जम्मू कश्मीर: खनन माफिया हावी और सरकार को लग रहा है चूना

Edited By Updated: 30 Jun, 2015 03:12 PM

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जम्मू-कश्मीर में दर्जनों नदियां-नाले और खड्डें हैं, जिनमें वर्षभर खनन होता रहता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार नए नियमों को अधिसूचित न किए जाने के चलते पिछले कई वर्ष से टैंडरिंग की प्रक्रिया रुकी पड़ी है।

श्रीनगर/जम्मू(बलराम): जम्मू-कश्मीर में दर्जनों नदियां-नाले और खड्डें हैं, जिनमें वर्षभर खनन होता रहता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार नए नियमों को अधिसूचित न किए जाने के चलते पिछले कई वर्ष से टैंडरिंग की प्रक्रिया रुकी पड़ी है। नए टैंडर न होने के कारण पुराने ठेकेदारों को ही फिर से काम सौंपने के कारण खनन पर इन्हीं 8-10 फर्मों का एकाधिकार होकर रह गया है।

बहुत से स्थानों पर भूविज्ञान एवं खनन विभाग खुद ही खनन का काम देख रहा है, लेकिन विभाग में पर्याप्त स्टाफ न होने एवं इच्छाशक्ति के अभाव के चलते इस कारोबार पर खनन माफिया हावी होता जा रहा है। खनन माफिया को न तो किसी नियम की परवाह है और न ही पर्यावरण संरक्षण की, ऐसे में खनन कारोबारियों और पर्यावरणविदों को नए नियमों के तहत टैंडर प्रक्रिया शुरू होने का इंतजार है। उधर, टैंडर न होने से प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाने और खनन माफिया के हावी हो जाने के कारण सरकारी खजाने को भारी राजस्व का नुक्सान उठाना पड़ रहा है।

विभागीय सूत्रों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर ही नहीं, बल्कि पूरे देश में खनन माफिया अपने पांव फैलाता जा रहा था। इसलिए हरियाणा में कुछ पर्यावरणविदों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और ‘दीपक कुमार बनाम सरकार’ मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों को यह हिदायत दी कि वे पर्यावरण संरक्षण से जुड़े तमाम मानदंडों को ध्यान में रखते हुए नए नियम तय करें, ताकि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना खनन का काम सुचारू ढंग से चल सके। इनमें कहा गया है कि केंद्रीय खनन मंत्रालय, भारतीय खनन ब्यूरो और राज्य सरकारों के साथ मिलकर माइन्स एंड मिनरल्स (डेवल्पमैंट एंड रैगुलेशन) एक्ट-1957, मिनरल कंसेशन रूल्स 1960 के तहत विभिन्न वर्गों के खनन के लिए उचित मानदंड तय करे, ताकि राज्य सरकारों को खनन प्रक्रिया के नए नियम निर्धारित करने में मदद मिल सके। इन निर्देशों में बहुत विस्तार के लिए खनन के विभिन्न स्तर को वर्गीकृत करके मानदंड निर्धारित किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट से निर्देश मिलने के बाद देश की कई राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों ने खनन प्रक्रिया के नए नियम निर्धारित करके अधिसूचना जारी कर दी है। इससे उनके अधीन क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर सुरक्षित खनन का काम शुरू हो गया है, लेकिन वर्ष 2012 में जारी हुए इन निर्देशों के करीब 3 वर्ष बाद भी जम्मू-कश्मीर सरकार नए नियमों को अंतिम रूप देकर खनन प्रक्रिया के संबंध में नई अधिसूचना जारी करने में नाकाम रही है।

राज्य के भूविज्ञान एवं खनन विभाग के सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश मिलने के बाद उनके विभाग ने नए नियम निर्धारित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और जून 2014 में नए नियम बनाकर सरकार को सौंप भी दिए थे। इसके बाद विभिन्न विभागों के अधिकारियों के बीच इन नियमों पर चर्चा हुई। इसी बीच, राज्य में पहले बाढ़ और फिर विधानसभा चुनाव आ गए, जिसके चलते नई अधिसूचना जारी नहीं हो पाई। नई सरकार बनने के बाद उद्योग मंत्री और अधिकारियों के बीच नए सिरे से बैठकबाजी का दौर शुरू हुआ, लेकिन अधिसूचना जारी न होने के कारण खनन के लिए टैंडर प्रक्रिया रुकी पड़ी है। इसके चलते पुराने ठेकेदार चांदी कूट रहे हैं। पर्यावरणविदों और खनन कारोबारियों को सुरक्षित खनन के लिए अब राज्य सरकार से नई अधिसूचना की आस है।

पूरी पारदर्शिता के साथ जल्द होंगे खनन टैंडर : उद्योग मंत्री
उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री चंद्रप्रकाश गंगा का कहना है कि खनन के मामले में पिछली सरकारों ने सब गोल-मोल किया और पारदर्शिता से काम नहीं किया। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार ने नए नियम बनाने के निर्देश दिए थे। अब उनकी सरकार तमाम पहलुओं पर विचार करते हुए खनन प्रक्रिया के लिए नए नियम तैयार करने में लगी है। उन्होंने कहा कि नए नियमों के तहत खनन टैंडर प्रक्रिया में पूरी तरह पारदर्शिता बरती जाएगी और इनके तहत बहुत जल्द टैंडर आमंत्रित किए जाएंगे। उन्होंने स्वीकार किया कि टैंडर प्रक्रिया में देरी होने से विभाग को राजस्व का नुक्सान हो रहा है।

साम्बा, रियासी, डोडा, किश्तवाड़, रामबन विभाग के पास
जम्मू संभाग में खनन का ज्यादातर काम अब भूविज्ञान एवं खनन विभाग के पास है। विशेषकर साम्बा, रियासी, डोडा, किश्तवाड़ और रामबन जिलों में खनन का पूरा काम विभाग के पास है, लेकिन पर्याप्त स्टाफ न होने के कारण विभाग इस काम से इंसाफ नहीं कर पा रहा है। संभाग में केवल पुंछ जिला ही ऐसा है, जिसके सभी नदियां, नाले व खड्डें ठेकेदारों को सौंपी गई हैं। इन परिस्थितियोंके चलते सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का तो नुक्सान हो ही रहा है, पर्यावरण को भी भारी नुक्सान हो रहा है।

जिला जम्मू
जिला जम्मू में किशनपुर/कथार से सांगड़ तक, कटल बटाल से सिधड़ा बाइपास तक और सिधड़ा से पुराने तवी पुल तक तवी नदी एवं इससे जुड़े नदी-नालों में खनन का काम विभाग के पास है। कंटोनमैंट बोर्ड क्षेत्र को छोड़कर जम्मू एवं आर.एस. पुरा में तवी एवं इससे जुड़े नालों में खनन का काम ठेकेदार द्वारा किया जा रहा है, जबकि जम्मू तहसील के गुरहापात्तन से गादला तक चिनाब किनारे समेत अखनूर तहसील के नदी-नालों में खनन का काम भी अब विभाग के पास आ गया है। इसी प्रकार जानीपुर से अघोर तक के सभी नालों एवं खड्डों का काम भी विभाग के पास है।

जिला कठुआ
जिला कठुआ के हीरानगर तहसील में तरनाह नदी, छप्पड़ नाला, मेटा नाला, मोटा नाला, बिलावर तहसील में ऊझ नदी, भाग लाना, शाप खड्डा, ट्रोटी नाला समेत सभी नदी-नालों, बसौली तहसील में एन.एच.पी.सी. के सेवा प्रोजैक्ट को छोड़कर सभी नदी-नालों और तहसील कठुआ के तहत रावी नदी में लखनपुर ब्रिज अपस्ट्रीम से थीन डैम तक खनन का काम विभाग के पास है, जबकि कठुआ तहसील के लोगेट मोड़ से बसौली मोड़ तक और कठुआ तहसील में ही लखनपुर ब्रिज डाऊनस्ट्रीम से आगे रावी नदी में खनन का काम ठेकेदारों के पास है।

जिला राजौरी
जिला राजौरी में समीटी गली से बुद्धल तक अनस नाला और गब्बर से केवल गांव तक गब्बर नाला को छोड़कर कालाकोट, सुंदरबनी, बुद्धल, थन्नामंडी, दरहाल तथा राजौरी तहसीलों के सभी नदी-नालों में खनन का काम विभाग के पास है। केवल नौशहरा तहसील के नदियां, नाले व खड्डें ठेकेदार देख रहे हैं।

जिला ऊधमपुर
जिला ऊधमपुर में झज्जर नाला तथा इससे जुड़े नालों को झज्जर पुल की डाऊनस्ट्रीम से लेकर तवी में संगम तक खनन के लिए ठेकेदार को सौंपा गया है। इसके अलावा जिला ऊधमपुर के तहत पडऩे वाली सभी नदियों, नालों और खड्डों में खनन का काम विभाग द्वारा किया जा रहा है।

 

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