Edited By Rahul Singh,Updated: 10 Dec, 2025 06:29 PM
साल 2025 दुनिया के लिए काफी हलचल भरा रहा। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत कर चुके थे और पहले ही साल में उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जिनका असर सिर्फ अमेरिका पर नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा। कई देशों ने इन फैसलों पर नाराज़गी...
Donald Trump Controversial Decisions in 2025 : साल 2025 दुनिया के लिए काफी हलचल भरा रहा। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत कर चुके थे और पहले ही साल में उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जिनका असर सिर्फ अमेरिका पर नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा। कई देशों ने इन फैसलों पर नाराज़गी जताई, तो कई जगह बेचैनी भी बढ़ी। यहां 2025 में ट्रंप के उन 5 सबसे बड़े और विवादित फैसलों का जिक्र किया गया है, जिनका असर तुरंत दिखा।
1) पेरिस जलवायु समझौते और कई पर्यावरणीय संधियों से अमेरिका की वापसी
क्या हुआ: जनवरी 2025 में ह्वाइट हाउस की ओर से आदेश जारी हुआ कि अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते और कुछ अन्य बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों से हट रहा है। प्रशासन ने इस कदम को “अमेरिकी उद्योगों व अर्थव्यवस्था पर असमान बोझ” बताकर जायज़ ठहराया।
क्यों ये महत्वपूर्ण है: अमेरिका दुनिया का एक बड़ा उत्सर्जक देश रहा है। इसलिए पेरिस समझौते जैसा बहुपक्षीय ढांचा इस मुद्दे पर वैश्विक एकजुटता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। किसी बड़े प्रदूषक का बाहर होना वैश्विक लक्ष्य, जैसे तापमान वृद्धि को 1.5–2°C पर रोकना, को मुश्किल बना देता है।
तुरंत असर:
- अंतरराष्ट्रीय क्लाइमेट वार्ता और राष्ट्रीय नीतियों में अनिश्चितता बढ़ी।
- यूरोपीय देशों व कई विकासशील राष्ट्रों ने चिंता जताई और कुछ ने कहा कि अमेरिका के बिना ग्लोबल एमिशन कट लक्ष्य धीमे पड़ेंगे।

2) WHO, UNHRC और अन्य संस्थाओं के लिए अमेरिकी फंडिंग में कटौती
क्या हुआ: 2025 के प्रारंभ में ही प्रशासन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) और फिलिस्तीनी शरणार्थियों से जुड़ी एजेंसी UNRWA जैसी संस्थाओं को दी जाने वाली अमेरिकी मदद घटा दी या रोक दी। कुछ आदेशों के ज़रिये इन निकायों के साथ अमेरिका की औपचारिक जुड़ाव नीति भी बदली गई।
क्यों यह विवादास्पद रहा: WHO और UNRWA जैसे संस्थान वैश्विक स्वास्थ्य, आपातकालीन प्रतिक्रिया और शरणार्थी राहत के कामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अमेरिका की फंडिंग कम होने से इन कार्यक्रमों की वित्तीय आधारसत्ता कमजोर हुई—खासकर उन देशों में जहाँ स्थानीय स्वास्थ्य प्रणालियाँ कमज़ोर हैं और अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भरता अधिक है।
तुरंत असर:
- महामारी निगरानी, टीकाकरण और आपातकालीन हेल्थ सपोर्ट के कुछ कार्यक्रम प्रभावित हुए।
- UNRWA के कुछ राहत-कार्य सीमित हुए, जिससे फिलिस्तीनी शरणार्थियों पर पड़ने वाला प्रत्यक्ष प्रभाव हुआ।
- कई देशों और दाता संस्थाओं ने वैकल्पिक फंडिंग बढ़ाने की कोशिश की, पर गैप बड़ा दिखा।

3) टैरिफ-आक्रमण: व्यापार नीति को बनाया गया कड़ा हथियार
क्या हुआ: फरवरी 2025 में प्रशासन ने बहु-देशीय और द्विपक्षीय व्यापार रिश्तों में बड़े टैरिफ लगा दिए—कनाडा व मेक्सिको पर 25% तक के आयात शुल्क, चीन व कुछ एशियाई देशों पर कम-से-कम 10% और भारत पर अतिरिक्त 25% जैसे प्रावधान। कुछ आदेशों को राष्ट्रीय आपातकाल/IEEPA के नाम पर जारी किया गया ताकि पारंपरिक व्यापार समझौतों की सीमाओं को दरकिनार किया जा सके।
क्यों तीव्र प्रतिक्रिया मिली: अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों और आपसी भरोसे पर आधारित हैं। अचानक उच्च टैरिफ लगाने से सप्लाई चेन, कंपनियों की लागत संरचना और उपभोक्ता कीमतों पर तेज असर पड़ा। साथ ही यह कदम उन देशों के लिए चुनौती बन गया जिनकी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका के साथ गहरे जुड़ी हैं।
तुरंत असर:
- वैश्विक शेयर-बाज़ारों में अस्थिरता और गिरावट देखी गयी।
- कई देशों ने प्रतिशोधी टैरिफ लगाने की धमकी दी और कुछ ने लागू भी किए—जिससे द्विपक्षीय व्यापार तनाव बढ़ा।
- अमेरिकी उद्योगों को भी फर्क पड़ा—क्योंकि कई कच्चा माल और हिस्से अब महंगे हो गए।
4) गाजा पट्टी पर ‘अमेरिकी प्रशासन’ का प्रस्ताव — कूटनीतिक भूकंप
क्या रिपोर्ट हुई: साल 2025 के दौरान ट्रंप प्रशासन ने एक विवादित रूपरेखा पेश की जिसमें गाजा पट्टी के कुछ प्रबंधों को अंतरिम तौर पर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं से हटाकर किसी प्रकार के “अमेरिकी-निर्धारित” प्रशासनिक रूप में व्यवस्थित करने का सुझाव शामिल था। कुछ रिपोर्टों में बड़े पैमाने पर पुनर्वास, सीमाएँ और स्थानान्तरण संबंधी योजनाओं का ज़िक्र भी आया जोकि विस्थापन के जोखिमों से जुड़ी बातें थीं।
क्यों यह बड़ा विवाद बना:
-किसी क्षेत्र को दूसरे देश के “प्रशासन” के तहत लाने का विचार अंतरराष्ट्रीय कानून, संप्रभुता सिद्धांत और मानवाधिकार के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है।
- अरब देशों, ईयू व अन्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने चेताया कि इससे क्षेत्रीय शांति व स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
- संयुक्त राष्ट्र और कई मानवाधिकार समूहों ने इस तरह के प्रस्ताव को अव्यावहारिक और बढ़ती हिंसा का कारण बनने योग्य बताया।

5) H-1B वीजा नीति में सख्ती,प्रतिभा प्रवाह पर बड़ा झटका
क्या बदला: 2025 में H-1B वीज़ा कार्यक्रम और उससे जुड़े नियमों में कड़े परिवर्तन किए गए, जैसे कुल संख्या घटाना, चयन-और सत्यापन प्रक्रिया जटिल बनाना, ‘Buy American, Hire American’ नीतियों को लागू करना और H-4 धारकों के वर्क परमिट पर रोक लगाने के प्रयास। इन बदलावों का असर खासकर भारतीय पेशेवरों और टेक कंपनियों पर पड़ा। कुछ रिपोर्टों में वीज़ा इंटरव्यूज़ की तालिकाएं स्थगित होने और सोशल-मीडिया चेक्स जैसी नई शर्तों के चलते प्रोसेसिंग में देरी होने की भी खबरें हैं।
क्यों यह अर्थव्यवस्था व शिक्षा पर असरदार रहा:
- अमेरिकी टेक कंपनियाँ और स्टार्टअप्स विदेशी उच्च-प्रशिक्षित कारीगरों पर निर्भर होते हैं। H-1B में बाधा का मतलब किसी परियोजना के लिए आवश्यक कौशल का अभाव और विकास धीमा पड़ना।
- भारतीय इंजीनियरों और प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका में काम पाना कठिन हुआ; कई लोग वीजा की अनिश्चितता के कारण नौकरी-स्थानांतरण या घर वापसी के बारे में सोचने लगे।
- साथ ही उच्च शिक्षा संस्थान और शोध परियोजनाएँ भी प्रभावित हुईं, क्योंकि विदेशी छात्र और शोधकर्ता अमेरिका में कम टिक रहे।