ज्यादा दुख और सहानुभूति व्यक्त करना भी हो सकता खतरनाक, शरीर पर पड़ता है ये असर

Edited By Tanuja,Updated: 16 Nov, 2023 02:58 PM

compassion fatigue can happen to anyone  the conversation

ब्रिटेन के प्लाइमाउथ विश्वविद्यालय   कैरोलिना पुलिडो एरिज़ा ने अपनी एक अध्ययन रिपोर्ट में थकान को लेक एक नया दावा पेश किया है...

इंटरनेशनल डेस्कः ब्रिटेन के प्लाइमाउथ विश्वविद्यालय   कैरोलिना पुलिडो एरिज़ा ने अपनी एक अध्ययन रिपोर्ट में थकान को लेक एक नया दावा पेश किया है।  रिपोर्ट के अनुसार जब दुखद घटनाएं घटती हैं, चाहे वे हमसे कितनी भी दूर क्यों न हों, उनपर ध्यान न दे पाना मुश्किल होता है। हममें से कई लोग इन स्थितियों में फंसे लोगों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और सोचते हैं कि हम कैसे इसमें शामिल हो सकते हैं, या क्या हम ऐसे लोगों की मदद के लिए कुछ कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, हमने महत्वपूर्ण वैश्विक घटनाओं की एक श्रृंखला देखी है, जिनमें कोविड महामारी से लेकर यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के साथ-साथ कई प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं। 

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि  इतनी सारी त्रासदियों के एक के बाद एक आने के बाद, हममें से कुछ लोग यह महसूस कर रहे होंगे कि दुनियाभर में एक साथ इतना कुछ हो रहा है, हमारे पास देने के लिए कोई सहानुभूति नहीं बची है और हम अपने आस-पास जो चल रहा है उससे दूर हो जाएंगे। यदि आप ऐसा महसूस कर रहे हैं, तो जान लें कि इसका मतलब यह नहीं है कि आपमें दूसरों के प्रति सहानुभूति की कमी है। बल्कि, यह एक संकेत हो सकता है कि आप सहानुभूति व्यक्त कर कर के थक चुके हैं। करुणा थकान एक तनाव प्रतिक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप किसी आपदा के पीड़ित लोगों के प्रति उदासीनता या अलगाव की भावना उत्पन्न होती है। यह घटना स्वास्थ्य देखभाल में विशेष रूप से आम है।

 

स्वास्थ्य और सामाजिक कार्यकर्ता विशेष रूप से इसे महसूस कर सकते हैं क्योंकि उनके काम की प्रकृति का अर्थ अक्सर अपने रोगियों के भावनात्मक बोझ को साझा करना होता है। मनोवैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि कुछ विशेष प्रकार के व्यक्तित्व वाले लोगों में करुणा थकान का अनुभव होने का खतरा अधिक हो सकता है। उदाहरण के लिए, जो लोग अपनी भावनाओं को दबाए रखते हैं, लेकिन निराशावाद और चिंता से ग्रस्त होते हैं, वे अधिक संवेदनशील होते हैं। सामाजिक समस्याओं के प्रति सार्वजनिक चिंता की सामान्य असंवेदनशीलता का वर्णन करने के लिए भी इस शब्द का उपयोग तेजी से किया जा रहा है। लेकिन, जैसा कि पत्रकारिता प्रोफेसर सुसान मोएलर ने अपनी पुस्तक कंपैशन फटीग में लिखा है, क्या हम ‘‘अपने आस-पास की दुनिया के बारे में कम परवाह करते हैं'' - तब भी जब हम जो समाचार कहानियां और छवियां देखते हैं वे इतनी भयावह और चौंकाने वाली होती हैं?

 

विज्ञान हमें एक स्पष्टीकरण प्रदान करता है, और वह यह है कि करुणा की अधिकता से अवसाद, थकन और भावनाओं का आधिक्य महसूस हो सकता है। करुणा की थकान दूसरों की पीड़ा से उबरने के लिए ‘‘अस्तित्व की रणनीति'' के रूप में कार्य करती है। मीडिया भी इसमें आंशिक रूप से भूमिका निभा सकता है। कई प्रकाशन इस बात से अवगत हैं कि जब संकटों का दौर आता है, तो हमारी चिंता का स्तर कम हो जाता है। इसलिए, लोगों को जोड़े रखने के लिए ऐसी सामग्री का प्रकाशन किया जाता है जो तेजी से ध्यान आकर्षित करे। मोलर के अनुसार, पत्रकार उन घटनाओं को त्याग कर ऐसा करते हैं जिनमें पिछली घटनाओं की तुलना में नाटकीयता या घातकता की कमी होती है, या अपनी कहानियों में अधिक साहसी भाषा और कल्पना का उपयोग करते हैं।

 

इसके बाद इसे समाचारों के लगभग निरंतर संपर्क के साथ जोड़ा जाता है - हमारे फोन हमें आपदाओं और विश्व की घटनाओं के घटित होने पर तुरंत जानकारी प्रदान करते हैं। यह तीव्र और बार-बार होने वाली अधिक ज्वलंत, कष्टकारी घटनाओं का संपर्क करुणा की थकान को सामने लाने के लिए एक आदर्श वातावरण बनाता है। चाहे आप किसी भी कारण से करुणा थकान का अनुभव कर रहे हों, यह कोई स्थायी घटना नहीं है। ऐसी कई तकनीकें हैं जिनका उपयोग आप इसका सामना करने और इस पर काबू पाने के लिए कर सकते हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

 

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