Indian Constitution- जानिए भारतीय संविधान का पूरा इतिहास और कुछ खास बातें

Edited By Seema Sharma,Updated: 26 Nov, 2020 12:55 PM

complete history of indian constitution and some special things

हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस (Constitution Day) मनाया जाता है, इसी दिन भारत के संविधान मसौदे को अपनाया गया था। आज संविधान बने को 71 साल हो गए हैं। केंद्र सरकार ने 19 नवंबर, 2015 को राजपत्र अधिसूचना की सहायता से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में...

नेशनल डेस्क: हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस (Constitution Day) मनाया जाता है, इसी दिन भारत के संविधान मसौदे को अपनाया गया था। आज संविधान बने को 71 साल हो गए हैं। केंद्र सरकार ने 19 नवंबर, 2015 को राजपत्र अधिसूचना की सहायता से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया था। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू होने से पहले 26 नवंबर 1949 को इसे अपनाया गया था। संविधान सभा के सदस्यों का पहला सेशन 9 दिसंबर 1947 को आयोजित हुआ, इसमें संविधान सभा के 207 सदस्य थे। संविधान की ड्रॉफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ बी आर अंबेडकर थे। इन्हें भारत के संविधान का निर्माता भी कहा जाता है।

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भारत दुनिया का सबसे बड़ा है गणतंत्र
आज से ठीक 70 साल पहले भारतीय संविधान तैयार करने एवं स्वीकारने के बाद से इसमें पूरे 100 संशोधन किए जा चुके हैं। संविधान निर्माता चाहते थे कि इसमें संशोधन आसान हो ताकि जरूरत के मुताबिक इसे ढाला जा सके। बेशक संविधान में मौजूद इस लचीलेपन ने हमें कई अधिकार दिए और देश के कमजोर तबकों को जागरुक और सशक्त बनाया, लेकिन आपातकाल के विवादास्पद प्रावधानों का दौर भी आया।

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भारतीय संविधान की कुछ खास बातें
1. भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। संविधान में सरकार के संसदीय स्‍वरूप की व्‍यवस्‍था की गई है, जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है।
2. संविधान को 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया था लेकिन वह 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ।
3. 11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहें।
4. भारत संघ में ऐसे सभी क्षेत्र शामिल होंगे, जो इस समय ब्रिटिश भारत में हैं या देशी रियासतों में हैं या इन दोनों से बाहर, ऐसे क्षेत्र हैं, जो प्रभुता संपन्न भारत संघ में शामिल होना चाहते हैं।
5. भारत के नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, पद, अवसर और कानूनों की समानता, विचार, भाषण, विश्वास, व्यवसाय, संघ निर्माण और कार्य की स्वतंत्रता, कानून तथा सार्वजनिक नैतिकता के अधीन प्राप्त होगी।
6. इसमें अब 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 22 भागों में विभाजित है परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं।
7. संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता को मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख पीएम होगा।
8. वास्‍तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है जो वर्तमान में नरेंद्र मोदी हैं।
9. संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे।
10. इस संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन मे कुल 114 दिन बैठक की, इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थी। 11. भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रुभतासम्पन्न राष्ट्र है. यह सीधे लोगों द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार द्वारा शासित है तथा यही सरकार कानून बनाकर लोगों पर शासन करती है.
12. 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चीत करता है।
13. भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है, यह न तो किसी धर्म को बढ़ावा देता है, न ही किसी से भेदभाव करता है।
14. भारत एक स्वतंत्र देश है, किसी भी जगह से वोट देने की आजादी, संसद में अनुसूचित सामाजिक समूहों और अनुसूचित जनजातियों को विशिष्ट सीटें आरक्षित की गई है।
15. स्थानीय निकाय चुनाव में महिला उम्मीदवारों के लिए एक निश्चित अनुपात में सीटें आरक्षित की जाती है।
16. राजशाही, जिसमें राज्य के प्रमुख वंशानुगत आधार पर एक जीवन भर या पदत्याग करने तक के लिए नियुक्त किया जाता है, के विपरित एक गणतांत्रिक राष्ट्र के प्रमुख एक निश्चित अवधि के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होते है।
17. भारत के राष्ट्रपति पांच साल की अवधि के लिए चुनावी प्रक्रिया से चुना जाता है।
18. भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती हैं। दोनों सत्ताएं एक-दूसरे के अधीन नहीं होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं।
19. राज्य अपना पृथक संविधान नही रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है।
20. भारत मे द्वैध नागरिकता नहीं है. केवल भारतीय नागरिकता है। जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है।
21.भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएं, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है।
22. संविधान की प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है इसी कारण यह 'हम भारत के लोग', इस वाक्य से प्रारम्भ होती है।
23. प्रत्‍येक राज्‍य में एक विधान सभा है. जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में एक ऊपरी सदन है जिसे विधान परिषद् कहा जाता है। राज्‍यपाल, राज्‍य का प्रमुख है।
24. संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्‍य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। अवशिष्‍ट शक्तियां संसद में विहित हैं। केन्‍द्रीय प्रशासित भू-भागों को संघराज्‍य क्षेत्र कहा जाता है।
25. 'समाजवादी' शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है।

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भारत का संविधान रहा सबसे विवादास्पद संशोधन
इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए आपातकाल (25 जून 1975-21 मार्च 1977) के दौरान किया गया 42वां संविधान संशोधन भारतीय इतिहास में सबसे विवादास्पद संशोधन था। इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कानूनों की वैधता ठहराने संबंधी संवैधानिक अधिकारों में कटौती की गई। संसद को संविधान के किसी भी हिस्से को संशोधित करने का अबाध अधिकार मिल गया। लोकतांत्रिक अधिकारों की कटौती कर प्रधानमंत्री कार्यालय को अत्यधिक अधिकार मिल गए। देश के प्रति भारतीय नागरिकों के मूलभूत कर्तव्य इसमें बताए गए। राज्यों से और अधिकार लेकर केंद्र को दे दिए गए और इस प्रकार देश के संघीय ढांचे से छेड़छाड़ की गई। इतना ही नहीं संविधान की प्रस्तावना में संप्रभु, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य में धर्मनिरपेक्ष शब्द भी डाल दिया गया। संशोधन इतने व्यापक थे कि इसे ‘मिनी संविधान’ या ‘इंदिरा संविधान’ तक कहा गया।

 

भारतीय संविधान के कुछ और महत्वपूर्ण संशोधन
1950 में पहला संविधान संशोधन: मूलभूत अधिकारों खासतौर पर समानता का अधिकार लागू करने में आ रही कुछ व्यावहारिक दिक्कतों को दूर करने के लिए किया गया था।
1955 में चौथा संशोधन : संपत्ति, व्यापार और वाणिज्य से संबंधित कुछ अधिकारों के प्रावधान जोड़े गए।
1956 में सातवां संशोधन : विशाल भारत के लिए राज्यों के पुनर्गठन को संभव बनाने के लिए किया गया।
1971 में 26वां संशोधन : पूर्व रियासतों के राजकुमारों को दिया जाने वाला प्रिवी पर्स खत्म किया। इसके तहत उन्हें बड़ी राशि और सुविधाएं मिलती थी।
1973 में 31वां संशोधन : लोकसभा की सदस्य संख्या 525 से बढ़ाकर 545 की गई।
1976 में 39वां संशोधन : राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को चुनौती न दे सकने का प्रावधान।

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भारतीय संविधान से देश केे कमजोर वर्ग को मिली ताकत
संविधान निर्माताओं ने लोकसभा व विधानसभाओं में अनुसूचित जाति, जनजातियों को शेष देश के साथ तरक्की करने का मौका देने के लिए 10 साल के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था, लेकिन इतने कम वक्त में लक्ष्य हासिल न होने से इसे लगातार बढ़ाया जाता रहा है। पहली बार वर्ष 1960 में आठवें संशोधन से लोकसभा व विधानसभाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति और एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए सीटों का आरक्षण वर्ष 1970 तक बढ़ाया गया था।

1990 में 65वां संशोधन : राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग को संवैधानिक दर्जा।
1994 में 76वां संशोधन : शैक्षणिक संस्थाओं में सीटों का आरक्षण।
1995 में 77वां संशोधन : पदोन्नति में अनुसूचित जाति-जनजाति को आरक्षण।
1999 में 79वां संशोधन : आरक्षण प्रणाली को जारी रखने संबंधी संशोधन।
2000 में 81वां संशोधन : अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षित रिक्त पद प्रत्याशी न होने की स्थिति में भरे न गए हों तो उन पदों को 50 फीसदी की आरक्षण सीमा से बाहर रखा जाएगा।
2003 में 89वां संशोधन : राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग का विभाजन कर दोनों वर्गों के लिए अलग-अलग राष्ट्रीय आयोग बनाने का फैसला।
2005 में 93वां संशोधन : निजी और गैर-अनुदान वाले संस्थानों सहित सारे शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति-जनजातियों व पिछड़े वर्गों के प्रवेश के लिए संसद या विधानसभाएं कानून बना सकेंगी।
2010 में 95वां संशोधन : अनुसूचित जाति-जनजाति को संसद व विधानसभाओं में आरक्षण को 60 वर्ष से बढ़ाकर 70 वर्ष तक के लिए किया गया।

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