Edited By Anu Malhotra,Updated: 14 Nov, 2025 02:40 PM

बिहार विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि मतदान के दिन किसी की भी मौत नहीं हुई और किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में पुनर्मतदान की जरूरत नहीं पड़ी। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य में हिंसा हुई, कुछ मौतें...
नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि मतदान के दिन किसी की भी मौत नहीं हुई और किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में पुनर्मतदान की जरूरत नहीं पड़ी। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य में हिंसा हुई, कुछ मौतें भी हुईं और कई निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव भी कराने पड़े थे।
आंकड़ों के अनुसार, 1985 के चुनावों में 63 मौतें हुई थीं और 156 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का आदेश दिया गया था। साल 1990 के चुनावों के दौरान, चुनाव संबंधी हिंसा में 87 लोग मारे गए थे। साल 1995 में, तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने अप्रत्याशित हिंसा और चुनावी कदाचार के कारण बिहार चुनावों को चार बार स्थगित करने का आदेश दिया था। आंकड़ों के अनुसार, 2005 में हिंसा और कदाचार के कारण 660 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान हुआ था। बिहार में इस साल दो चरणों में विधानसभा चुनाव हुए और इसके लिए मतगणना जारी है।
चुनावी व्यवस्था में क्या बदला?
1. तकनीक का बढ़ा उपयोग
- हर संवेदनशील बूथ पर वेबकास्टिंग
-ड्रोन से निगरानी
-GPS आधारित वाहन मॉनिटरिंग
-लाइव पोलिंग डैशबोर्ड
2. केंद्रीय बलों की मजबूत तैनाती
-CAPF को हर संवेदनशील इलाके में फ्लैग मार्च और त्वरित प्रतिक्रिया के लिए तैनात किया गया।
-3. चुनाव आयोग की कड़ी नीति
-शराब, हथियार, नगद की रिकॉर्ड जब्ती
-24×7 कंट्रोल रूम
-प्रत्याशियों व बाहरी तत्वों की सख्त निगरानी
4. स्थानीय समाज का माहौल
लंबे समय से चल रहा विकास, सड़क कनेक्टिविटी, और अपराध पर नियंत्रण ने भी शांतिपूर्ण चुनाव में योगदान दिया।