..इसके बिना यहां नहीं ब्याही जाती बेटी!

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2015 05:41 PM

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छत्तीसगढ़ के बस्तर की लोक संस्कृति में गोदना कला का बहुत महत्व है। न केवल गोंड समाज, वरन माडिसा, मुरिया समाज व हिंदू समाज में भी इसका प्रचलन है।

जगदलपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर की लोक संस्कृति में गोदना कला का बहुत महत्व है। न केवल गोंड समाज, वरन माडिसा, मुरिया समाज व हिंदू समाज में भी इसका प्रचलन है। जिस तरह शहरी लोग टैटू बनवाते हैं, उसी तरह गांवों में गोदना कला का प्रचलन है। इसके बिना बेटी ब्याही नहीं जाती। कोंडागांव के बासना गांव से आई चंपा मरकाम और सविता नेताम बताती हैं कि गोदना एक कुदरती कला है। इस कला के जानकार न केवल इससे महिलाओं का श्रृंगार करते हैं, बल्कि अनेक बीमारियों का भी इससे इलाज किया जाता है। 

दोनों यह भी बताती हैं कि वे लगभग 15 वर्षों से इस कला से जुड़ी हैं और पूरे गांव के अलावा आसपास के क्षेत्रों के लोग इस कला को अपनाते हैं। ठंड के समय में ही महिला गोदना गोदवाती हैं। गर्मी के मौसम में यह वर्जित है। उन्होंने बताया कि पहली बार उन्हें शहर आकर अपनी कला के प्रदर्शन का मौका मिल पाया है। धरमपुर स्थित भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण परिसर में वह इस कला को कागज पर उकेर रही हैं। 

इन महिला कलाकारों ने बताया कि सरकार ने कभी भी इस कला के प्रचार-प्रसार के लिए हमारा सहयोग नहीं किया और न ही कभी संस्कृति विभाग के किसी शिविर में हमें कला प्रदर्शन का मौका मिल पाया। सरकार शायद बस्तर की इस कला से अनजान है, इसलिए प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। 

गोदना कलाकारों का कहना है कि गोंडवाना समाज में यह मान्यता है कि गोदना कला जीवन के अंत समय तक शरीर में मौजूद रहती है और आत्मा के साथ मिल जाती है। उन्होंने बताया कि बस्तर की गोदना कला का डिजाइन अन्य राज्यों से अलग है। इन राज्यों की इस कला से तो लोग परिचित हैं, लेकिन यह कला बस्तर तक ही सीमित है।

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