सोच थी कि आत्माएं भी कभी इंसान थीं वो फंसी हुई हैं, बेबस हैं। हम अंधेरे से डरते हैं, इसलिए हमने तय कर लिया कि भूत सिर्फ अंधेरे में होते हैं। लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं। डर असल में हमारी समझ की कमी से आता है।

सवाल: क्या आप मानते हैं कि ये सीरीज़ भारत के लिए पैरानॉर्मल जॉनर में एक नया रास्ता खोल सकती है?

जवाब: अगर लोग इस शो के बाद थोड़ा कम डरें और थोड़ा ज्यादा समझने की कोशिश करें, तो मुझे लगेगा कि हमारा काम सफल रहा। ये हॉरर नहीं है, ये इंसानियत, जिज्ञासा और उस दुनिया को समझने की कोशिश है, जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।

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