क्या देश में विरोध-प्रदर्शन की सीमाएं हो सकती है तय, सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

Edited By Pardeep,Updated: 07 Oct, 2020 05:19 AM

can the limits of protest performance be fixed in the country

सुप्रीम कोर्ट बुधवार को उस याचिका पर फैसला सुना सकता है, जिनमें सार्वजनिक स्थानों पर विरोध करने के अधिकार के दायरे और इस तरह के अधिकार की सीमाएं हो सकती हैं या नहीं, को लेकर दिशानिर्देश तय किए जाने की मांग की गई है। यह

नई दिल्‍लीः सुप्रीम कोर्ट बुधवार को उस याचिका पर फैसला सुना सकता है, जिनमें सार्वजनिक स्थानों पर विरोध करने के अधिकार के दायरे और इस तरह के अधिकार की सीमाएं हो सकती हैं या नहीं, को लेकर दिशानिर्देश तय किए जाने की मांग की गई है।

यह फैसला कई मायनों में अहम होगा, क्‍योंकि उम्‍मीद जताई जा रही है कि आज सुप्रीम कोर्ट देश में होने वाले विरोध-प्रदर्शन की सीमा तय कर सकता है। दरअसल, दिल्‍ली के शाहीन बाग इलाके में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शन को लेकर इस बाबत याचिका दायर की गई थीं। इस मामले में याचिकाकर्ता वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने अर्जी दाखिल की थी। 

साहनी ने अर्जी में कहा था कि सड़कों पर ऐसे विरोध जारी नहीं रह सकते। सड़कों को ब्लॉक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद प्रदर्शन 100 दिनों तक चलते रहे और सुप्रीम कोर्ट को दिशानिर्देश तय करने चाहिए। याचिकाकर्ता की तरफ से सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया कि भविष्य में आगे से ऐसी किसी भी स्थिति से बचने के लिए वजह उचित निर्देश दे। सुनवाई के दौरान भी कई बार लोकतंत्र में विरोध-प्रदर्शन के अधिकार और लोगों के आसानी से आवागमन के अधिकार को लेकर बात उठी थी। जजों ने भी सभी पक्षों को सुनने के बाद बीते 21 सितंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था।

अब सभी की नज़र इस बात पर है कि कोर्ट आज सिर्फ मामले को बंद करने का आदेश देगा या विरोध प्रदर्शनों के अधिकारों या उसकी सीमाओं को लेकर कुछ अहम निर्देश देगा। इस बाबत फैसला न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 3 सदस्‍यीय पीठ द्वारा सुनाया जाएगा।

बीते 21 सितंबर को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जिसमें जस्टिस अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी भी शामिल थे, ने टिप्‍पणी की थी कि “जनता के स्‍वतंत्रतार्पूवक आवागमन के अधिकार के साथ विरोध का अधिकार संतुलित होना चाहिए। संसदीय लोकतंत्र में, विरोध करने का अधिकार है, लेकिन क्या एक सार्वजनिक सड़क को लंबे समय तक अवरुद्ध किया जा सकता है? विरोध प्रदर्शन कब और कहां हो सकते हैं? हम इस बारे में सोचेंगे कि इसे कैसे संतुलित किया जा सकता है।”

उल्‍लेखनीय है कि दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 100 दिनों से ज्‍यादा वक्‍त तक लोग सड़क रोककर बैठे थे। इस वजह से दिल्ली को नोएडा और फरीदाबाद से जोड़ने वाले एक अहम रास्ते को रोक दिए जाने से रोज़ाना लाखों लोगों को आने-जाने में भारी परेशानी हो रही थी। इसके खिलाफ वकील अमित साहनी और बीजेपी नेता नंदकिशोर गर्ग एवं अन्‍य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

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