बांग्लादेश में अब कट्टरपंथियों का राज ! बोले- स्कूलों में डांस और म्यूजिक टीचर घातक, मौलवी करो भर्ती

Edited By Updated: 08 Sep, 2025 03:57 PM

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बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने एक बार फिर से अपनी विचारधारा थोपने की कोशिश शुरू कर दी है। जमात-ए-इस्लामी ने सरकार को सीधी चेतावनी देते हुए कहा है कि स्कूलों में डांस और म्यूजिक

Dhaka: बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने एक बार फिर से अपनी विचारधारा थोपने की कोशिश शुरू कर दी है। जमात-ए-इस्लामी ने सरकार को सीधी चेतावनी देते हुए कहा है कि स्कूलों में डांस और म्यूजिक टीचरों की भर्ती तुरंत बंद की जाए और उनकी जगह मौलवियों की नियुक्ति की जाए। जमात के महासचिव मिया गुलाम परवार ने बयान जारी कर कहा- “संगीत और नृत्य शिक्षकों की नियुक्ति पूरी तरह अस्वीकार्य है। ये विषय छात्रों के लिए अनिवार्य नहीं हो सकते। बच्चों को इस्लामिक शिक्षा देना ही सबसे ज़रूरी है।”

 

परवार ने आगे कहा कि- “अगर किसी परिवार को डांस या म्यूजिक सीखने की इच्छा है, तो वे निजी शिक्षक रख सकते हैं। लेकिन मजहबी शिक्षा सभी समुदायों के लिए ज़रूरी है। डांस टीचरों की भर्ती देश के लिए आत्मघाती कदम होगी।”परवार ने  कहा कि डांस टीचरों की भर्ती देश के लिए आत्मघाती कदम है। उन्हें इस्लाम सिखाना चाहिए, उन्हें इस्लामिक शिक्षा देना ज्यादा जरूरी है, ताकि बच्चों में मजबूत इस्लामिक मूल्य आए।  बता दें कि मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार बनने के बाद जमात की आवाज और तेज हो गई है। समाज में पहले से बढ़ रही असहिष्णुता और नैतिक संकट का हवाला देकर जमात-ए-इस्लामी, सरकार पर दबाव बना रहा है कि वह मजहबी शिक्षा को अनिवार्य करे।

 

विशेषज्ञों का कहना है किबांग्लादेश का इतिहास हमेशा उसकी समृद्ध संस्कृति, साहित्य, म्यूजिक और डांस से जुड़ा रहा है। 1971 में पाकिस्तान से अलग होने की बड़ी वजह भी बंगालियों पर उर्दू थोपने और उनकी संस्कृति कुचलने की कोशिश थी। लेकिन मौजूदा समय में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार बनने के बाद जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जमात का यह बयान सिर्फ  शिक्षा व्यवस्था पर हमला नहीं  बल्कि बांग्लादेश के  बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक ताने-बाने  के लिए भी खतरे की घंटी है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर पहले से ही हिंदू समुदाय के खिलाफ कई नीतियां अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। अब जमात-ए-इस्लामी के इस अल्टीमेटम ने सवाल खड़ा कर दिया है कि  क्या यूनुस सरकार कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक देगी? क्या बांग्लादेश अपनी सांस्कृतिक पहचान खो देगा?

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